लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले कर सकती है बड़ा फेरबदल

 लोकसभा चुनाव में भले ही प्रदेश कांग्रेस हारकर भी हारी नहीं हो और दूसरे नंबर पर आकर आम आदमी पार्टी को पछाड़ रही हो, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव के लिए तो पार्टी को एक मजबूत सेनापति चाहिए ही। एक ऐसा सेनापति जो न केवल पार्टी को एकजुट रखे बल्कि बूथ स्तर पर भी पार्टी को सशक्त बनाए।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक प्रदेश कांग्रेस में नए सेनापति की चर्चा अब जोर पकड़ने लगी है। यह चर्चा भी निचले स्तर से उठ रही है। सवाल तो तीनों कार्यकारी अध्यक्षों की कार्यशैली को लेकर भी उठने लगे हैं। प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित के नाम का जितना इस्तेमाल दिल्ली के कैडर वोट को वापस लाने में किया जा सकता था, उतना काम हो चुका है। लोकसभा चुनाव में शीला के नाम पर जो दांव खेला गया, उसमें भी पार्टी काफी हद तक कामयाब रही।

शीला के नाम ने पार्टी को दिल्ली में दूसरे स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया है। अब बारी छह महीने में होने वाली विधानसभा चुनाव की है। पार्टी सूत्रों की माने तो वरिष्ठ नेताओं के बीच गुटबाजी ही नहीं बल्कि ब्लॉक स्तर पर हो रही भितरघात को रोकने के लिए भी एक मजबूत सेनापति की आवश्यकता महसूस हो रही है। इसके लिए अभी भले ही कोई नाम सामने नहीं आ रहा है, लेकिन तलाश जरूर हो रही है। वैसे इस समय जिस तरह की गुटबाजी है उससे निपटने के लिए पहले ब्लॉकों को मजबूत करना जरूरी है।

सुझाव भी आ रहे हैं कि इसके लिए पार्टी के निचले स्तर की राजनीति को खत्म करना सबसे जरूरी है। इस लोकसभा चुनाव में जिलाध्यक्षों की भूमिका को सराहनीय बताया जा रहा है, लेकिन जो नेता दिल्ली में किसी भी स्तर पर चुनाव लड़े, वही इस चुनाव में सक्रिय नहीं दिखे। कभी-कभार मीडिया के आगे फोटो खिंचाने के लिए जरूर पहुंच गए ताकि यह दिखा सकें कि वह प्रत्याशी के साथ खड़े थे, लेकिन वास्तविकता इससे अलग है। कितने ही ऐसे नाम हैं जो चुनावों में गाहे-बगाहे नजर आए।

कांग्रेस के नेताओं का एकजुट न होना ही इस हार का मुख्य कारण है। चर्चा है कि तीनों कार्यकारी अध्यक्षों के बीच भी वैचारिक मतभेद है। सूत्र बताते हैं कि शीला का नाम दिल्ली की राजनीति में बड़ा अवश्य है, लेकिन उनकी उम्र अब उनकी सक्रियता में बाधक बनने लगी है। पिछले चार पांच सालों से प्रदेश कार्यकारिणी का गठन न होना भी नेताओं में उत्साह न होने का बड़ा कारण है।

वरिष्ठ नेताओं में आपसी विश्वास का अभाव है तो अहम का भाव भी पार्टी को नुकसान पहुंचा रहा है। इसीलिए दिल्ली में पार्टी को मजबूती देने के लिए जरूरी है कि किसी ऐसे नेता को खड़ा किया जाए, जो बिखरे तिनकों को समेट सके। पार्टी के ऐसे दो तीन नेता हैं भी जो विधानसभा चुनाव तक पार्टी को सशक्त बना सकते हैं। जरूरत सिर्फ उन्हें पहचानने की है।

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