कला के साथ लोक-संस्कृति को जानने के लिए भीलवाड़ा है बेहतरीन जगह…

बरसात के बाद राजस्थान के शहरों में अलह ही निखार आ जता है। अगर आप महलों-हवेलियों के अलावा स्थानीय कला-संस्कृति से भी रूबरू होना चाहते हैं, तो वस्त्र-नगरी भीलवाड़ा जरूर जाएं। यहां फड़ चित्रकला के साथ-साथ आसपास की लोक संस्कृति का भी दर्शन कर सकेंगे।

मांडलगढ़

भीलवाड़ा से 54 किमी दूर स्थित यह जगह ऐतिहासिक महत्व की है। यह मध्यकाल के दौरान कई युद्धों का साक्षी रहा है। इतिहास में प्रसिद्ध हल्दीघाटी युद्ध के दौरान मुगल सम्राट अकबर ने इस जगह पर डेरा जमाया था। लगभग आधा मील लंबे किले की पहाड़ी के शिखर पर प्रचीरों और खाई की सुरक्षा के साथ अडिग है। माना जाता है कि यहां का किला बालनोट के राजपूतों के एक प्रमुख ने बनवाया था।

बदनोर फोर्ट- वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना

भीलवाड़ा से 70 किलोमीटर की दूर पर भीलवाड़ा आसिंद रोड पर स्थित बदनोर फोर्ट एक विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है। यह किला मध्ययुगीन भारतीय वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। सात मंजिला यह किला एक छोटी सी पहाड़ी पर बना हुआ है। बदनोर जिले के परकोटे के भीतर छोटे-छोटे कई स्मारकों और मंदिरों के भी दर्शन किए जा सकते हैं।

मेनार जल-प्रपात

भीलवाड़ा से 80 किमी दूर कोटा रोड पर नेशनल हाईवे 27 पर मेनाल नामक स्थान अपने अलौकिक, नैसर्गिक वैभव के कारण पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है। यहां का एक खास आकर्षण है चारों तरफ जंगलों से घिरा मेनाल जल-प्रपात। 150 फीट की ऊंचाई से गिरने वाले इस झरने की तेज आवाज ही लोगों को आकर्षित करती है। मेनाल में शिव जी का अत्यंत वैभवशाली मंदिर भी है।

जहाजपुर

भीलवाड़ा से 90 किमी दूर जहाजपुर स्थित है। शहर के दक्षिण मेंएक पहाड़ी के ऊपर एक विशाल किला गहरी खाई के साथ खड़ी दो प्राचीरों और उस पर अनगिनत बुर्जों के साथ समूह रूप में दिखाई पड़ता है। कहते हैं यह मेवाड़ की सीमाओं की रक्षा के लिए राणा कुंभा द्वारा बनाएं गए किलों में से एक है।

गांव में भगवान शिव को समर्पित मंदिरों का एक समूह है जिसे बारह देवरा कहते हैं। किले में भी कुछ मंदिर हैं, जिसमें एक सर्वेश्वरनाथ जी को समर्पित प्राचीन मंदिर है। जहाजपुर मुनिश्वरनाथ को समर्पित एक महत्वपूर्ण जैन मंदिर के लिए भी मशहूर है। यहां गांव और किले के बीच एक मस्जिद भी है, जिसे ‘गेवी पीर’ के नाम से जाना जाता है।

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