लखनऊ में कम राइडर शिप यानी जिस रूट पर यात्री कम चल रहे होंगे वहां पर चलेगी मेट्रो लाइट…
राजधानी के आउटर एरिया में उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीएमआरसी) मेट्रो लाइट पर विचार कर रहा है। उद्देश्य होगा कि पूरे लखनऊ में मेट्रो व मेट्रो लाइट का जाल बिछ सके। कम राइडर शिप यानी जिस रूट पर यात्री कम चल रहे होंगे, वहां दो कोच वाली मेट्रो लाइट को चलाने के लिए यूपीएमआरसी प्राथमिकता देगा। मेट्रो स्टेशन से मेट्रो लाइट के स्टेशन कनेक्ट होंगे, लेकिन मेट्रो स्टेशन पर मेट्रो लाइट नहीं चल सकेगी। सिर्फ यात्री एक मेट्रो से उतरकर दूसरी मेट्रो पर सफर कर सकेंगे। वहीं गोरखपुर में मेट्रो लाइट चलाने के बाद झांसी व इलाहाबाद जैसे शहरों के लिए भी मेट्रो लाइट पर विचार किया जा रहा है।
छोटे बड़े शहरों के लिए मेट्रो लाइट आने वाले समय में संजीवनी साबित होने जा रही है। कम लागत में शहर के भीतर बेहतर कनेक्टिविटी का काम करेगी। गोरखपुर शहर मेट्रो लाइट वाला पहला जिला होगा। मेट्रो लाइट संचालित करने में मेट्रो की तुलना में तीस फीसद तक कमी आएगी। लखनऊ में नार्थ साउथ व ईस्ट वेस्ट कॉरिडोर के बाद अन्य रूट पर मेट्रो विचार कर रहा है। यही नहीं नए रूट जिन पर आबादी आने वाले वर्षों में चुनौती होने जा रही हैं, वहां मेट्रो लाइट का भविष्य यूपीएमआरसी उज्ज्वल देख रहा है। गोरखपुर मेट्रो लाइट के प्रति स्टेशन को बनाने में सिर्फ 165 करोड़ का खर्च आएगा, जो लखनऊ मेट्रो की तुलना में काफी कम होगा।
क्या है मेट्रो व एलआरटी में अंतर
मेट्रो के एक कोच का वजन करीब सोलह टन होता है। एलआरटी का वजन 12 टन होता है। मेट्रो की तुलना में यह एलआरटी बिजली कम खाती है। मेट्रो के चार कोच में करीब ग्यारह सौ लोग बैठते हैं, यानी एक कोच में पीक टाइम में 275 यात्री। एलआरटी में प्रति कोच करीब दो सौ यात्री बैठ सकेंगे। मेट्रो व एलआरटी की लंबाई बराबर होगी। दोनों एक ही गेज यानी पटरी पर चलेंगी। मेट्रो से लागत के मामले में एलआरटी तीस फीसद सस्ती होती हैं।
यूपीएमआरसी के प्रबंध निदेशक कुमार केशव ने बताया कि कम राइडर शिप वाले एरिया में मेट्रो लाइट पर विचार किया जा सकता है। मेट्रो व मेट्रो लाइट स्टेशन आपस में कनेक्ट हो सकते हैं। इसके निर्माण में लागत कम आती है और लाभ मेट्रो की तर्ज पर यात्रियों को मिलता है।