कड़ाके की सर्दी में स्नोफॉल का मजा लेने के लिए जाए कुल्लू

कड़ाके की सर्दी में स्नोफॉल का मजा, रात को चाय की चुस्कियों के साथ आग सेकना ओर कोहरे के बीच चहलकदमी करना भला किसे अच्छा नहीं लगता।मैदानी इलाकों की दौड़ भाग वाली जिंदगी से दूर बसी कुल्लू घाटी में आपको यह सब अहसास करने को मिल सकता है।गर्मियों में यहाँ काफी भीड़ रहती है और लगभग सारे होटल बुक रहते हैं तो क्यों न आप इन सर्दियों की छुट्टियों का मजा कुल्लू में लें।यहाँ कुल्लू के साथ साथ आस पास घूमने की कई शानदार जगह हैं जहाँ तक आप बार बार आना पसंद करेंगे।तो आइए जानते हैं कुल्लू घाटी के आस पास की इन जगहों के बारे में

कुल्लू
यह इस जिले की राजधानी भी है।कुल्लू ब्यास नदी के किनारे बसा हुआ एक छोटा और सुंदर शहर है।कुल्लू घाटी को पहले कुलंथपीठ कहा जाता था। कुलंथपीठ का शाब्दिक अर्थ है रहने योग्य दुनिया का अंत। इस इलाके को देवताओं की घाटी भी कहा जाता है।यहां का सत्रहवीं सदी में बना रघुनाथ जी का मंदिर बहुत ही पवित्र स्थान है।कुल्लू अपने दशहरे के लिए भी जाना जाता है। यहां दशहरा सब जगहों के दशहरा मेले के बाद मनाया जाता है।यहां वाटर स्पोर्ट्स का भी मजा लेने के लिए कई जगह हैं इनमे पिरडी, रायसन, कसोल नागर और जिया प्रमुख हैं।

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बिजली महादेव
कुल्लू शहर से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर बिजली महादेव का मंदिर है।इस मंदिर तक पहुंचने के लिए कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है।।मन्दिर पर 100 मीटर लंबी ध्वजा चढ़ाई जाती है।इस मन्दिर पर कई बार बिजली गिर चुकी है जिससे मंदिर में शिव लिंग कई बार खण्डित हो चुका है जिसे मक्खन से जोड़ा जाता है।

नग्गर

यह लगभग 1400 सालों तक कुल्लू की राजधानी रहा।यहां रूसी चित्रकार की कला दीर्घा है।साथ ही यहां विष्णु कृष्ण तथा त्रिपुर सुंदरी के मन्दिर भी दर्शनीय हैं।यहां लकड़ियों से बने घर बहुत ही सुंदर लगते हैं।
देवटिब्बा

कहते है अर्जुन ने यहां पाशुपत अस्त्र प्राप्त करने के लिए साधना की थी इसलिए इस स्थान को इन्द्रलिका भी कहा जाता है।यह स्थान समुद्र तल से लगभग तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
मणिकर्ण
यह स्थान कुल्लू से 43 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।यहां गर्म पानी के झरने हैं। यहस्थान हिन्दू और सिख आस्था का केंद्र है।

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