कोरोना संक्रमित गंभीर मरीजों की जीवन रक्षक बनेगी ये नई तकनीक, वेंटिलेटर की नहीं होगी जरूरत…

नई चिकित्सा पद्धति `इकोमा` बिहार में कोरोना के गंभीर मरीजों का जीवन रक्षक बनेगा। राज्य में बढ़ते संक्रमण और कोरोना पीड़ितों की गंभीर होती शारीरिक परेशानी को देखते हुए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) पटना ने इस नई चिकित्सा पद्धति को अपनाने का निर्णय लिया है। 

बिहार में एम्स ने ही सबसे पहले प्लाज्मा थेरेपी के माध्यम से कोरोना पीड़ितों का इलाज शुरू किया है और इसमें सफलता भी मिली है। लेकिन वैसे मरीज जिन्हें कोरोना के कारण श्वास लेने में बेहद परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें वेंटिलेटर पर ले जाना मुश्किल है, उनके लिए अब ”इकोमा” का सहारा लिया जाएगा। इससे अधिक से अधिक कोरोना मरीज स्वस्थ हो सकेंगे। 

वेंटिलेटर की नहीं होगी जरूरत 
एम्स, पटना के नोडल अधिकारी डॉ. संजीव कुमार के अनुसार श्वांस की क्रिया अवरुद्ध होने पर तत्काल हार्ट और लंग्स को रेस्ट (स्थिर ) देकर शरीर में रक्त की आपूर्ति जारी रखने की प्रक्रिया को इकोमा चिकित्सा पद्धति कहते हैं। इस पद्धति से इलाज में मरीज को वेंटिलेटर पर ले जाने की जरूरत नहीं होती है। वर्तमान में वेंटिलेटर की सुविधा दिए जाने के बावजूद गंभीर मरीजों के जीवन की रक्षा में विशेष सफलता नहीं मिल रही है। इसलिए इकोमा के देशभर में किये जा रहे प्रयोग का अध्ययन एम्स, पटना में  किया जा रहा है। यह प्रयोग बंगलुरु और कोलकाता में किया जा रहा है। 

अध्ययन के बाद प्रस्ताव तैयार होगा
जानकारी के अनुसार इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर), नई दिल्ली से इकोमा पद्धति से इलाज शुरू करने के लिए स्वीकृति लेनी होगी। हालांकि, आईसीएमआर के दिशा- निर्देशों में इकोमा का भी जिक्र है, लेकिन अध्ययन के बाद ही प्रस्ताव तैयार कर इस चिकित्सा पद्धति से इलाज शुरू किए जाने की अनुमति मांगी जाएगी। 

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