अब बिना बैटरी के बिकेंगे वाहन, सस्ती होगी ई-बस सेवा.. लेकिन..

अब केंद्र सरकार बैटरी से चलने वाली टैक्‍सी को प्रमोट करने की तैयारी में है। मिनिस्‍ट्री ऑफ रोड एंड ट्रांसपोर्ट द्वारा एक पॉलिसी बनाई जा रही है, जिसका मकसद शहरों में बैटरी टैक्‍सी की संख्‍या बढ़ाना है, ताकि देश में बैटरी व्‍हीकल की डिमांड बढ़े। ऐसे में एक प्रस्तवा तैयार किया गया है कि इलेक्ट्रिक वाहनों को बिना बैटरी के बेचा जाए। इससे इनकी लागत कम होगी। बैटरी को वाहन के मालिक लीज यानी किराए पर ले सकेंगे।बिना बैटरी के बिकेंगे वाहन
माना जा रहा है कि इस नीति से इलेक्ट्रिक वाहन बिना सब्सिडी दिए ही 70 फीसद तक कम कीमत में मिल सकेंगे। यह फैसला पब्लिक ट्रांसपोर्ट खासतौर पर सिटी बस के लिए लिया गया है। दरअसल, बैट्री में इनोवेशन और उसकी क्षमता में सुधार के लिए तेजी से काम हो रहा है, लेकिन बैट्री की कीमत में इतनी कमी नहीं आई है कि इलेक्ट्रिक वाहन ईंधन से चलने वाले वाहनों की जगह ले सकें।

ऐसे में बैटरी को लीज में देने के मॉडल की जरूरत होगी, जिससे बस के रूट पर सुविधाजनक प्वाइंट्स पर डिस्चार्ज हो गई बैटरी को बदला जा सके। इसके साथ ही इस मॉडल के लिए यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कई कंपनियां कम कीमत पर बैटरी को लीज पर देने, उन्हें बदलने और रीचार्ज करने की सुविधा दे सकें।

मगर, इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि इलेक्ट्रॉनिक वाहनों को लोकप्रिय बनाने की मुहिम में नई तरह के एकाधिकार की शुरूआत नहीं हो। ई-वाहनों को सस्ता करना ही इस कार्यक्रम का एकमात्र उद्देश्य नहीं होना चाहिए। वाहनों की कीमतें कम होने से इंडस्ट्री का विस्तार होगा। मगर, इसके कारण यह बैटरी लीज पर देने वाली नई इंडस्ट्री के चंगुल में नहीं फंस जाए।

सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वित्तीय राहत और बाजार के विस्तार का फायदा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों और उन कंपनियों को भी मिले, जो बैटरी टेक्नोलॉजी में रिसर्च, डेवलपमेंट और इनोवेशन के लिए काम कर रही हैं।

क्या हैं इस रास्ते के रोड़े

टेस्ला ने साल 2013 में बैटरी स्वैप प्रोग्राम को शोकेस किया था और जनवरी 2015 में इसे लागू करने के लिए एक स्टेशन भी बनाया था। मगर, जून 2015 तक आते-आते यह प्रोग्राम असफल हो गया। कंपनी के सीईओ एलन मस्क ने कहा कि लोगों की बैटरी बदलवाने के बारे में परवाह नहीं थी। टेस्ला की बैटरी को बदलने में 90 सेकंड का वक्त लगता था, लेकिन फिर भी यह कई वजहों से लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं हो पाया।

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दूसरी समस्या बुनियादी ढांचे की है। यदि निर्माता इलेक्ट्रॉनिक वाहनों की कीमतों को कम कर सके, तो भी वे कम लोगों तक ही अपनी पहुंच बना सकेंगे। इसके साथ ही रिप्लेसेबल बैटरी स्टेशन और क्विक चार्जिंग स्टेशन को देश-भर में बनाना एक चुनौती होगा।

तीसरी बड़ी समस्या बैटरी के री-साइकलिंग की है, जो भारी-भरकम काम है। बड़े पैमाने पर बैटरी की री-साइकलिंग की जा सकती है, लेकिन यह हो नहीं रही है। इस परेशानी को दूर करने के बारे में पहले विचार करना होगा।

चिंता का एक और विषय है भारत में पड़ने वाली गर्मी। बैटरी वाले वाहनों में एसी की सुविधा नहीं मिल सकेगी। ऐसे में गर्मी में यात्रियों के लिए इलेक्ट्रिक विहिकल परेशानी का सबब बनेंगे।

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