1816 से भारत का हिस्सा रहा है कालापानी और भारत, नेपाल की सीमा भी, जानने के लिए पढ़े पूरी खबर

भारत के नए नक्‍शे को लेकर नेपाल में जारी विरोध-प्रदर्शनों के बीच वहां के प्रधानमंत्री केपी ओली ने असहज करने वाली प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त की है। उन्‍होंने कहा है कि भारत-नेपाल और तिब्‍बत के बीच स्थित कालापानी नेपाल का हिस्‍सा है और भारत को वहां से अपनी सेना तुरंत हटा लेनी चाहिए। भारत को हम एक इंच तक नहीं देंगे। दरअसल कालापानी क्षेत्र 1816 में अंग्रेजों और गोरखाओं की सन्धि में भारतीय क्षेत्र रहा है। कालापानी भारत और नेपाल की सीमा है। कालापानी होकर ही चीन सीमा लीपूलेख को मार्ग जाता है। कालापानी काली नदी का उदगम् क्षेत्र है। कहा जाता है कि कालापानी में बदरीनाथ से भूमिगतजल निकलता है, जिस स्थान पर जल निकलता है। उसके ऊपर काली का मंदिर है। इसी को काली गंगा और नेपाल में महाकाली कहा जाता है। यही भारत नेपाल सीमा है। चलिए इसके बारे में थोड़ा विस्‍तार से जानते हैं।

2009 में कम्युनिस्ट पार्टी ने दिया कालापानी विवाद को जन्म

वर्ष 2009 से नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी एमाले ने कालापानी विवाद को जन्म दिया। इस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने कालापानी हाम्रो हो… यानि कालापानी हमारा है के नारे लगाने शुरू कर दिए। नेपाल में छांगरु गांव से आगे कालापानी के लिए कोई मार्ग नहीं है। छांगरु के ग्रामीणों ने इस मांग को उचित नहीं बताया। दूसरी तरफ नेपाल के वामपंथी भारत-नेपाल सीमा को कुटी नदी बताकर कालापानी से लेकर कुटी नदी तक के हिस्से को अपना बताने लगे। उनके द्वारा बताई गई सीमा में भारत के तीन गांव गुंजी नाबी और कुटी आते हैं। यह बातें वहां की कम्युनिस्ट पार्टी कहती थी, लेकिन उनके इन तर्कों पर नेपाल सरकार मौन रहती थी। दूसरी तरफ काली नदी के पार नेपाली क्षेत्र के कव्वा में भारत के गुंजी और गब्र्यांग के ग्रामीणों की भूमि है। जहां पूर्व में ग्रामीण माइग्रेशन में जाते थे। इस जमीन के भारत के ग्रामीणों के लाल पट्टे हैं। अब ग्रामीणों ने भूमि नेपालियों को बेच दी है और कुछ भूमि बटाई में दी है।

पड़ोसी देश का हाथ होने की भी चर्चा

इस बीच भारत सरकार द्वारा नया नक्शा जारी करने के बाद नेपाल में सुर बदले हैं। कालापानी विवाद को उठाया जा रहा है। कुटी यांगती को सीमा बता कर कालापानी लीपूलेख को अपना बताने का बेबुनियाद प्रयास किया जा रहा है। नेपाल के भारतीय सीमा से सटे क्षेत्र में आम चर्चा है कि कश्मीर से 370 अनुच्छेद हटाए जाने के बाद पड़ोसी देश कालापानी विवाद पैदा कर भारत को छेडऩे का प्रयास करा रहा है।

धारचूला से 99 किमी की दूरी पर है कालापानी

कालापानी पिथौरागढ़ जिले के धारचूला से 90 किमी की दूरी पर है। कालापानी में आईटीबीपी और एसएसबी की चौकियां हैं। नेपाल की तरफ काली नदी पार कुछ भी नही हैं।

कालापानी होकर ही चीन सीमा तक जाता है मार्ग

कालापानी कैलास मानसरोवर यात्रा का पड़ाव है। यात्रा पर जाते समय यात्रा का यह पड़ाव है। गुंजी से कालापानी की दूरी 9 किमी है। कालापानी से अंतिम भारतीय पड़ाव नावी ढांग की दूरी 9 किमी ओर नावी ढांग से चीन सीमा लीपूलेख की दूरी 9 किमी है। कालापानी महत्वपूर्ण है। चीन सीमा तक जाने के लिए मार्ग कालापानी से ही सम्भव है।

तक सड़क बन चुकी है

भारत में कालापानी तक सड़क बन चुकी है। इस मार्ग पर मालपा से बूंदी के बीच ढाई किमी का हिस्सा निर्माणाधीन है, जहां तेजी से काम चल रहा है, उसके बाद बूंदी से कालापानी तक 35 किमी की सड़क पूरी तरह तैयार है। कालापानी से चीन सीमा स्थित लिपुलेख 18 किमी रह जाता है। यही ढाई किमी का हिस्सा बनते ही कालापानी तक वाहन चलने लगेंगे।

1998 में उप्र विधान सभा में उठा मामला

पिथौरागढ़ जिले के 35 वर्ग किलोमीटर में स्थित कालापानी में इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस तैनात है। उत्तराखंड की 80 किमी से अधिक सीमा नेपाल से लगती है और 344 किमी चीन से। काली नदी का उद्गम स्थल कालापानी है, भारत ने इस नदी को नए नक्शे में शामिल किया है। कालापानी में 1998 में नेपाल माओवादी मार्क्‍सवादी लेनिनवादी के समर्थकों ने अवैध कब्जा कर लिया। अविभाजित उत्तर प्रदेश में पिथौरागढ़ के तत्कालीन विधायक रहे किशन चंद्र पुनेठा ने विधान सभा में तब यह मामला उठाया तो भारत सरकार भी हरकत में आई। गृह मंत्रालय ने पिथौरागढ़ जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी। जिसके बाद तत्कालीन डीएम एलआर यादव ने नेपाली प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक की और उन्हें साक्ष्य मुहैया कराए। जिसके बाद विवाद शांत हुआ था। पूर्व विधायक पुनेठा के अनुसार 1816 में ईस्ट इंडिया कंपनी व नेपाल के बीच सुगौली संधि हुई थी। तब काली नदी को पश्चिमी सीमा पर ईस्ट इंडिया कंपनी व नेपाल के बीच रेखांकित किया गया। 1962 में भारत-चीन युद्ध हुआ तो भारत ने कालापानी में चौकी बनाई। इधर नेपाल दावा करता है कि 1961 में उनके द्वारा जनगणना कराई  गई थी।

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