इस्लामिक कानून के मुताबिक शादी की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई, पढ़े पूरी खबर

निचली अदालत और हाई कोर्ट ने जिस शादी को शून्य मान लिया उस शादी की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करने को राजी हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर सुनवाई के लिए अपनी सहमति दे दी है, जिसमें एक नाबालिग मुस्लिम लड़की ने दावा किया है कि उसने मुस्लिम कानून (शरिया) के हिसाब से निकाह किया है. वह प्यूबर्टी (रजस्वला होने) की उम्र पा चुकी है और अपनी वैवाहिक जिंदगी जीने को आजाद है.

उत्तर प्रदेश की एक लड़की ने शादी की तय संवैधानिक उम्र 18 साल होने से पहले किए गए अपने विवाह को वैध घोषित करने की इस आधार पर कोर्ट से गुहार लगाई है कि इस्लामिक कायदे से 16 साल की उम्र को लड़की की शादी के लायक माना जाता है लिहाजा उसे विवाह करने का अधिकार है.

HC के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

युवती की ओर से इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. हाई कोर्ट ने युवती की शादी को शून्य करार देते हुए उसे शेल्टर होम में भेजने का आदेश दिया था. फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि वह शादीशुदा है. ऐसे में उसे दांपत्य जीवन बसर करने की इजाजत दी जाए.

यह मामला उत्तर प्रदेश के अयोध्या का है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने इस मामले में दाखिल अर्जी पर सुनवाई के दौरान इसे विस्तार से सुनने के लिए सहमति देते हुए यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है कि क्यों ना याचिकाकर्ता को इसकी इजाजत दे दी जाए. जबकि हाई कोर्ट ने शादी को शून्य करार दे दिया है.

निचली अदालत ने भेजा शेल्टर होम

शादी के वक्त लड़की की उम्र 16 साल बताए जाने के बाद अयोध्या की निचली अदालत ने मामले की सुनवाई के दौरान आदेश दिया कि लड़की चूंकि नाबालिग है ऐसे में उसे शेल्टर होम भेजा जाए. लड़की ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी.

लेकिन हाई कोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता लड़की नाबालिग है और वह अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहती, लिहाजा उसे शेल्टर होम में भेजने का आदेश सही है. इस आदेश के साथ ही हाई कोर्ट ने शादी को शून्य करार दे दिया.

पसंद के व्यक्ति से शादी करने में सक्षम

हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपनी याचिका में युवती ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि इस्लामिक कानून के तहत कोई भी लड़की अमूमन 16 साल की आयु यानी रजस्वला होने पर वह अपनी जिंदगी के बारे में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है, यानी वह अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने में सक्षम है.

इस युवती ने अपने वकील दुष्यंत पाराशर के जरिए  दायर एसएलपी में कहा है कि हाई कोर्ट इस तथ्य को मानने में विफल रहा है कि उसका निकाह मुस्लिम कानून के अनुसार हुआ है. याचिका में लड़की ने अपने जीने, धार्मिक मान्यताओं का पालन करने और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा के लिए दलील दी है कि वह एक युवक से प्रेम करती है और इस साल जून में मुस्लिम कानून के अनुसार उनका निकाह हो चुका है.

इस कथित निकाह के बाद युवती के पिता ने लड़के के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज करा दिया. युवती के पिता ने अपनी शिकायत में कहा कि एक युवक ने अपने साथियों के साथ मिलकर उसकी बेटी का अपहरण कर लिया है. हालांकि, लड़की ने मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराए गए अपने बयान में कहा कि उसने उस व्यक्ति से अपनी मर्जी से शादी की है. वह उसके ही साथ रहना चाहती है.

स्थानीय कोर्ट ने 24 जून को दिए अपने फैसले में कहा कि भारतीय कानून के मुताबिक लड़की की उम्र शादी के लायक नहीं हुई है और कोर्ट ने लड़की को 18 साल की उम्र पूरी करने तक बाल कल्याण कमिटी, बहराइच के पास भेज दिया था.

HC ने खारिज की थी पति की याचिका

इस पर लड़की के पति ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के सामने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की तो बेंच ने लड़की के पति की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रॉटेक्शन) एक्ट के तहत लड़की को नाबालिग ही माना जाएगा. लिहाजा यह शादी अमान्य है.

हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले से सहमति जताते हुए लड़की को वूमन शेल्टर होम भेज दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट इस विवाद को नए नजरिए से सुनेगा, यानी मुस्लिम आबादी के लिए देश का कानून और इस्लामिक कानून में से कौन सा कब, कहां और कैसे लागू होगा यह भी साफ हो जाएगा.

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