10 साल, 70 मौतें, आंदोलन से सिर्फ नेता निकले, गुर्जर अब भी खाली हाथ

जयपुर. युवाओं के सुनहरे भविष्य के सपने के साथ 10 साल पहले आज ही के दिन शुरू हुए गुर्जर आरक्षण आंदोलन में 72 युवा मारे गए। इस बीच भास्कर टीम ने आरक्षण आंदोलनों में मारे गए लोगों के घर जाकर उनके हालात जानें। दो अलग-अलग तस्वीरें सामने आईं। जिन्होंने आंदोलन की अगुवाई की वे नेता बन गए, सामाजिक प्रतिष्ठा पा गए, रहन-सहन में भी तरक्की हुई, लेकिन इसके उलट जिनके घरों में मौतें हुईं, वे परिवार आज सरकारों और नेताओं को कोस रहे हैंं।
10 साल, 70 मौतें, आंदोलन से सिर्फ नेता निकले, गुर्जर अब भी खाली हाथ
 
आरक्षण हाथ में आया भी, लेकिन फिर निकल गया, समाज वहीं का वहीं रह गया। दस साल पहले गुर्जर ओबीसी में थे। इसके बाद उन्होंने एसबीसी में आरक्षण के लिए आंदोलन किया और कुछ दिन यह आरक्षण मिला भी, लेकिन सरकार और कोर्ट के बीच फंसे इस आरक्षण के बीच गुर्जर फिलहाल फिर से ओबीसी में आ गए हैं।

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अकाल मौत मारे लोगों के बच्चे अनाथों की तरह जीवन गुजार रहे हैं। मृतकों के वृद्ध माता-पिता उस घड़ी को कोस रहे हैं जिसमें घरों से उनके बेटे आंदोलन के लिए निकले थे। इसके उलट 50 से ज्यादा नेताओं काे इस आरक्षण आंदोलन ने पनपाया। किसी को चुनाव का टिकट दिलवाया तो किसी को बड़ा ओहदा।
 
गुर्जर आरक्षण के 10 साल पहले आज ही के दिन शुरू हुआ था आंदोलन, पहलेही दिन चली थीं गोलियां, गुर्जर तब भी ओबीसी में थे आज भी उसी में भास्कर ग्राउंड रिपोर्ट भास्कर टीम ने आरक्षण आंदोलनों में मारे गए लोगों के घर जाकर उनके हालात जाने। दो अलग-अलग तस्वीरें सामने आईं।
 
गुर्जर : पिता आंदोलन में मारे गए, मां गम में चल बसी, बच्चे लाचार
बन्ने सिंह गुर्जर 24 मई 2008 को आंदोलन के दौरान मारे गए। पत्नी कंपूरी को सरकारी नौकरी मिली, लेकिन चार साल बाद मौत हो गई। चार बच्चे दिलकुश 12, लोकेश 11, गुड्ढा 10 व सपना 9 वर्ष को 70 वर्षीय दादी नर्मदा पाल रही हैं।
16 साल के कृष्णा और छोटी बहन मनीषा के पिता रूप सिंह भी आरक्षण आंदोलन में पुलिस फायरिंग में मारे गए थे। मां भी गुजर चुकी हैं। वृद्ध दादी रामेश्वरी इनकाे पाल रही हैं। कृष्णा ने हाल ही 12वीं की परीक्षा दी है, पास हो गई। मनीषा ने 9वीं की परीक्षा दी है। दोनों बेटियों का कहना है कि अब आरक्षण के बगैर ही कुछ करके दिखा देंगे।
 
नेता : किसी को पद मिला, किसी को शोहरत, सियासी मैदान भी मिला
आंदोलन का दो किरोड़ी को बड़ा फायदा मिला। एक गुर्जर नेता रिटायर्ड कर्नल किरोड़ी बैंसला, दूसरे किरोड़ी मीणा। बैंसला ने ही गुर्जरों के आंदोलन खड़ा किया। वर्ष 2009 में भाजपा के टिकट पर सवाई माधोपुर से चुनाव लड़े, हालांकि हार गए। इसके बाद कांग्रेस शासन में भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया और कांग्रेस के पक्ष में रहे।
 
डाॅ. मीणा ने गुर्जरों को एसटी में शामिल कराने का विरोध किया था। मीणा समाज के लिए मंत्री पद त्यागा, सरकार व पार्टी के खिलाफ उतरे। सुखबीर सिंह जौनपुरिया 2007-08 के समझौता वार्ता में आएं। 2009 में कांग्रेस से लोकसभा टिकट मांगा।
 
नेता : किसी को क्या मिला
– सुखबीर सिंह जौनापुरिया को 2009 में टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय चुनाव लड़े और वर्तमान में भाजपा से सवाई माधोपुर के सांसद हैं।
– राजेंद्र गुर्जर टोंक देवली उनियारा से 2011 आरक्षण आंदोलन से प्रमुखता से जुड़े और फिर 2013 में भाजपा से टिकट और विधायक बने।
– 2008 के आरक्षण आंदोलन के समझौते में रहे। इसके बाद मानसिंह गुर्जर को भाजपा ने गंगापुर सिटी से टिकट दिया और 2008 में हारे। फिलहाल गंगापुर सिटी से बीजेपी के विधायक है।
– रामवीर सिंह बिधूड़ी 2008 के सरकारी समझौते में थे। फिर भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। बदरपुर दिल्ली से विधायक बने और पिछला विधानसभा चुनाव दिल्ली का हारा है।
– ओम प्रकाश भड़ाना, अजमेर 2010 में आरक्षण आंदोलन से जुड़े और वर्तमान में भाजपा के ओबीसी प्रकोष्ठ के प्रदेशाध्यक्ष।
– सरदार सिंह डंगस रिटा. आईएएस एमपी कैडर के 2007 व 2008 के समझौता वार्ता में आएं। कर्नल बैंसला के रिश्तेदार है और 2008 में देवनारायण बोर्ड के चेयरमैन बने।
– 2007 आरक्षण आंदोलन के तुरंत बाद आंदोलनकारियों के नेता ब्रहमसिंह एडवोकेट आरपीएससी के सदस्य बने। वर्तमान में बीजेपी कार्य समिति के सदस्य।
– हरियाणा के सुभाष चौधरी 2008 के समझौता वार्ता में आए और 2009 में पलवल हरियाणा से विधायक बने। हालांकि पिछले चुनाव में हार हुई।
– सभी समझौता वार्ताओं में प्रमुखता से रहे कैप्टन हर प्रसाद वर्तमान में सरपंच है।
– 2008 के समझौते में शामिल देवकीनंदन काका को कांग्रेस ने 2013 में राजसमंद से टिकट दिया।
 
फायदा के लिए आंदोलन से जुड़े
गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के प्रवक्ता हिम्मत सिंह का कहना है कि युवा वर्ग इसलिए नाराज है कि आरक्षण आंदोलन में नेता आते है और फायदा उठाकर चले जाते है। हम सहित कई लोग वर्षों से काम कर रहे है लेकिन आज तक किसी पॉलिटिकल पार्टी से नहीं जुड़े। सीधे तौर पर कहना चाहता हूं कि कुछ लोग समाज को नहीं खुद को पनपाना चाहते है।
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