सफेद शहद का स्वाद काफी कम लोगों ने चखा होगा, इसका स्वाद भी आम शहद की तुलना में बेहतर

क्या आपने कभी सफेद शहद के बारे में सुना है। जी हां…सफेद शहद। वैसे तो आम शहद हम सभी ने खाया है, लेकिन सफेद शहद का स्वाद काफी कम लोगों ने चखा होगा। इसकी वजह यह है कि यह शहद खास किस्म की बूटी के फूलों से मिलता है, जो जम्मू कश्मीर के कुछ हिस्सों में ही उगती है। सफेद शहद जिसे सोलाई शहद (व्हाइट गोल्ड हनी) कहते हैं, महज सोलाई बूटियों के सफेद फूल से ही प्राप्त होता है। इसकी खासियत है कि इसमें अलग महक होती है और स्वाद भी आम शहद की तुलना में बेहतर होता है। यही कारण है कि देश में सोलाई शहद की काफी मांग है।

महज माह भर होता है फूलों का सीजन :

सोलाई की झाड़ीनुमा बूटियां जम्मू कश्मीर के पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक तौर पर उगती हैं। इनमें सितंबर में सफेद फूल आते हैं। इनके फूलों का सीजन महज माहभर का ही होता है। इसी समय दूरदराज के मधुमक्खी पालक जम्मू के पहाड़ी व कश्मीर के कुछ भागों में मधुमक्खी की कॉलोनियों को लेकर पहुंचते हैं। मधुमक्खियां सफेद फूल से रस निकाल कर सोलाई शहद बनाती हैं। मधुमक्खी पालक यह शहद सीधे व्यापारियों को बेचते हैं।

यहां पाई जाती हैं यह बूटी :

जम्मू के किश्तवाड़, डोडा, गूल, रामबन, अरनास, संगलदान, बनिहाल के अलावा कश्मीर के बांडीपोरा, कुपवाड़ा व त्राल जैसे ठंडे क्षेत्रों में सोलाई की बूटियां मुख्य तौर पर पाई जाती हैं। जम्मू कश्मीर में करीब 650 हेक्टेयर में यह बूटियां पाई जाती हैं। हालांकि यह सोलाई बूटियां हिमाचल प्रदेश के चंबा व उत्तराखंड के कुछ हिस्से में भी होती हैं, मगर जम्मू कश्मीर में इसका क्षेत्रफल अधिक है। मधुमक्खी पालकों को यहां से अच्छा शहद प्राप्त करने की उम्मीद रहती है।

700 से 750 रुपये प्रति किलो बिकता है शहीद :

सोलाई शहद की बाजार में बेहद मांग है। एक किलो शहद पाने के लिए आपको 700 से 750 रुपये खर्च करने पड़ेंगे जबकि मल्टी फ्लोरा या दूसरा शहद 350 से 400 रुपये तक मिल जाएगा। सोलाई शहद सफेद रंग के कारण अन्य शहद से अलग दिखता है। इसलिए इसकी हर ओर बहुत मांग है।

घटती बूटियों से बन रहा संकट :

अपने स्वाद व सफेद रंग के कारण देश में पहचान बनाने वाले सोलाई शहद पर साल दर साल संकट गहराता जा रहा है। इससे जम्मू कश्मीर के मधुमक्खी पालकों की भी चिंता बढ़ गई है। दरअसल जिन झाड़ीनुमा सोलाई की बूटियों के फूलों से यह शहद प्राप्त होता है, वह लगातार खत्म हो रही हैं। नई बूटियां लगाने के लिए राज्य प्रशासन की कोई योजना नहीं। ग्रामीण क्षेत्रों में धड़ल्ले से इसका उपयोग ईंधन के रूप में भी किया जा रहा है। बी-कीपर एसोसिएशन जम्मू के प्रधान डीपी खजूरिया ने कहा कि सोलाई की बूटियों को बचाना बेहद जरूरी है। वे सरकार के समक्ष मामले को उठाएंगे। शहद का कारोबार कर रहे इंदू भूषण का कहना है कि मौसम की मार भी पड़ रही है। बहरहाल सोलाई की बूटियों को बचाने की नीति भी बननी चाहिए।

पौधों के संरक्षण को लेकर किया जाएगा जागरूक :

जम्मू  कृषि विभाग सूचना अधिकारी-वीके शर्मा ने कहा कि जंगल में उगने वाले सोलाई के पौधे सोलाई शहद के लिए अहम हैं। विभाग इन पौधों के संरक्षण को लेकर आने वाले समय में जागरूकता कार्यक्रम आरंभ करेगा। इसमें किसानों से आग्रह किया जाएगा कि इस बूटी को नुकसान न पहुंचाएं। इसके अलावा बूटी के संरक्षण को लेकर विभाग की ओर से भी हर संभव कदम उठाए जाएंगे।

Back to top button