पुलवामा में हुए आतंकी हमले का जिम्मेदार कौन.? भारत में खुफिया तंत्र लगने के बाद भी हुआ ये हमला…

कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमला होता है और इसमें 40 से ज्यादा जवान शहीद हो जाते हैं। आतंकवादियों का यह कोई पहला हमला नहीं था। इससे पहले भी हमले होते रहे हैं, लेकिन हमला होने के बाद जब वजहों की चीरफाड़ होती है तो सबसे पहले खुफिया तंत्र का नाम सामने आता है। क्या खुफिया तंत्र ने सूचना दी थी, वह स्टीक सूचना थी या रुटीन में फाइल वर्क था। अधिकांश मामलों में यही बात निकलकर सामने आती है कि आईबी ने अलर्ट तो भेजा था। पुलवामा में हुए आतंकी हमले का जिम्मेदार कौन.? भारत में खुफिया तंत्र लगने के बाद भी हुआ ये हमला...

अलर्ट में क्या यह बात लिखी थी कि फलां जगह पर 24 घंटे के भीतर हमला होगा, कौन करेगा और हमले की प्रवृति कैसे रहेगी, ये सब जानकारी हमारे खुफिया तंत्र के पास नहीं होती। अमेरिका और दूसरे कई यूरोपीय देशों में ज्यादातर आतंकी हमलों को पहले ही खत्म कर दिया जाता है, क्योंकि उन्हें हमले के बारे में हर पुख्ता सूचना समय रहते मिल जाती है।

देश में खुफिया जानकारी जुटाने के मूल स्रोत की पूरी तरह अनदेखी हो रही है। पुलिस के सिपाही, मुखबिर और आम जनता का सहयोग लेने में खुफिया तंत्र की कोई रुचि नहीं है। यही वजह रही कि पुलवामा धमाके की सूचना होने के बावजूद उसे नाकाम नहीं किया जा सका। दूसरी तरफ अमेरिका में 9/11 के बाद खुफिया सूचनाओं के लिए इस मूल स्रोत यानी ‘सिपाही और मुखबिर’ का व्यापक इस्तेमाल हुआ है। नतीजा, लादेन की मौत से लेकर अब तक वहां हमले की करीब 64 बड़ी साजिशों को नाकाम कर दिया गया। 

नहीं मिल पाती सटीक सूचना

खुफिया तंत्र विशेषज्ञ और असम के पूर्व डीजीपी डॉ. शारदा प्रसाद का कहना था कि अधिकांश अवसरों पर खुफिया विभाग सफल नहीं हो पाता। खुफिया अलर्ट में आतंकी खतरे से संबंधित शहर की जानकारी तो मिल जाती है, लेकिन जहां पर विस्फोटक लगाया गया है, उस बाबत कोई सूचना नहीं होती। हमला कब होगा, इसकी भी कोई सटीक सूचना नहीं होती। केवल यह बता दिया जाता है कि फलां रोड पर या इलाके में ऐसा हो सकता है। वह दो दिन, एक सप्ताह या एक माह में संभावित है।

हमारे देश में खुफिया जानकारी जुटाने के लिए सूचना के सबसे अहम स्त्रोत पुलिस के सिपाही को भुला दिया गया है। आम जनता से भी इनपुट लेने का कोई प्रयास नहीं होता। इसका नुकसान यह होता है कि हमले या विस्फोट की केवल सामान्य सूचना ही मिल पाती है। स्थानीय स्तर पर सही जगह और समय की सटीक जानकारी न होने के कारण आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब हो जाते हैं। सिपाही को सबसे बड़ा स्त्रोत इसलिए माना जाता है, क्योंकि वह सामान्य लोगों के साथ परिवहन, बाजार, सिनेमा, टी-स्टॉल और यहां तक कि वह उनके साथ सार्वजनिक टायलेट इस्तेमाल करता है। 

खास बात है कि भारत में कोई सिपाही या मुखबिर सूचना लेने के लिए जब किसी आतंकी समूह में घुसता है तो उसकी कोई लॉग बुक तैयार नहीं की जाती। ऑपरेशन सफल होता है तो भी उसे कोई श्रेय नहीं मिलता। प्रसाद ने बताया कि मुखबिरों का बजट तो ठीक है, लेकिन वितरण सही नहीं है। सामुदायिक सहभागिता तो न के बराबर है। जिन्हें मुखबिर बनाया जाता है, वे सरकारी दलाल बनकर रह जाते हैं। 

विदेशों में सिपाही और मुखबिर पर भरोसा कर आतंकी हमलों को होने से पहले ही रोक देते हैं

अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और इजराइल सहित अनेक यूरोपीय देशों में खुफिया सूचनाओं के लिए सिपाही पर ही सबसे ज्यादा भरोसा किया जाता है। उसे भारी नकद इनामी राशि के अलावा तरक्की भी मिलती है। इसके बाद मुखबिर का नंबर आता है। अमेरिका में आतंकी हमले की पुख्ता सूचना देने वाले को बतौर प्रोत्साहन राशि बीएमडब्ल्यू कार और 18 हजार डॉलर तक की राशि दी गई है। इसी के चलते सिपाही और मुखबिर को सुरक्षा एजेंसियों में कई गुना प्रभाव बढ़ाने वाले कर्मियों में शामिल किया जाता है। 

भारत में न तो भरोसा और न ही प्रोत्साहन राशि

दूसरी ओर भारत में खुफिया इकाइयां पांच-सात सौ रुपये में मुखबिर से आतंकी सूचना लेना चाहती हैं। आईबी जैसी बड़ी इकाई तो थोड़ा-बहुत खर्च करती है, लेकिन राज्यों में पुलिस द्वारा खुफिया सूचना लेने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया जाता। अर्धसैनिक बलों में भी यही स्थिति है। कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाकों में सूचनाएं लेने के लिए शराब की बोतल, खाना और हजार-दो हजार रुपये खर्च किए जा रहे हैं। किसी मुखबिर को चार-पांच हजार रुपये देने हैं तो हेडक्वार्टर में फाइल भेजनी पड़ती है। सिपाही की सूचना पर कोई भरोसा नहीं करता। सामान्य ड्यूटी वाले सिपाही को खुफिया इकाई से दूर रखा जाता है।

नतीजा, पुलिस के खुफिया विभाग में कर्मचारियों का ध्यान सूचनाएं जुटाने की बजाए थाने में पोस्टिंग पर ही लगा रहता है। पूर्व आईजी वीपीएस पवार कहते हैं कि ट्रेनिंग की बजाए इन कर्मियों को प्रोत्साहन की खास जरूरत है। अर्धसैनिक बलों में अत्याधुनिक उपकरणों से लैस खुफिया इकाई होनी चाहिए। उन्हें हाई अलर्ट जोन में फोन टेपिंग जैसा अधिकार मिले। मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने एक बार खुद यह बात स्वीकार की थी कि सुरक्षा बलों के पास कई बार सूचना पुख्ता होती है, लेकिन स्थानीय स्तर पर लगी एजेंसी वहां तक नहीं पहुंच पाती। सूचना के लिए केवल तकनीक पर निर्भर रहना लंबे समय के लिए एक बड़ी भूल होगी। मानवीय सतर्कता तंत्र विकसित करना जरूरी है। 

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