हरियाणा कांग्रेस में खींचतान और कलह के बीच सक्रिय हुए तंवर, महिला कांग्रेस नेताओं ने दिग्‍गजों को दी सलाह

हरियाणा कांग्रेस में खींचतान और विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष डा. अशोक तंवर के समर्थकों में चल रही खींचतान के बीच हाईकमान दुविधा में है। हुड्डा और तंवर के बीच विवाद सुलझाने में जुटे राष्ट्रीय नेताओं ने स्पष्ट कर दिया कि जब तक कांग्रेस अध्यक्ष पद पर राहुल गांधी की ताजपोशी का फैसला नहीं हो जाता, तब तक हरियाणा का विवाद के सुलटने के आसार नहीं हैं। इस बीच अशोक तंवर ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। उधर हरियाणा महिला कांग्रेस की नेताओं ने दिग्‍गज नेताओं को सलाह दी है कि विवाद करने की बजाए वे अपने घर बैठ जाएं।

हुड्डा समर्थकों का दबाव नहीं आ रहा काम, तंवर चुनाव की तैयारी में जुटे

हरियाणा में जारी विवार के बीच हाईकमान की ओर से अभी तक उन्हें ऐसा कोई इशारा नहीं मिला, जिसमें तंवर की अध्यक्ष पद की कुर्सी पर खतरा नजर आ रहा हो। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष डा. अशोक तंवर लगातार अपनी कोर टीम के सदस्यों के साथ मंत्रणा कर रहे हैं। तंवर निरंतर हर जिले में जाकर कार्यकर्ता बैठकें ले रहे और विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का घोषणा पत्र तैयार करने की मंशा से लोगों से फीडबैक जुटा रहे हैं।

कार्यकर्ता बैठकों में तंवर का फोकस अपनी पसंद के उन उम्मीदवारों की तलाश पर भी टिका है, जो मजबूती के साथ विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। तंवर ने अपने खास समर्थकों को चुनाव लडऩे की तैयारी करने के निर्देश दे दिए हैं। राज्य में 90 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 30 पर तंवर अपनी पसंद के उम्मीदवारों की पहचान कर उन्हें फील्ड में उतार चुके हैं।

हुड्डा समर्थकों ने तंवर को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाने का दबाव बना रखा है। 9 जून को दिल्ली में हुई हुुड्डा द्वारा समर्थकों की बैठक में कोई चौंकाने वाला फैसला लेने के आसार थे, लेकिन अशोक गहलोत और आनंद शर्मा के साथ हुई मीटिंग के बाद हुड्डा के तेवर नरम पड़ गए थे।

कांग्रेस के राजनीतिक गलियारों में हाल फिलहाल हर कोई नेता प्रदेश की राजनीति में अपना दबदबा बनाने की जिद्दोजहद में है। कभी भूपेंद्र हुड्डा और कु. सैलजा के हाथ मिलाने की खबरें आ रही हैं तो कभी तीन कार्यकारी प्रदेश अध्यक्षों पर दीपेंद्र हुड्डा, कुलदीप बिश्नोई और कैप्टन अजय यादव के नाम चलाए जा रहे हैं। तंवर इसे कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने के राजनीतिक फार्मूले से अधिक कुछ नहीं मानते। उनके समर्थकों को लगता है कि जब तक राहुल गांधी के अध्यक्ष पद पर कोई फैसला नहीं हो जाता, तब तक अशोक तंवर की कुर्सी को कोई खतरा नहीं है।

———–

तू-तू, मैं-मैं कर रहे दिग्गजों को महिला कांग्रेस की घर बैठने की सलाह

दूसरी ओर, हरियाणा कांग्रेस के दिग्गजों की आपसी लड़ाई के बीच महिला कांग्रेस ने 50 फीसद टिकटों पर अपनी दावेदारी जताई है। राज्य में 90 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 45 टिकट महिला कांग्रेस ने मांगे हैं। संगठन के नेतृत्व और टिकट आवंटन के नाम पर आपस में लड़ने वाले दिग्गजों को घर बैठने की सलाह दी। महिला कांग्रेस आज से फील्ड में उतर गई है। इस दौरान चुनाव लडऩे की इच्छुक महिलाओं से आवेदन मांगे जाएंगे। बूथ स्तर पर मजबूत संगठन खड़ा करने वाली महिलाओं को टिकट में प्राथमिकता दी जाएगी।

संगठनात्मक बैठक लेने चंडीगढ़ पहुंची हरियाणा महिला कांग्रेस की प्रभारी अनुपमा रावत और प्रदेश अध्यक्ष सुमित्रा चौहान ने प्रांतीय पदाधिकारियों को निचले स्तर पर संगठन मजबूत करने के निर्देश दिए। बैठक में तय हुआ कि अगले माह महिला कांग्रेस का राज्‍य स्तरीय सम्मेलन आयोजित किया जाएगा, जिसमें पूरे प्रदेश की रिपोर्ट पर चर्चा होगी। इस सम्मेलन से पहले हर जिले में संगठन, टिकट के दावेदार और जीत सकने वाली उम्मीदवारों के नाम की रिपोर्ट बनाई जाएगी। यह सम्मेलन चंडीगढ़ या पंचकूला में 6 व 7 जुलाई अथवा 13 व 14 जुलाई को आयोजित होगा, जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष सुष्मिता देव शामिल होंगी।

बैठक के बाद प्रांतीय प्रभारी अनुपमा रावत ने दावा किया कि सुमित्रा चौहान के नेतृत्व में हरियाणा में संगठन जिम्मेदारी तथा मजबूती से काम कर रहा है। सुमित्रा चौहान ने कहा कि फील्ड में बूथ स्तर पर ‘संगठन दिखाओ और टिकट की दावेदारी करो’ का नारा दिया जाएगा। उन्होंने कहा, जब तक मैं प्रदेश अध्यक्ष हूं, खुद चुनाव नहीं लड़ूंगी। अध्यक्ष नहीं रहने के बाद उनकी टिकट के लिए दावेदारी होगी।

सुमित्रा चौहान ने सुरक्षा, सम्मान और समानता पर भाजपा सरकार की घेराबंदी करते हुए कहा कि नए और सक्रिय चेहरों से कांग्रेस सत्ता में आएगी। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि कांग्रेस के कुछ नेता तू-तू, मैं-मैं की राजनीति में उलझकर पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं और उनकी वजह से कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में हैं। ऐसे तमाम नेताओं को अपने घर बैठ जाना चाहिए। पार्टी को उनकी जरूरत नहीं है। असलियत यह है कि ऐसे नेता अपनी जरूरत के लिए पार्टी का इस्तेमाल करते हैं।

Back to top button