शरीफ की शराफत

naw-1443640038ब नवाज शरीफ को कौन समझाए कि भारत-पाकिस्तान के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बंध सिर्फ बयान देने से नहीं बनेंगे बल्कि इसके लिए ‘मुंह में राम और बगल में छुरी’ वाली नीति को छोड़ना होगा। शरीफ ने भारत-पाक को अच्छे पड़ोसियों की तरह रहने की जो नेक सलाह दी है, उसे जुमलेबाजी के अलावा कुछ नहीं माना जा सकता। शरीफ एक तरफ भाई चारे-अमन की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ हुर्रियत कॉन्फें्रस के कट्टरपंथी नेताओं को दावत पर भी बुला रहे हैं। 
 
वे चाहते हैं कि दोनों देश अच्छे पड़ोसियों की तरह रहें तो सबसे पहले खुद उन्हें अच्छा बनना पड़ेगा। शरीफ को सबसे पहले पाकिस्तान में जड़ें जमाए बैठे उन आतंककारी संगठनों को नेस्तनाबूद करना होगा जो भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते रहते हैं। शरीफ को दाऊद इब्राहिम, हाफिज सईद और उन सरीखे दूसरे आतंककारियों को भारत को सौंपना होगा। शरीफ अगर ये सब करने का साहस रखते हैं तो सम्बंध अपने आप सुधरने लगेंगे। 
 
   शरीफ को  ये भी समझना होगा कि आज के हालात में दोनों देशों के अच्छे पड़ोसियों की तरह रहने से सबसे अधिक फायदा पाकिस्तान को ही होगा। भारत को कमजोर करने के लिए जिन आतंककारी संगठनों को पाकिस्तान ने हवा दी उनमें से अधिकांश अब पाकिस्तान को तबाह करने पर उतारू हैं। कर्ज के बोझ तले दबा पाकिस्तान विकास की दौड़ में पिछड़ना तो दूर शामिल भी नहीं हो पाया है। 
 
शरीफ ही नहीं पाकिस्तान के तमाम राजनेताओं और सैन्य अफसरों को इस बात का भी विश्लेषण करना चाहिए कि भारत के साथ तीन युद्ध करके उसने हासिल क्या किया? दुनिया में भारत की गिनती अग्रणी देशों में होती है लेकिन पाकिस्तान एशिया में भी अपनी पहचान नहीं बना पाया। ये मौका ‘बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुध लेयÓ कहावत को चरितार्थ करने का है। जो आज तक नहीं हुआ, वो आगे क्यों नहीं हो सकता? जरूरत ईमानदारी के साथ आगे बढ़ने की है। 
 
  अपने जन्म के समय से ही कश्मीर का राग अलापने वाला पाकिस्तान आज अपने गिरेबां में झांककर देखे तो उसे असलियत पता चल जाएगी। भारत के कश्मीर की बात तो दूर खुद उसके हिस्से वाले कश्मीर में भी बगावत की आवाज सुनाई देने लगी है। 
 
जम्मू-कश्मीर के लोग तो हर छह साल बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था में बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं और दुनिया को दिखा देते हैं कि वे क्या चाहते हैं? पाकिस्तान अच्छे पड़ोसियों की तरह रहना शुरू कर दे तो उसे जल्दी पता चल जाएगा कि पिछले 68 सालों में उसने क्या खोया और क्या पाया?

 

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