शास्त्रों से जानें भगवान सूर्य की महत्ता और महिमा

हिंदू शास्त्रों में सूर्य देव को सारे जगत का कर्ता-धर्ता कहा गया है। ऋग्वेद के देवताओं में सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वहीं ब्रह्मवैर्वत पुराण में तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप माना जाता है। इतना ही नहीं प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। इसके साथ नव ग्रह में भी सूर्य देव को सबसे प्रथम स्थान दिया गया है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है। पुराणों में सूर्य की उत्पत्ति, प्रभाव, स्तुति, मंत्र इत्यादि विस्तार से मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों में सूर्य को राजा का पद प्राप्त है। तो आईए आज जानें सूर्य देव से संबंधित कुछ एेसी बहुत ही दिलचस्प बात बताने जा रहे हैं। शास्त्रों से जानें भगवान सूर्य की महत्ता और महिमा

सूर्य देव की उत्पत्ति
मार्कंडेय पुराण के अनुसार  पहले यह सम्पूर्ण जगत प्रकाश रहित था। उस समय कमलयोनि ब्रह्मा जी प्रकट हुए। उनके मुख से प्रथम शब्द ॐ निकला जो सूर्य का तेज रुपी सूक्ष्म रूप था। तत्पश्चात ब्रह्मा जी के चार मुखों से चार वेद प्रकट हुए जो ॐ के तेज में एकाकार हो गए। 
 
यह वैदिक तेज ही आदित्य है जो विश्व का अविनाशी कारण है। ये वेद स्वरूप सूर्य ही सृष्टि की उत्पत्ति,पालन व संहार के  कारण हैं। ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर सूर्य ने अपने महातेज को समेट कर स्वल्प तेज को ही धारण किया। 

सृष्टि रचना के समय ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि हुए जिनके पुत्र ऋषि कश्यप का विवाह अदिति से हुआ। अदिति ने घोर तप द्वारा भगवान् सूर्य को प्रसन्न किया जिन्होंने उसकी इच्छा पूर्ति के लिए सुषुम्ना नाम की किरण से उसके गर्भ में प्रवेश किया। गर्भावस्था में भी अदिति चान्द्रायण जैसे कठिन व्रतों का पालन करती थी। ऋषि राज कश्यप ने क्रोधित हो कर अदिति से कहा-‘तुम इस तरह उपवास रख कर गर्भस्थ शिशु को क्यों मरना चाहती हो।”

यह सुन कर देवी अदिति ने गर्भ के बालक को उदर से बाहर कर दिया जो अपने अत्यंत दिव्य तेज से प्रज्वल्लित हो रहा था। भगवान् सूर्य शिशु रूप में उस गर्भ से प्रगट हुए। अदिति को मारिचम- अन्डम कहा जाने के कारण यह बालक मार्तंड नाम से प्रसिद्ध हुआ। ब्रह्मपुराण में अदिति के गर्भ से जन्मे सूर्य के अंश को विवस्वान कहा गया है। 

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