सरकार की कोशिश है कि साल के आखिर तक उत्तराखंड का अपना निकाय एक्ट अस्तित्व में आ जाए

नगर निकायों को सशक्त बनाने की कड़ी में उत्तराखंड का निकाय एक्ट बनाने की दिशा में प्रदेश सरकार अब तेजी से कदम बढ़ा रही है। इसके लिए कराए जा रहे देश के विभिन्न राज्यों के निकाय एक्ट के अध्ययन में अभी तक मध्य प्रदेश के एक्ट को उपयुक्त माना जा रहा है। हालांकि, सरकार ने कुछ और राज्यों के एक्ट का अध्ययन करने के लिए भी अधिकारियों को निर्देशित किया है। सरकार की कोशिश है कि साल के आखिर तक राज्य का अपना निकाय एक्ट अस्तित्व में आ जाए।

उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 18 साल हो चुके हैं, लेकिन अभी तक उसका अपना निकाय एक्ट नहीं बन पाया है। ऐसे में चुनाव से लेकर अन्य गतिविधियों में उत्तर प्रदेश के एक्ट से काम चलाया जा रहा है। हालांकि, पिछली सरकार ने निकाय एक्ट का मसौदा तैयार किया था और इसमें कुछ विषय निकायों को स्वतंत्र रूप से देने पर जोर दिया गया। तब सियासी उठापठक के चलते यह मुहिम मुकाम तक नहीं पहुंच पाई।

2017 में सत्ता परिवर्तन के बाद मौजूदा सरकार ने निकायों के सशक्तीकरण की दिशा में पहल की। इस क्रम में गत वर्ष नगर निकायों को कई अधिकार दिए गए, जिससे काफी राहत मिली है। साथ ही राज्य का अपना निकाय एक्ट बनाने की पहल शुरू की गई। एक्ट तैयार करने के मद्देनजर देश के विभिन्न राज्यों के निकाय एक्ट का अध्ययन करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए शहरी विकास विभाग के अपर सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई।

समिति ने मध्य प्रदेश, महाराष्ट, हिमाचल, राजस्थान समेत कुछ अन्य राज्यों के नगर निकाय एक्ट का बारीकी से अध्ययन किया। इसमें मध्य प्रदेश के निकाय एक्ट को उपयुक्त पाया गया। इसे राज्य के एक्ट के लिए आदर्श के तौर पर देखा गया। इस बीच निकाय चुनाव और फिर लोकसभा के चलते यह मुहिम मंद पड़ गई। अब सरकार ने निकाय एक्ट के लिए फिर से कसरत तेज कर दी है।

शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने बताया कि अधिकारियों से कहा गया है कि दक्षिण भारत के राज्यों के निकाय एक्ट को भी देख लिया जाए, ताकि उनकी अच्छाइयां ग्रहण कर समग्र और सशक्त एक्ट तैयार हो सके। रिपोर्ट मिलने के बाद मसौदा तैयार कर इसे कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा। सरकार का प्रयास है कि इस साल के अंत तक निकाय एक्ट बन जाए।

मप्र के एक्ट की विशेषताएं 

-नगर निगम में मेयर इन कौंसिल और नगर पालिका और नगर पंचायतों में होती हैं प्रेसीडेंट इन कौंसिल।

-निगम में कौंसिल के सदस्यों की संख्या 10 और पालिका और नगर पंचायत में होती है क्रमश: आठ व छह।

-नगर निगमों में पार्षदों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है स्पीकर का चुनाव

-निगमों में न्यूनतम सदस्य संख्या 40 व अधिकतम 70 है। इसी तरह नगर पालिका व नगर पंचायतों में 15 से 40 तक।

राइट-टू रिकॉल का भी प्रावधान 

मप्र के निकाय एक्ट में जनप्रतिनिधि के ठीक से कार्य न करने पर उसे वापस बुलाने का प्रावधान भी है। वहां राइट टू रिकॉल कि जरिये जनप्रतिनिधि को वापस बुलाया जा सकता है। इसके लिए कम से कम दो वर्ष की अवधि और अंतिम छह माह पूर्व होनी चाहिए।

Back to top button