बड़ी शान से निकली हज़रत क़ासिम की मेहंदी

mehndiलखनऊ, 22 अक्टूबर.हज़रत इमाम हुसैन के भतीजे हज़रत कासिम की याद में सातवीं मोहर्रम को बड़े इमामबाड़े से छोटे इमामबाड़े के बीच मेंहदी का जुलूस निकाला गया. हज़रत की शहादत से ठीक एक दिन पहले उनकी शादी हुई थी. इसी की याद में सात मोहर्रम को हज़रत कासिम की मेंहदी का जुलूस निकाला गया.

जुलूस में शादी का माहौल बनाया गया था

शाही मेंहदी के जुलूस में हाथी, ऊँट, रंग-बिरंगे झंडे, उपहारों के थाल के साथ शादी का माहौल तैयार किया गया था. तो शहनाई और बैंड की धुनों से निकलती `रो के बेवा हसन की पुकारी, आज मेंहदी है कासिम तुम्हारी, जाऊं सौ बार मैं तुम में वारी, आज मेंहदी है कासिम तुम्हारी`. को सुनकर लोग ग़मगीन हो गए. हुसैनाबाद ट्रस्ट की ओर से निकलने वाले इस मेंहदी के जुलूस में हज़ारों अजादारों ने शिरकत की. जुलूस शाम 7 बजे शुरू हुआ और एक किलोमीटर का रास्ता तय करने में उसे 7 घंटे लगे.

हज़रत कासिम का ज़िक्र सुनकर रोये अजादार

बड़े इमामबाड़े से जुलूस शुरू होने से पहले मौलाना मोहम्मद अली हैदर ने मजलिस को खिताब किया. मौलाना ने हजरत कासिम की शादी का मंज़र पेश किया. मजलिस को सुनकर अजादार खूब रोये.

मातम और नौहों से सजा जुलूस

मजलिस के बाद शुरू हुए जुलूस में मशहूर सोजखान हादी रजा ने तमाम मर्सिये पेश किये, जिसे सुनकर लोग जारोक़तार रोये. जुलूस में कई अन्जुमनें शामिल हुईं, जिन्होंने अपने नौहों और मातम से जुलूस को सजाया.

कल्बे जवाद ने कहा, प्रशासन माहौल खराब कर रहा है

दूसरी तरफ मौलाना कल्बे जवाद ने जिला प्रशासन पर इलज़ाम लगाया कि वह पुलिस के ज़रिये हिन्दू व दूसरे धर्मों के होर्डिंग व बैनर यह कहकर हटवा रही है कि मैंने इस पर एतराज़ जताया है. उन्होंने कहा कि मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा है. प्रशासन सिर्फ पुराने शहर का माहौल खराब करने के लिए इस तरह की हरकतें कर रहा है.

हज़रत कासिम की शहादत का हाल का बयान

सातवीं मोहर्रम को पुराने लखनऊ के इमामबाड़ों में उलेमा ने हज़रत कासिम की शहादत को दर्दनाक अंदाज़ में पेश किया.

लब्बैक या हुसैन पर अलकायदा को भी एतराज़

इमामबाड़ा गुफरान्माब में मौलाना कल्बे जवाद ने कहा कि लब्बैक या हुसैन पर लखनऊ के जिला प्रशासन ने लगाईं है. यही काम अलकायदा और दाईश भी करता है. आतंकियों को भी इमाम हुसैन के नाम पर एतराज़ होता है.

रसूल भी जानते थे लिखना

इमामबाड़ा आगा बाकर में मौलाना मीसम जैदी ने कहा कि अल्लाह ने रसूल से कुरान का सूरह लिखकर काबे पर लगाने को कहा. इससे यह पता चलता है कि वह पढ़े-लिखे थे. लेकिन उन पर इलज़ाम लगाया जाता है कि वह लिखना-पढ़ना नहीं जानते थे. मदरसा नाजमिया में मौलाना हमीदुल हसन ने कहा कि दुनिया में कोई ऐसी जगह नहीं है जहाँ पर अहलेबैत के नक़्शे कदम न हों.

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