फाजिल्का. हिंदु धर्म द्वारा किसी जीव जंतु को मारना पाप समझा जाता है किंतु सोचो जब अपने ही परिवार के चार सदस्यों का जिनमें एक 6 माह का बच्चा भी शामिल हो, का सिर कलम करना पड़े तो यह काम कैसे किया होगा। यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं बल्कि 17 अगस्त 1947 की घटना है भारत-पाक विभाजन के दो दिन बाद वर्तमान में पाकिस्तान के मिंटगुमरी जिले के बागपटन तहसील के अंतर्गत बसी मंडी बशीरपुर की घटना है।
पाकिस्तान बनने की घोषणा से पूर्व से ही मुस्लिम लीग के प्रचारक बने मुल्ला मौलवियों ने ग्रामीण मुसलमानों के दिलों में हिंदुओं के विरुद्ध नफरत का जहर घोल दिया था। उन पर सांप्रदायिक उन्माद बुरी तरह सवार था। उन्हें मस्जिदों में सामूहिक नवाज के बाद जेहाद के लिए उकसाया जाता था। कहा जाता था कि पाकिस्तान में एक भी काफिर रहने पाए। नतीजा यह हुआ कि 15 अगस्त से पूर्व ही चारों ओर तनाव का वातावरण बन गया था।
यह तो तय ही था कि उक्त मंडी पाकिस्तान में जाएगी इसलिए हिंदुओं ने भी अपने बचाव की पूरी तैयारी की थी। मंडी में संघ के स्वयंसेवकों ने समाज में आत्मविश्वास जगाया था तथा ऐसी मनो भूमिका तैयार की थी मुसलमानों के साथ रहने का शांति का हर मार्ग अपनाएंगे पर अगर मरना ही पड़ा तो संघर्ष करते हुए मरेंगे किंतु कोई भी हिंदु मुसलमान नहीं बनेगा। 15 अगस्त का वह दिन गया जब सीमा आयोग ने घोषणा कर दी कि वह इलाका पाकिस्तान में आयेगा। फिर क्या था, मुल्ला-मौलवियों ने फतवा जारी कर दिया कि घेर लो मंडी को।
3000 लोगों ने दी कुर्बानी
फाजिल्काके फुटेला परिवार के मुखी हंस राज फुटेला ने अपनी माता, बहन अपने 6 माह के बच्चे का सर कलम कर दिया। इस दौरान लगभग 3000 लोगों ने धर्म की खातिर अपनी कुर्बानी दे दी। उक्त घटनाक्रम के बाद हिंदु लोग हाथों में हथियार लेकर शेरों के सामान आगे बढ़ने लगे जिसे देखकर मुस्लिम युवक भागने लगे। शहीद होने वाले हिंदुओं से संघर्ष के दौरान मरने वाले मुसलमानों की संख्या चार गुणा अधिक थी। 17 अगस्त सायं तक मुश्किल से 10-15 युवक ही शेष बचे थे जिनमें एक हंस राज फुटेला थे।
सेना का था इंतजार
हिंदुओंका विश्वास था कि पाकिस्तान बनने के बाद भी उन्हें भेडिय़ों का शिकार होने हेतु पूरी तरह बेसहारा नहीं छोड़ दिया जाएगा और एकाध दिन में ही सफल प्रतिरोध करेंगे तब तक सेना सहायता के लिए अवश्य ही जाएगी। जब मुसलमानों से इंसानियत जाग जाएगी और वह वापिस लौट जाएंगे परंतु ऐसा नहीं हुआ। किंतु मुस्लिमों को संख्या बल के साथ आगे बढ़ता देखकर बहनों ने जौहर वीरों ने साका करने का निश्चय किया।
उस समय वहां की शाखा के मुख्य शिक्षिका गांधी नगर निवासी आरएसएस के कर्मठ नेता प्रेम फुटेला के पिता हंस राज फुटेला ने संघ के स्वयंसेवकों, मंडी के युवकों को अपने साथ जोड़ा और समाज की आत्मरक्षा के लिए निकल पड़े। स्वयंसेवकों की मोर्चाबंदी देख मुसलमान अल्लाह हू अकबर के नारे लगाते हुए मंडी की ओर बढ़ने लगे किंतु मंडी के अंदर से हिंदुओं के पथराव के कारण वह आगे नहीं बढ़ सके क्योंकि मंडी की चारों ओर की दीवारें काफी ऊंची थी जिनसे प्रवेश करना कठिन था और मुसलमानों की संख्या अधिक होने के कारण उन्होंने दीवारों को तोडऩा शुरू कर दिया।