बोतल से दूध पीने वाले बच्चों को तेजी से बीमार कर रहा ये… वायरस
आरएसवी की वजह से स्वस्थ बच्चों में सर्दी-जुकाम, निमोनिया और सांस की गंभीर बीमारियां हो रहीं हैं। सिविल अस्पताल में इन दिनों में 65 प्रतिशत केस इसी के पहुंच रहे हैं। अस्पताल में हर रोज औसतन 150 बच्चों की ओपीडी हो रही है, इनमें 90 से ज्यादा बच्चे इसी से पीड़ित मिल रहे हैं। ओपीडी में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. निहारिका और डॉ. एकता बच्चों का इलाज कर रही हैं।
डॉ. निहारिका ने बताया कि इसमें बच्चों का खाना-पीना कम हो जाता है। तो वहीं जिन बच्चों को बोतल से दूध पिलाया जाता है, उनमें भी ये फैलने का ज्यादा चांस रहा है, 45 से 50 प्रतिशत केस इसी तरह के हैं। बच्चे को मां का ही दूध पिलाना चाहिए। हम अस्पताल में हर मां को यही बता रहे हैं कि बोतल से दूध न पिलाएं।
विशेष इलाज नहीं
आरएसवी का कोई विशेष उपचार नहीं है। इससे बचने के लिए बच्चे को तरल पदार्थ देना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर आप बुखार और सिरदर्द के लिए पेन किलर (एस्पिरिन नहीं) भी दे सकते हैं, लेकिन पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें। हमेशा अपने हाथ धोना और खाने-पीने के बर्तन साझा न करना आरएसवी संक्रमण से बचने के आसान तरीके हैं।
हर रोज औसतन 150 बच्चों की ओपीडी हो रही है
सांस लेने वाले मार्ग के निचले हिस्से में रेस्पिरेटरी सिंसिशीयल वायरस का इंफेक्शन होता है। जो नाक और गले में दिखाई देता है। छोटे बच्चों में यह प्रभाव फेफड़े और सांस लेने वाले मार्ग में दिखाई देता है। यह वायरस उन बच्चों को आसानी से अपने कब्जे में ले लेता है, जिनमें नाक बहने वाले लक्षण देखने को मिलते हैं। अगर किसी व्यक्ति को खांसी या जुकाम हुआ है और वह जब खांसता या छींकता है तो यह दूसरे लोगों में भी फैल जाता है। छोटे बच्चों को तो ये आसानी से चपेट में ले लेता है।
वायरस के संक्रमण के लक्षण
सूखी खांसी, बहती नाक, बुखार, गले में खरास, सिर दर्द, घबराहट, सांस लेने में तकलीफ इस वायरस के मुख्य लक्षण हैं। इस वायरस से बच्चे की त्वचा नीले रंग की दिखाई देने लगती है। इसके अलावा बच्चे में चिड़चिड़ाहट, गले में जलन और बंद नाक की भी शिकायत देने को मिलती है।