जब 19 महीने अरुण जेटली ने बिताए थे तिहाड़ जेल में, जानें उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा सच…

अरुण जेटली सियासत की एक मशहूर और कद्दावर शख्सियत थे, जिनके कद्रदान उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदी भी थे। दिल्ली दरबार के खास सिपहसालारों में उनका अहम स्थान था और चुनाव जीतने से लेकर सरकार बनाने और चलाने तक में उनको महारत हासिल थी। फिरंगी लुटियन की दिल्ली में उन्होंने अदालती दांव-पेंच सीखे और सियासत का दामन थामा तो उनका इकबाल वहां भी काफी बुलंद हुआ। आइए एक नजर डालते हैं उनकी जिंदगी से जुड़े खास पहलूओं पर –

लाहौर से रहा है परिवार का संबंध

अरुण जेटली के परिवार का लाहौर से संबंध रहा है। उनका परिवार देश विभाजन पर लाहौर से दिल्ली आया था। उनके पिता का नाम महाराज किशन जेटली और माता का नाम रत्नप्रभा था। उनके पिता वकील थे जबकि माता गृहणी थी और समाजसेवा में व्यस्त रहती थी। उनकी दो बहनें है। अरुण जेटली का बचपन दिल्ली के नारायण विहार में बीता था।

अपने स्कूल के दिनों के बारे में उनकी कहना था कि सेंट जेवियर में बिताए गए दिन उनके लिए खास यादगार रहे थे। क्योंकि यहां पर उनके विचारों को नई दिशा मिली थी और इन विचारों ने बाद में राजनीतिक दृष्टि प्रदान की।

1980 में वो भारतीय जनता पार्टी के साथ उनका सियासी सफर शुरू हो गया। 24 मई 1982 को अरुण जेटली जम्मू के गिरधारी लाल डोगरा की सुपुत्री संगीता के साथ परिणय सूत्र में बंध गए।

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शादी की रस्म के दौरान अपने परिवार के साथ अरुण जेटली की जिंदगी के कुछ खुशनुमा लम्हे।

27 जून 1983 को उनके यहां पर पुत्री सोनाली का और जनवरी 1989 को पुत्र रोहन जेटली का जन्म हुआ, फिलहाल दोनों पेशे से वकील है।

अपने बच्चे की एक रस्म को निभाते हुए अरुण जेटली अपनी धर्मपत्नी संगीता जेटली के साथ।

दिल्ली यूनिवर्सिटी में लहराया ABVP का परचम

कॉलेज लाइफ उनकी श्रीराम कॉलेज में बीती और डीयू में उनके पेशेवर जिंदगी की नींव पड़ी। अरुण जेटली को कई भाषाओं में वाद-विवाद करने में महारत हासिल थी और कॉलेज की स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष थे। इसके बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। उस वक्त दिल्ली यूनिवर्सिटी कांग्रेस का गढ़ था और यहां से ABVP के उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज करना देश की छात्र राजनीति के लिए बड़ी उपलब्धि थी।

19 महीने आपातकाल में बिताए तिहाड़ जेल में

अरुण जेटली जिंदगी के स्याह पक्ष से भी रुबरू हुए थे। आपातकाल उनके जीवन का काला अध्याय था। 26 जून 1976 को उन्होंने आपातकाल का पुरजोर तरीके से विरोध किया और इसके बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया । आपातकाल के दौरान उन्होंने 19 महींने तिहाड़ जेल में बिताए। इस दौरान वो कई तरह के लोगों से मिले और इससे उनको आगे के जीवन की राह समझने में काफी आसानी हुई।

आपातकाल हटने के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली और पहली बार देश की बागडोर विपक्ष के हाथों में आई। उस वक्त अरुण जेटली ने देशभर में जनता पार्टी के संगठन लोकतांत्रिक युवा मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक के रूप में प्रचार किया था।

महज 37 साल की उम्र में बने देश के सॉलिसिटर जनरल

अरुण जेटली ने दिल्ली की अदालतों से अपने कानूनी पेसे की शुरूआत की। उन्होंने दिल्ली ट्रायल कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालात करते हुए कई यादगार मुकदमों में जीत दर्ज की। अपनी काबीलियत के बल पर वो महज 37 साल की उम्र में देश के सॉलिसिटर जनरल बने।

1980 में भाजपा का थामा दामन

1980 में वो भारतीय जनता पार्टी के साथ उनका सियासी सफर शुरू हो गया। 24 मई 1982 को अरुण जेटली जम्मू के गिरधारी लाल डोगरा की सुपुत्री संगीता के साथ परिणय सूत्र में बंध गए। 27 जून 1983 को उनके यहां पर पुत्री सोनाली का और जनवरी 1989 को पुत्र रोहन जेटली का जन्म हुआ, फिलहाल दोनों पेशे से वकील है।

1990 को वो देश के एडीशनल सॉलिसिटर जनरल बनाए गए। उस वक्त उन्होंने देश के बहुचर्चित बोफोर्स केस की कमान संभाली और खासी सफलता हासिल की। 1991 में वो भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बनाए गए। 1998 में वो संयुक्त राष्ट्र में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य बने।

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