विधानसभा के शीतकालीन सत्र में फिर गर्म होगा लोकायुक्त का मामला

लोकसभा चुनाव से पहले लोकायुक्त के सवाल पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सियासी घमासान के आसार हैं। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में लोकायुक्त विधेयक के सदन में न आने से उठा विवाद फरवरी के बजट सत्र में भी अपना रंग दिखाएगा।विधानसभा के शीतकालीन सत्र में फिर गर्म होगा लोकायुक्त का मामला

सौ दिन के अंदर लोकायुक्त के गठन का वादा क रने वाली त्रिवेंद्र सरकार को एक बार फिर विपक्ष के सवालों से जूझना पड़ेगा। लोस चुनाव की आहट के बीच शुरू हो रहे बजट सत्र में अगर लोकायुक्त की तस्वीर पहले की तरह धुंधली रही तो सरकार की जीरो टॉलरेन्स को झटका लग सकता है।

विपक्षी खेमे की ग्यारह फरवरी से शुरू हो रहे बजट सत्र में लोकायुक्त गठन मामले पर सदन को गर्माने की पूरी तैयारी है। बीते सत्र में लोकायुक्त विधेयक सदन के पटल पर न आने पर संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत ने विपक्ष पर ही आरोप जड़ दिए थे।

उन्होंने कहा था कि किसी भी विधेयक को सदन में पेश करने से पहले कार्यमंत्रणा समिति की बैठक में विचार किया जाता है। पंत ने दलील दी थी कि कार्यमंत्रणा समिति में विपक्ष के भी सदस्य होते हैं। 

जब कार्यमंत्रणा समिति की बैठक हुई तो विपक्ष ने लोकायुक्त विधेयक पर कोई पहल नहीं की। संसदीय कार्यमंत्री ने यह कहकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था कि सदन की अनुमति मिलने के बाद लोकायुक्त विधेयक सदन में पेश कर दिया जाएगा।

यहां बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री खंडूड़ी भी लोकायुक्त का गठन नहीं होने पर नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। लिहाजा त्रिवेंद्र सरकार के बजट सत्र में लोकायुुक्त के गठन पर भाजपा और कांग्रेस के बीच नए सिरे से सियासी घमासान के आसार दिख रहे हैं।

कांग्रेस बजट सत्र में लोकायुक्त के गठन के मुद्दे पर सरकार पर पूरा दबाव बनाएगी। भाजपा सरकार कह चुकी है कि जब कोई गड़बड़ ही नहीं हो रही है तो लोकायुक्त की क्या जरूरत? जाहिर है कि जीरो टॉलरेन्स की बात करने वाली भाजपा सरकार के इरादे ठीक नहीं है। बजट सत्र में सरकार ने फिर लीपापोती की तो कांग्रेस लोकायुक्त का मुद्दा जनता की अदालत में ले जाएगी।

एनडी सरकार में बना था लोकायुक्त

पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने 2002 में लोकायुक्त की नियुक्ति की थी। न्यायमूर्ति एसएचए रजा 2008 तक कुर्सी पर रहे। इसके बाद भाजपा की खंडूड़ी सरकार ने 2008 में न्यायमूर्ति एम एम घिल्डियाल को लोकायुक्त नियुक्त किया था। वे 2013 तक इस पद पर रहे। लोकायुक्त कार्यालय के कर्मचारियों के वेतन आदि पर सरकार को सालाना दो करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।

लोकायुक्त के गठन पर भाजपा सरकार बहुत गंभीर है। विपक्ष ही नहीं चाहता कि यह विधेयक सदन में आए। भाजपा ने अपने वायदे के मुताबिक 27 मार्च 2017 को सदन में पेश कर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। यह विधेयक अब सदन की संपत्ति बन चुका है।

ये है लोकायुक्त बिल का सफर

 -2011 में बना खंडूड़ी का लोकायुक्त विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया। इस विधेयक में मुख्यमंत्री, मंत्री और आईएएस अधिकारियों को लोकायुक्त की जांच के दायरे में लाया गया था।
 – 2013 में राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कांग्रेस सरकार को 180 दिन की अधिकतम अवधि में लोकायुक्त विधेयक को अंगीकार करना था। लेकिन कांग्रेस सरकार ने विधेयक में संशोधन का हवाला देते हुए 180 दिन तक कोई कार्यवाही नहीं की। 
– 26 फरवरी 2014 को खंडूड़ी का लोकायुक्त विधेयक दम तोड़ गया। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे रद घोषित कर दिया।
-इसके बाद भाजपा सरकार ने 27 मार्च 2017 को एक नया लोकायुक्त विधेयक विस में पेश किया। इसमें प्रवर समिति ने कुछ संशोधन करके फिर से  विस को दे दिया है। यह विधेयक अब विस की संपत्ति बन चुका है। अब इसे सदन में पेश करके पारित कराया जाना बाकी है।
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