मोदी की स्‍टार्टअप स्‍कीम पर फिदा चीनी कंपनियों ने खोल दिए खजाने का भंडार

जी हाँ!! मोदी की स्‍टार्टअप स्‍कीम पर फिदा चीनी कंपनियों ने खोल दिए खजाने का भंडार…. चीन की कंपनियों ने भारतीय स्टार्टअप में भारी निवेश किया है, जो कि बाकी एशियाई देशों के मुकाबले ज्यादा है। नई शुरुआत करने वालों के लिए ये बेहतर है।

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दीवाली के आसपास देश में चीनी सामानों के बहिष्कार की मुहिम सी चल पड़ी थी, सोशल मीडिया पर एक अभियान चला हुआ था कि ‘इस दीवाली चीनी सामानों को ना कहिए’। लोगों ने जितना हो सका चीनी सामान का बहिष्कार किया भी और ये सोच अभी भी जारी है। इसकी मुख्य वजह रही है चीन का पिछले दिनों परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में भारत का विरोध करना, आतंकवादी मसूद अजहर को आतंकवादी घोषित करने में अड़ंगा लगाना और चीन का पाकिस्तान प्रेम। इन वजहों से देश में चीन के प्रति भारी नाराजगी है। इस तरह के माहौल के बीच एक सेक्टर ऐसा भी है जहां चीन और भारत की नजदीकियां लगातार बढ़ रही हैं, ये सेक्टर तेजी से उभरता हुआ स्टार्टअप सेक्टर है।

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चीन की कंपनियों ने भारतीयों के शुरू के हुए स्टार्टअप में जबरदस्त दिलचस्पी दिखाई है। ये भारतीयों के शुरू किए हुए स्टार्टअप में खूब पैसा निवेश कर रही हैं। हाल के दिनों में अमेरिका की तरफ से निवेश में कमी आने के बाद चीनी कंपनियों के निवेश से भरपाई भी हो रही हैं। पिछले दिनों चीन की एक बड़ी कंपनी पेइचिंग मितेने कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी ने इस साल टेक्नोलॉजी स्टार्टअप में सबसे बड़ा अधिग्रहण भी किया। इस चीनी कंपनी ने मुंबई की एक कंपनी मीडिया डॉट नेट का 90 करोड़ डॉलर में (करीब 6134 करोड़ रुपये) अधिग्रहण किया। मीडिया डॉट नेट की शुरूआत नवीन और दिव्यांक तुरखिया नाम के दो भाइयों ने की थी। चीन की दिग्गज ईकॉमर्स कंपनी अलीबाबा ने भारतीय स्टार्टअप पेटीएम और स्नैपडील में भी काफी बड़ा निवेश किया है।

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इसके अलावा ओला कैब में चीन की डीडी चशिंग कंपनी ने बड़ा निवेश किया है। चीनी इंटरनेट कंपनी टेनसेंट ने हाल में मेसेंजिंग ऐप हाइक में 17.50 लाख डॉलर (करीब 1150 करोड़ रुपये) का निवेश किया है। इससे पहले उसने हेल्थकेयर सोलुशन फर्म प्रेक्टो में करीब 615 करोड़ रुपये का निवेश किया था। इस कंपनी ने दक्षिण अफ्रीका के अपने ज्वाइंट वेंचर नैस्पर्स के जरिए भारतीय ऑनलाइन ट्रवैल फर्म इबीबो में भी भारी निवेश किया था। चीनी कंपनियों की भारतीय स्टार्टअप्स में इतनी दिलचस्पी को भारतीय विशेषज्ञ काफी महत्वपूर्ण मार रहे हैं। जानकारों के मुताबिक दोनों देशों में जनसंख्या के लिहाज से समानताएं हैं और दोनों ही देशों में डिजिटल फर्म्स के लिए उपभोक्ताओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी हो रही है।

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इसके अलावा चीनी कंपनियों को मार्केट बनाने और डिजिटल कंपनियों को चलाने के मामले में काफी अनुभवी माना जाता है, इसीलिए वो सिर्फ निवेशक बने रहने से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इसे अलीबाबा के उदाहरण से समझा जा सकता है जो कि पेटीएम को कई मोर्चों पर मदद मुहैया करा रहा है। ये भी कहा जा रहा है कि चीनी कंपनियां भारतीय बाजार और जरूरतों को अमेरिका के मुकाबले बेहतर समझती हैं, इसकी वजह ये है कि भारत और चीन का बाजार कमोबेश एक जैसा है, विकास के रास्ते पर है। चीन की बहुत सी कंपनियां ऐसी हैं जो अपने देश में जबरदस्त मुनाफा कमा रही हैं, हाल में चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट देखी गई है, इसलिए ये कंपनियां अपनी अतिरिक्त कमाई को भारत में निवेश कर रही हैं जो कि आने वाले दिनों में तीसरा सबसे बड़ा डिजिटल मार्केट बनने की राह पर है। इसीलिए चीनी कंपनियों ने भारत में इतना निवेश किया है कि भारत के मुकाबले अन्य एशियाई देशों में उनका निवेश नहीं के बराबर है।

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