मायावती मांगेंगी मुलायम सिंह यादव के लिए वोट

सत्रहवीं लोकसभा के चुनावी समर का प्रचार अभियान कई बातों और प्रयोगों के लिए याद रहेगा। यह चुनाव मुख्य रूप से मोदी हराओ-मोदी जिताओ पर केंद्रित दिखा। आरोप-प्रत्यारोप और आक्षेप जिंदा ही नहीं, मृत नेताओं पर भी लगे।
निजी दुश्मन जैसे एक-दूसरे के सियासी विरोधी मुलायम सिंह यादव और मायावती 25 वर्ष बाद एक साथ मंच पर दिखे तो एक-दूसरे के खिलाफ बांहें चढ़ाए घूम रहे सपा और बसपा के नेता व कार्यकर्ता एक-दूसरे के पक्ष में नारे लगाते दिखे। इस चुनाव ने भविष्य के कुछ सियासी चेहरों से परिचय कराया तो पुराने चेहरों के नेपथ्य में जाने का भी गवाह बना।

इस चुनाव की एक खास बात यह भी रही कि मुद्दे गायब रहे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही मुद्दा बने दिखे। प्रत्याशी कौन है और कैसा है? मुद्दा यह नहीं बल्कि मोदी दिखे। गठबंधन में शामिल सपा और बसपा के कार्यकर्ता अपने प्रत्याशी को जिताने के बजाय मोदी को हराने पर फोकस करते दिखे तो दूसरी तरफ भाजपा के लोग मोदी को जिताने के लिए वोट मांगते नजर आए।

गठबंधन और कांग्रेस के नेताओं ने एक-दूसरे की आलोचना तो की लेकिन उन्होंने मोदी को हराने के लिए अपने-अपने पक्ष में वोट मांगे। मोदी के मुद्दा बनने का प्रमाण प्रियंका गांधी वाड्रा का यह बयान भी बना जिसमें उन्होंने कहा कि कांग्रेस के प्रत्याशी जहां कमजोर हैं, वहां वह गठबंधन का नहीं बल्कि भाजपा का नुकसान कर रहे हैं।

उधर, मायावती ने अपील जारी कर रायबरेली और अमेठी में अपने मतदाताओं से कांग्रेस को वोट करने की अपील की। समझा सकता है कि मोदी फैक्टर इस चुनाव में किस तरह प्रभावी दिखा।

जय भीम-जय लोहिया का नारा

वैसे तो ‘सियासत में सब कुछ संभव’ कहावत पुरानी है, पर उत्तर प्रदेश में बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी मानते थे कि सपा और बसपा की दोस्ती संभव नहीं। पर, 2019 के चुनाव ने इस असंभव को संभव बना दिया।

अखिलेश यादव और मायावती ने ही मंच साझा कर भाषण ही नहीं दिए, बल्कि मायावती और मुलायम जैसे दो बड़े सियासी दुश्मनों को भी इस चुनाव ने एक मंच पर लाकर दिखा दिया। बुआ और बबुआ जैसे शब्दों का प्रयोग भले ही पहले तंज के रूप इस्तेमाल हो रहा था, लेकिन अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव ने मंच पर मायावती के पैर छूकर और जवाब में बसपा सुप्रीमो ने घर की बड़ी सदस्य की तरह उन्हें आशीर्वाद देकर यह संदेश देने की कोशिश की कि उनके लिए मुलायम का परिवार अब गैर नहीं है।

यही नहीं, इस चुनाव ने लोहिया की विरासत की राजनीति का दावा करने वाले अखिलेश यादव को लोहिया के साथ ‘जय भीम’ बोलते देखा तो मायावती को जय भीम के साथ ‘जय लोहिया।’

किसी का आगाज तो कई नेता नेपथ्य में

चुनाव से ठीक पहले जिस तरह मायावती ने 25 साल के अपने भतीजे आकाश की राजनीति में एंट्री कराई, उससे यह छिपा नहीं रहा कि लक्ष्य कहां है? इसके साथ ही आम तौर पर मीडिया से निश्चित दूरी बनाकर रहने वाली मायावती को यह चुनाव सोशल मीडिया पर लाने में सफल रहा।

प्रियंका गांधी वाड्रा की कांग्रेस की सियासत में नेता और पदाधिकारी के रूप में सक्रियता भी चुनाव का यादगार हिस्सा बना। वैसे तो प्रियंका पहले भी चुनाव प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश आती थीं, पर इस बार वह राजीव की बेटी और राहुल की बहन के रूप में नहीं बल्कि कांग्रेस की नेता के रूप में प्रचार में सक्रिय हुईं।
 

वहीं यह चुनाव मुलायम सिंह यादव, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, ओमप्रकाश सिंह व विनय कटियार सहित कई नेताओं को पर्दे के पीछे भेजते दिखा। मुलायम परिवार के दो सदस्यों के आमने-सामने की जंग का साक्षी बनकर भी यह चुनाव अपने इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ गया।

बेतुके बोलों के लिए रहेगा याद

राजनीतिक दलों के नेताओं का एक-दूसरे पर आरोप लगाना आम बात है। पर, इस बार का चुनाव प्रचार बेतुके बोलों का भी रिकॉर्ड बना गया। एक-दूसरे पर निशाना साधने में शब्दों की मर्यादा पार होती दिखी। आजम खां की जयाप्रदा को लेकर कही गई अमर्यादित बातें सियासी गलियारों से लेकर मीडिया तक की सुर्खियां बनीं। उन पर प्रतिबंध भी लगा। आजम के पुत्र भी ऐसे बोल बोलने में पीछे नहीं रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘चौकीदार’ शब्द से चुनावी माहौल बनाने की कोशिश की तो जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लगवाते नजर आए। ‘अली व बजरंग बली’ जैसी बातों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाओं पर रोक लगाई।

प्रियंका ने मोदी की तुलना दुर्योधन से की तो कांग्रेस के दूसरे नेता संजय निरूपम ने औरंगजेब से। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास से ‘चिलम’ ढुंढ़वाने की बात कही।

नरेंद्र मोदी ने राजीव गांधी का नाम लिए बिना कहा, ‘मिस्टर क्लीन भ्रष्टाचारी नंबर वन बन गए।’ मायावती ने कहा,‘मोदी के पास जाने वाले भाजपा नेताओं की पत्नियां डर रही हैं? सोचती हैं कि कहीं मोदी उनके पतियों को भी अलग न कर दें।’

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