जेएनयू में एक भी शब्‍द क्‍यों नहीं बोलीं दीपिका? ये रहा सबसे बड़ा जवाब  

नई दिल्‍ली। फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के कल देर रात दिल्ली में जेएनयू विजिट के बाद ट्विटर पर  #boycottchhapaak ट्रेंड हो रहा है। दरअसल दीपिका पादुकोण का अचानक जेएनयू पहुंचना कल रात सोशल मीडिया पर दंगल की वजह बन गया। ज्वलंत मुद्दे पर उनकी आने वाली फिल्म छपाक एकाएक विरोध के स्वरों से नवाजी जाने लगी है। दीपिका जेएनयू क्यों पहुंची, उनका जेएनयू जाना उनकी छवि नुकसान पहुंचाएगा या फायदा, हमारा मकसद ये तय करना नहीं है लेकिन बायकॉट की अपील छपाक फिल्म को फायदा पहुंचाएगी या नुकसान, इसका आकलन लगाया जा सकता है।

जेएनयू

बॉलीवुड में इस शुक्रवार नया नजारा देखने को मिलने वाला है। एक तरफ अजय देवगन की सौवीं फिल्म तानाजी – द अनसंग वारियर रिलीज हो रही है औऱ दूसरी तरफ सुपरस्टार रजनीकांत की दरबार रिलीज हो रही है। तीसरी फिल्म खुद दीपिका पादुकोण की छपाक है। पिछले दिनों आए फिल्मी पंडितों के आकलन की मानें तो छपाक इन दो बड़ी फिल्मों के आगे कुछ कमजोर नजर आ रही है।

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दक्षिण भारत में दरबार का मुकाबला कोई फिल्म नहीं कर सकती क्योंकि इससे रजनीकांत द थलाइवा जुड़े हैं। दूसरी तरफ बॉलीवुड में छपाक को तानाजी से भिड़ना होगा। छपाक बेहद संवेदनशील विषय पर बनी शानदार फिल्म कही जा रही है। दूसरी तरफ देशभक्ति के मुद्दे पर बनी तानाजी को भी पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिल रहा है। ऐसे में छपाक को लेकर एकाएक बढ़ी चर्चा का फायदा निश्चित तौर पर होगा।

दरअसल बॉलीवुड में बॉक्स ऑफिस कलेक्शन इस बात से फ्लक्चुएट नहीं करता कि सही गलत क्या है। बॉक्स ऑफिस का कलेक्शन लोगों के जेहन में फिल्म का नाम बार बार आने से घटता बढ़ता है। जैसे जैसे फिल्म जेहन में बैठती जाएगी,जिज्ञासा का स्तर बढ़ेगा और दर्शक फिल्म देखने का फैसला करेगा। बीते दस सालों में फिल्मों के प्रमोशन के नए नए तरीके आए हैं। फर्स्ट लुक, सैकेंड लुक, टीजर, प्रोमो और भी कई तरह के प्रमोशन के फंडे हैं, जो समय समय पर रिलीज होते हैं ताकि दर्शक यानी ऑडिएंस के जेहन में उस फिल्म का नाम बैठा रहे।

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जहां स्टार बड़ा होता है वहां स्टार लगातार मीडिया कवरेज में बना रहता है, दूसरी तरफ जहां स्टोरी और स्क्रिप्ट मौजूदा माहौल के अनुरूप होती है, वहां लगातार शोज, इंटरव्यू और ऐसे ही मुद्दों पर बातचीत ज्यादा मायने रखती है।

अगर बड़ा स्टार फिल्म में हैं तो वो स्टार के नाम से बिकेगी, जैसे शाहरुख, आमिर औऱ सलमान खान के नाम से फिल्में बिकती हैं। अगर फिल्म की विषय वस्तु रोचक है तो वो स्टार के नाम से नहीं बल्कि अपनी स्क्रिप्ट की बार बार चर्चा होने से बिकेगी। शोबिज की दुनिया का दस्तूर है कि जो दिखेगा वो बिकेगा। ऐसे में नए दौर में नैगेटिव पब्लिसिटी भी उस क़ड़वी दवा की तरह पॉजिटिव रिजल्ट देती है जिसे खाने में एकबारगी मरीज को भी उबकाई आ जाए।

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अब आते हैं उन फिल्मों की तरफ जिनमें स्क्रिप्ट भी अच्छी होती है औऱ स्टार भी अच्छा होता है। अच्छी स्क्रिप्ट यानी अपीलिंग, इमोशनल औऱ जनमानस को टच करने वाली। अच्छा स्टार मतलब जिसकी पुरानी फिल्में हिट हुई हों और उसकी एक्टिंग भी लोग पसंद करते हों। ऐसी फिल्मों का प्रमोशन करने के लिए जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती औऱ फिल्में माउथ पब्लिसिटी से ही हिट हो जाती हैं। जैसा कि पिछले दिनों फिल्म बाला के साथ हुआ। फिल्म का ज्यादा प्रमोशन नहीं हुआ लेकिन स्क्रिप्ट जनमानस से जुड़ी थी और स्टार लोगों की उम्मीदों पर पहले से खरा उतरा हुआ था।

अब छपाक के मायने देखे जाएं तो स्क्रिप्ट अच्छी है लेकिन दीपिका अभी भी उतनी बड़ी स्टार नहीं बन पाई हैं कि दर्शक महज उनके नाम पर आंख मूंद कर थिएटर पहुंच जाएं जैसे रजनीकांत या सलमान खान के नाम पर पहुंचते हैं। ऐसे में दीपिका के नाम को एकाएक बड़ा करना या चर्चा में लाना है तो पब्लिसिटी दीपिका के नाम पर होनी चाहिए। यही तो हो रहा है। एक भी शब्द बोले बिना अगर दीपिका जेएनयू से लौट आती हैं तो इसके मायने यही हैं कि वो केवल लोगों के जेहन में अपना नाम बनाए रखने के लिए गई थी। ऐसा न होता तो अन्य एक्टरों की तरह दीपिका भी जेएनयू की घटना पर बाकायदा अपने विचार रखतीं।

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यूं भी देखा जाए तो प्रमोशन का पूरा मामला मीडिया कवरेज पर टिका होता है। किसी भी स्टार और फिल्म की PR टीम की यही कोशिश रहती है कि कैसे भी करके फिल्म औऱ स्टार न्यूज चैनल की हैडलाइंस में दिखें, शोज में दिखें, उनके इंटरव्यू लोगों की नजर में बने रहें। मतलब फिल्म रिलीज होने और देखने तक जेहन में बनी रहे।

ऐसे में किसी भी फिल्म की रिलीज से पहले के दो तीन महीने बिलकुल युद्ध का माहौल बनाया जाता है। दो महीने पहले से ही फिल्म स्टार कहां जाएगा, कहां प्रमोशन करेगा, किस शो में जाएगा, किस तरह की ड्रेस पहनेगा, कैसा इंटरव्यू देगा, ये तय किया जाता है।

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लाखों रुपए महीने पर काम करने वाली ये पीआर टीम स्टार का हर दिन ही नहीं हर लम्हा तय कर डालती है…ऐसे में दीपिका अपनी फिल्म के रिलीज होने से दो दिन पहले रात के वक्त अपनी मर्जी से जेएनयू गई हों, ये बात गले नहीं उतरती। उनका जेएनयू जाना हमारे लिए बड़ा मुद्दा नहीं है, हमारे लिए मुद्दा ये है कि छपाक पर इसका क्या असर होगा।

ये माना जा सकता है कि शायद फ़िल्म की PR टीम ने सोचा होगा कि दस शोज में जाने और 50 इंटरव्यू देने से अच्छा है, एक जोरदार कदम, जो उस वक्त जनता के जेहन में बैठा हुआ हो। ऐसे में जेएनयू जाकर मिलने वाली नेगेटिव पब्लिसिटी भी पॉजिटिव कलेक्शन लेकर आयेगी। और दूसरी बात नैगेटिव पब्लिसिटी आएगी तो पॉजिटिव रिस्पॉन्स भी मिलेगा भले ही कम लेकिन मिलेगा। सोशल मीडिया पर दीपिका को लेकर जो संग्राम हो रहा है, ऐसा होना लाजिमी भी है।

एक और बात, फिल्म की प्रोड्यूसर खुद दीपिका हैं, इसलिए फिल्म की पीआर टीम ने उन्हें एक्ट्रेस की तरह नहीं बल्कि फिल्म के प्रोड्सूयर की तरह सोचने के लिए सुझाव दिया होगा। कहा जा सकता है कि अगर दीपिका फिल्म की प्रोड्यूसर नहीं होतीं, कोई और प्रोड्यूसर होता तो वो दीपिका को जेएनयू जैसे मुद्दे पर रिएक्ट करने की परमिशन देता या नहीं, ये प्रोड्यूसर पर निर्भऱ करता।

हालांकि ऐसा नहीं है कि ज्वलंत मुद्दे को भुनाने का मौका पहली बार किसी एक्टर के हाथ लगा है। पिछले दिनों जब रानी मुर्खजी की मर्दानी 2 रिलीज होने वाली थी, उसी वक्त पर हैदराबाद रेप कांड हो गया। कई कोशिशें की गई कि रानी मुर्खजी इस मामले पर रिएक्ट करें, ऐसे में उनकी फिल्म को भी पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिलता क्योंकि रानी की फिल्म की थीम भी कमोबेश यही थी, लेकिन रानी ने उस मुद्दे को भुनाने से इनकार कर दिया। हालांकि वहां तय भी था कि रानी के रिएक्शन या किसी भी तरह के स्टेप से फिल्म को फायदा ही पहुंचेगा।

दीपिका एक बेहतरीन अभिनेत्री हैं, उनकी फिल्में शानदार होती हैं, अभिनय औऱ खूबसूरती के संगम से परिपूर्ण दीपिका अब एक्ट्रेस की तरह नहीं फिल्म मेकर की तरह सोच रही हैं। हालांकि फिल्म छपाक की हीरोइन भी वहीं हैं और प्रोड्यूसर भी वहीं है। कहीं जाने, किसी मुहिम में शामिल होने न होने का फैसला भी उनका ही है। विरोध और समर्थन के बीच अगर फिल्म छपाक को बायकॉट के बावजूद अच्छी ओपनिंग मिलती है और फिल्म को फायदा मिलता तो निश्चित तौर पर दीपिका पादुकोण एक बेहतरीन एक्ट्रेस के साथ साथ समझदार प्रोड्यूसर की गिनती में भी शामिल हो जाएंगी।

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