जब एवरेस्ट पर चढ़ना टर्निंग पॉइंट बन गया

इंडिया टुडे वुमनसमिटएंड अवार्ड्स कार्यक्रम में आठ चैंपियन महिलाओं ने शिरकत की. इन महिलाओं ने इस सत्र के दौरान आगे बढ़ने में चुनौतियों के साथ-साथ उन्हें हराने के जज्बे की कहानी भी सुनाई.

नर्स और माउंटेनियर आशा झाझड़िया ने कार्यक्रम के दूसरे सत्र ‘स्विमिंग अगेन्स्ट टाइड- फ्लोटिंग टू दि टॉप’ में अपने सफर के बारे में बातचीत की.

माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली 39 वर्षीय आशा झाझड़िया ने बताया कि वे ऐसे राज्य में रहीं जो बेटियों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण माने जाते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं राजस्थान की बेटी हूं, जो राज्य बेटियों को बोझ माना जाता था. मेरी शादी भी एक ऐसे स्टेट में हुई हरियाणा में जहां बेटियों को बोझ माना जाता था. मुझे ऐसा महसूस कराया जाता था कि जैसे कि समाज में मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है. मुझे यह साबित करने के लिए 40 साल लग गए कि बेटियां भी अपना अस्तित्व रखती हैं. मैं एक बेटी हूं और बेटी होकर भी मैंने अपने मां-बाप का नाम रोशन करके दिखाया.’

बता दें कि पर्वतारोहण के दौरान भी उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा और उन्हें कई शव पार करके आगे बढ़ना पड़ा.

लाइफ का टर्निंग पॉइंट

एवरेस्ट चढ़ने के बारे में कब और क्यों सोचा? क्या कभी आपको लगा कि अब और नहीं कर सकती? आशा ने इस सवाल के जवाब में कहा, ‘हमेशा से ऐसी इच्छा थी कि कुछ अलग करूं. मैं कुछ हटकर करूं ताकि मैं समाज के लिए कुछ उदाहरण बन सकूं. मैं 2015 में अमरनाथ यात्रा पर गई थी, अमरनाथ यात्रा में मैने बाल्ताल वाला रूट लिया था. मैंने काफी समय में यात्रा पूरी कर ली क्योंकि मैं बहुत तेजी से चल रही थी. कुछ लड़कियों ने हमसे पूछा कि आपने इतनी तेजी से यात्रा कैसे कर ली? आपने दर्शन भी किए या बीच से ही वापस आ गए? मैंने कहा कि नहीं मैंने पूरी यात्रा की. फिर उन्होंने कहा कि आप तो एवरेस्ट भी चढ़ सकते हो. उनके तारीफ के शब्द मुझे इतना छू गए कि वह मेरा लाइफ का टर्निंग पॉइंट बन गया.’

सपने के लिए जुटाए 30 लाख रुपए

एवरेस्ट फतह के मुकाम तक पहुंचने में आशा के सामने कई दूसरी चुनौतियां भी आईं. नर्स के पेशे में होने के बावजूद उन्होंने एवरेस्ट मिशन के लिए 30 लाख रुपए इकट्ठे किए थे. आशा ने बताया, ‘ये बहुत बड़ी रकम थी, मैं नर्स थी और मेरे पति केवल हेड कॉन्स्टेबल ही थे. मेरे ससुराल वालों को लग रहा था कि ये केवल पैसे बर्बाद करने जा रही है. इतने में तो बेटी की शादी हो जाएगी. लेकिन मैं चाहती थी कि मेरे बच्चों के लिए मैं ही रोल मॉडल बनूं.’

आशा ने बताया, ‘जब मेरी बेटी पैदा हुई तो ससुराल वालों ने उसे मारने की कोशिश की. मैंने उसके लिए काफी संघर्ष किया था. मैं अपनी बेटी और समाज को दिखाना चाहती थी कि एक औरत जब अपनी बेटी के लिए इतना कर सकती है तो वह कुछ भी कर सकती है.’

जब एक ऑस्ट्रेलियन की लाश देखी

झांझरिया ने एवरेस्ट फतह के कई अनुभवों को साझा किया. आशा ने बताया, ‘ मैंने एक ऑस्ट्रेलियाई की लाश भी देखी थी, वह हमसे 3-4 घंटे पहले ही निकले थे. मुझे तब अपनी बेटी बहुत याद आई. मुझे लगा कि अगर इस वक्त मैं मर गई तो मेरी बेटी को कोई नहीं संभालेगा. पैरेंट्स बेटी की शादी करके ही अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं. मुझे पता था कि बेटे को तो सब सपोर्ट कर देंगे लेकिन मेरी बेटी का क्या होगा? मैं अगर वापस हारकर गई तो दुनिया मुझे जीने नहीं देगी. कई चीजें मैंने उस टाइम सोची. उस डेडबॉडी को देखने के बाद मैं फिर से ऊर्जा से भरपूर हो गई. मैंने पूरी समिट के दौरान 17 लाशें देखी थीं. एवरेस्ट फतह करने के बाद मेरे पति ने कहा कि मैंने उनका नाम रोशन कर दिया है.’

आशा ने कहा कि वह सबसे कम समय में एवरेस्ट फतह करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाना चाहती हैं.

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