मुंबई के इस हॉस्पिटल में 356 लीटर खून हुआ बर्बाद…

एक तरफ जहां मरीजों को खून न मिलने की वजह से अपनी जान गवांनी पड़ जाती है वहीं, अस्पताल की लापरवाही और ढुल-मुल रवैये के चलते अक्सर सैकड़ों यूनिट खून हर साल बर्बाद हो जाते हैं। अस्पताल के बीच खून के आदान-प्रदान को लेकर होने वाली समस्या और दिशा निर्देशों का ठीक से पालन न करने के कारण बीएमसी के भाभा अस्पताल में पिछले 4 सालों में 1019 यूनिट यानी तकरीबन 356 लीटर खून बर्बाद हुआ है।

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खून बर्बाद होने की वजह दिशा निर्देश

आरटीआई से मिली जानकरी के अनुसार बांद्रा स्थित केबी भाभा हॉस्पिटल में केवल जनवरी 2015 से नवंबर 2016 तक 103 लीटर खून बर्बाद हो गया।

इसकी कीमत लगभग 4 लाख रुपये बताई गई है। विशेषज्ञों के मुताबिक, हर ब्लड बैंक को ब्लड के लेन-देन के लिए ‘फर्स्ट इन फर्स्ट आउट’ (एफआई एफओ) निर्देश का पालन करना होता है। लेकिन अक्सर ब्लड बैंक इसका पालन नहीं करते, जिससे भारी मात्रा में हर साल ब्लड उपयोग से पहले ही बेकार हो जाता है। ब्लड लेने के बाद से उसे 35 दिन के भीतर इस्तेमाल किया जा सकता है। विशेष परिस्थिति में इसे 42 दिन तक प्रयोग किया जा सकता है।

एफआई एफओ के तहत जो ब्लड पहले लिए जाते हैं उसे पहले दिया जाना चाहिए, ताकि समय रहते उसका इस्तेमाल किया जा सके। एक्सपर्ट के अनुसार अक्सर ब्लड बैंक वाले ब्लड देते वक्त इन बातों पर ध्यान नहीं देते। इससे कई बार पहले का लिया हुआ रक्त ‘ब्लड बैंक में पड़ा ही रह जाता है, जबकि बाद में लिया हुआ ब्लड पहले दे दिया जाता है।

कम्यूनिकेशन गैप है बड़ी वजह

ब्लड एक्सपायरी के पीछे के कारणों में एक ब्लड बैंक से दूसरे ब्लड बैंक के बीच कम्यूनिकेशन की कमी भी है। कई बार ऐसा होता है, जब एक हॉस्पिटल में ब्लड की कमी होती है। उसी समय दूसरे हॉस्पिटल में ब्लड रहता है। लेकिन हॉस्पिटल के बीच उचित संवाद न होने के कारण कई बार ब्लड रखे-रखे एक्सपायर हो जाता है। एक्सपर्ट के अनुसार किसी भी हॉस्पिटल में जब जमा किए गए ब्लड की अवधि 25 दिन से दिन अधिक होने लगे तो, हॉस्पिटल को दूसरे हॉस्पिटल से संपर्क कर उसे भेज देना चाहिए।

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