हमारी समृद्ध संस्कृति का हिस्सा रही इन्हीं परंपराओं में अब लग गया आधुनिकता का तड़का…

 शादियों के इस मौसम में बैंड-बाजा- बरात का जिक्र होना स्वाभाविक है। पंजाबी शादियां खूब खर्च व आडंबर के लिए जानी जाती है। साधन संपन्न लोगों के अलावा मध्यमवर्गीय लोग भी शादियों में राजसी रंग भरने के लिए दिल खोलकर पैसा उड़ाते हैं। इन सबके बीच परंपरागत तरीके से होने वाली शादियां विलुप्त हो रही हैं। हमारी समृद्ध संस्कृति का हिस्सा रही इन्हीं परंपराओं में अब आधुनिकता का तड़का लग गया है। आइए इस रिपोर्ट में नजर डालते हैं जालंधर के यादगार भव्य शादी समारोहों और सादगी भरी पारंपरिक शादियों की यादों की बारात पर।

इन दिनों शादियों का मौसम पूरे यौवन पर है। नवंबर तथा दिसंबर माह में शादियों को लेकर कई शुभ मुहूर्त हैं। लग्जरी वेडिंग ट्रेंड के दौर में पुराने लोग आज भी अपने जमाने की शादियों की तुलना करने से नहीं चूकते। महफिल में उनकी यह तुलना व बताई बातें दिलचस्प भी होती है। कारण, उनकी बातें बस किस्सा बन कर रह गई है। ऐसी ही कुछ बातें आपसे साझा कर रहे हैं…

करीब 30 साल पहले शहर में हुई इंप्रूवमेंट ट्रस्ट के पूर्व चेयरमैन और शिरोमणि अकाली दल के लगातार 18 वर्ष तक अध्यक्ष रहे जत्थेदार जगदीश सिंह पापड़-वड़ियां वाले के बेटे हरप्रीत सिंह किवी की शादी जिले में कई वर्षों तक चर्चा का विषय बनी रही थी। इस बारे में हरप्रीत स्वयं बताते हैं कि कई पुराने लोग आज भी उनकी शादी की रौनक को याद करते हैं। चार दिसंबर 1988 को गुरु गोबिंद सिंह स्टेडियम में हुई इस पार्टी ने उस समय इतिहास रचा था। इसकी चर्चा उस समय पूरे पंजाब में हुई थी। यहां तक की यह शाही पार्टी मीडिया में भी सुर्खियों में रही थी। इस रिसेप्शन में तत्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला से लेकर कैबिनेट मंत्री, सांसद, विधायक और विभिन्न विभागों के चेयरमैन शामिल हुए थे। प्रसिद्ध गायक गुरदास मान और गायिका पुष्पा हंस ने मंच पर परफॉर्म किया था।

तड़के तीन बजे तक परफॉर्म करते रहे गुरदास मान

हरप्रीत सिंह किवी की शादी की रिसेप्शन से ऐसे कई तथ्य जुड़े हैं, जिसके कारण यह शादी समारोह यादगार बन गया था। इस रिसेप्शन में प्रसिद्ध गायक गुरदास मान और पुष्पा हंस ने रात को शुरू होकर तड़के तीन बजे तक परफॉर्म किया था। इस बीच पारिवारिक सदस्य और अकाली कार्यकर्ताओं ने उन पर नोटों की बरसात कर दी। उधर, गुरदास मान की दमदार पेशकश के चलते मेहमान भी डटे रहे।

मुख्यमंत्री से लेकर कई दिग्गज हुए शामिल 

इस रिसेप्शन में उस समय के मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला, वित्त मंत्री बलवंत सिंह, विधानसभा के स्पीकर नत्था सिंह दालम, शिक्षा मंत्री सुखजिंदर सिंह, सेवाराम अरोड़ा, इन्द्रा नरिंदर, मोहिंदर सिंह केपी, सांसद इकबाल सिंह तथा एसएसपी से लेकर डीसी तक देर रात तक रिसेप्शन में डटे रहे।

600 सुरक्षाकर्मी रहे तैनात 

गुरु गोबिंद सिंह स्टेडियम में हुई इस रिसेप्शन के दौरान पंजाबी हस्तियों के अलावा अन्य राज्यों से भी कई नामी लोग शामिल होने थे। इसके चलते रात को होने वाली पार्टी के लिए वहां पर दिन में ही 600 से अधिक सुरक्षाकर्मियों ने सुरक्षा का जिम्मा संभाल लिया था। इस दौरान स्टेडियम को जाते सभी मार्गों को सील कर दिया गया, जो तड़के तक यथावत रहा।

बेटा-बेटी एक समान का भी था संदेश

इस शादी की पार्टी से जुड़ा रोचक तथ्य यह भी है कि जत्थेदार जगदीश सिंह ने अपने बेटे ही नहीं, बल्कि बेटी की शादी की पार्टी भी एक साथ दी थी। इसमें पुत्र हरप्रीत सिंह किवी तथा बहू परमिंदर कौर और बेटी रमिंदर कौर तथा दामाद परमजीत सिंह की शादी की पार्टी यादगार बन गई थी।

मीडिया में हुई चर्चा 

विभाजन के बाद लाहौर से जालंधर में आकर पापड़-वड़ियां तैयार कर बेचने वाले परिवार का शादी समारोह इतना भव्य हो सकता है, यह किसी ने शायद सोचा भी न था। यहीं कारण रहा कि इस शाही रिसेप्शन की चर्चा मीडिया में कई दिनों तक रही थी।

अब विवाह समारोह बने स्टेटस सिंबल

आज शादी के समारोह एक स्टेटस सिंबल बन चुके हैं। लेकिन पहले ये परंपराओं के निर्वहन का एक जरिया थे। किसी अन्य की शादी से बेहतर दिखाने की होड़ नहीं होती थी तब। केवल अपनी जेब के अनुसार साधारण समारोह में निपट जाती थीं सभी रस्में।

कई दिन पहले गूंजने लगते थे शगुन के गीत 

एलआईसी के डवलपमेंट अफसर तथा लायंस क्लब जालंधर के अध्यक्ष कुलविंदर फुल्ल अपनी शादी के पलों को बयां करते हुए यादों के झरोखे में खो जाते हैं। बताते हैं कि शादी से कई दिन पूर्व घर में ढोलकी की गूंज पूरे मोहल्ले में सुनाई देती थी। घर में रोजाना ही लेडीज संगीत का दौर चलता था। इसमें किसी दिन माता-पिता तो किसी दिन भाई-बहन की तरफ से यह संगीत करवाया जाता था। इस लेडीज संगीत में घर के अंदर ढोलकी तथा छेने के साथ ही शादी के गीत प्रस्तुत किए जाते थे।

लुप्त हो गई सेहरा पढ़ने की परंपरा

कुलविंदर फुल्ल बताते हैं कि उनकी शादी के समय सेहरा पढ़ने की परंपरा सबसे अधिक दिलचस्प होती थी। कारण, इस सेहरे में पूरे परिवार व रिश्तेदारों को सम्मिलित किया जाता था। उनकी शादी में प्रसिद्ध लेखक डीआर धवन ने सेहरा पड़ा था। शादियों की चकाचौंध में यह परंपरा लुप्त होकर रह गई है।

पैदल ही पहुंच गई थी बरात

कुलविंदर फुल्ल अपने परिवार के साथ किशनपुरा में रहते थे। जबकि उनकी ससुराल भगत सिंह कॉलोनी में थी। वह बताते हैं कि शादियों पर सीमित बजट व कम खर्च करने के तहत भगत सिंह कॉलोनी के पास एकत्रित होकर पैदल ही बारात लेकर ससुराल पहुंच गए थे।

जालंधरः सेहरा बांधकर पैदल ही बरात लेकर जाते हुए कुलविंदर फुल्ल।

मोहल्ले में लगता था शादी का टेंट 

उस समय गली-मोहल्लों में ही टेंट लगाकर शादी संपन्न कर ली जाती थी। अगर मौसम खराब हो तो इसके लिए जंजघर, धर्मशाला या फिर धार्मिक स्थान ही विकल्प हुआ करता था। इसमें सभी रिश्तेदार व मित्र सहयोग करते थे।

बीते समय में यूं मोहल्ले में ही टेंट लगाकर विवाह समारोह संपन्न कर लिए जाते थे।

दुल्हन की विदाई पर पूरा परिवार होता था भावुक

सोढल रोड के रहने वाले यशपाल ठाकुर बताते है कि दुल्हन की विदाई के पल शादी का सबसे भावनात्मक समय रहा है। खासकर जब लड़की की शादी दूसरे शहर में होनी होती थी, तो यह विदाई की और भी झकझोर जाती। कारण, उस समय संचार व परिवहन माध्यम की सुविधा भी बहुत कम हुआ करती थी। ऐसे में लड़की की यह विदाई बहुत बढ़ी लगती।

अढ़ाई रुपये की वर्दी और अढ़ाई रुपये में ही भेजते थे आदमी

शहर में 1960 के दशक से बैंड की सेवाएं दे रहे आदर्श बैंड के सोहन लाल भट्टी बताते हैं कि उस समय बैंड बजाने वाले एक व्यक्ति की ड्रेस अढ़ाई रुपये में तैयार हो जाती थी। शादी पर अढ़ाई रुपये प्रति व्यक्ति चार्ज लिए जाते थे। कारण, केवल शादियों के सीजन में ही बुकिंग हुआ करती थी। बाकी का समय शोभायात्रा इलेक्शन या फिर अन्य आयोजनों के इंतजार में ही गुजरता था। यही कारण था कि मात्र 40 रुपये प्रति माह किराए की दुकान का किराया भी नहीं निकाल पाते थे।

पारंपरिक वाद्य यंत्र कलानोट्स व सेक्सिफोन की जगह अब इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों ने ले ली है। हालांकि ढोल, ताशे व बाजे का अस्तित्व आज भी बरकरार है। अतीत के झरोखे से सोहन लाल भट्टी बताते हैं कि अमीर घराने के लोग शादी की बुकिंग से पहले 2-3 बैंड बुलाकर परफॉर्मेंस देखते थे। इसी के आधार पर बुकिंग करते थे। ऐसे परिवारों से अच्छे पैसे मिलने की आशा होती थी, जिसके चलते बैंड वाले पूरे उत्साह के साथ इस परफॉर्मेंस में शामिल होते थे। समय के साथ बुकिंग करवाने वालों की मांग बड़ी है, तो निश्चित रूप से बजट में भी उल्लेखनीय इजाफा हो चुका है। पहले जमाने में बैंड का बजट 40 रुपये तक हुआ करता था, वह इस समय हजारों को भी पार कर गया है।

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