छठ महापर्व: लोककथाओं की मानें तो इसकी शुरुआत माता सीता ने बिहार में दिया था पहला अर्घ्य…

छठ महापर्व का बिहार में विशेष महत्‍व है। कुछ लोककथाओं की मानें तो इसकी शुरुआत माता सीता ने बिहार के ही मुंगेर स्थित मुद्गल के आश्रम में की थी। वाल्‍मीकि रामायण व आनंद रामायण में इसका वर्णन आता है। माता सीता ने जहां पहला छठ किया था, वह स्‍थान वर्तमान में ‘सीता चरण मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। इसके बाद धीरे-धीरे छठ बिहार सहित पूरे देश मे मनाया जाने लगा। मान्‍यता है कि वहां शिला पर माता सीता के चरण निशान मौजूद हैं।

मान्‍यता है कि बिहार के मुंगेर स्थित गंगा नदी के बबुआ घाट से दो किलोमीटर अंदर गंगा के बीच एक पर्वत पर ऋषि मुद्गल का आश्रम था। माता सीता ने वहीं छठ व्रत किया था। तब मुंगेर का नाम मुद्गल था।

मुद्गल ऋषि की सलाह पर माता सीता ने किया छठ

वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब भगवान राम वनवास के लिए निकले थे, तब वे माता सीता और लक्ष्मण के साथ ऋषि मुद्गल के आश्रम गए थे। वहां माता सीता ने मां गंगा से वनवास सकुशल बीत जाने की प्रार्थना की थी। वनवास व लंका विजय के बाद भगवान राम व माता सीता मुद्गल ऋषि के आश्रम गए। वहां ऋषि ने माता सीता को सूर्य की उपासना करने की सलाह दी। इसके बाद माता सीता ने वहीं गंगा नदी में एक टीले पर छठ व्रत किया था।

ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए किया व्रत

गंगा नदी के बीच स्थित ‘सीता चरण’ पर शोध करने वाले मुंगेर के प्रो. सुनील कुमार सिन्हा के अनुसार भगवान राम ने जब ब्राह्मण रावण का वध किया, तब उन्‍हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। इस पाप से मुक्ति के लिए अयोध्या के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ ने श्रीराम व सीता माता को मुद्गल ऋषि के पास मुंगेर भेजा था। वे बताते हैं कि आनंद रामायण के पृष्ठ संख्या 33 से 36 तक सीता चरण और मुंगेर का उल्लेख है।

ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहकर कीं सूर्योपासना

कहते हैं कि माता सीता ने ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहीं। चूंकि महिलाएं यज्ञ में भाग नहीं ले सकती थीं, इसलिए उन्‍होंने आश्रम में रहकर ऋषि मुद्गल के निर्देश के अनुसार सूर्योपासना का छठ व्रत किया था। व्रत के दौरान माता सीता ने अस्ताचलगामी सूर्य को पश्चिम दिशा में और उगते सूर्य को पूरब दिशा में अर्घ्‍य दिया था।

शिला पर मौजूद माता सीता के चरणों के निशान

माता सीता ने जहां छठ व्रत किया था, वहां मंदिर बना है। मंदिर के गर्भ गृह में पश्चिम और पूरब दिशा की ओर माता सीता के चरणों के निशान मौजूद  हैं। वहां शिला पर सूप, डाला तथा लोटा के निशान भी हैं।

सन् 1974 में बनाया गया सीताचरण मंदिर

सन् 1974 में मंदिर निर्माण के पहले श्रद्धालु शिला पर बने चरण निशान की पूजा करते थे। 1972 में सीताचरण में हुए संत सम्मेलन के फैसले के अनुसार वहां दो साल में मंदिर का निर्माण किया गया।

अन्‍य जगह मिले चरण निशानों में है समानता

खास बात सह है कि सीताचरण मंदिर के सीता के चरण निशान देश के अन्य मंदिरों में मौजूद ऐसे निशानों से मिलते हैं। प्रसिद्ध ब्रिटिश शोधकर्ता गियर्सन ने इस मंदिर के पदचिह्न तथा माता सीता के जनकपुर मंदिर, चित्रकूट मंदिर, मिथिला मंदिर आदि में मौजूद चरण निशानों के बीच समानता पाई।

Back to top button