जानिए, बिना ठोस नतीजे के कैसे खत्म हुआ किसान आंदोलन

दो दिन से दिल्ली की सीमा पर डटे किसानों की केंद्र सरकार से बातचीत मंगलवार रात को विफल हो गई थी। बुधवार सुबह 8 बजे फिर वार्ता होने की घोषणा कर दी थी। लेकिन अचानक रात 12:30 बजे उन्होंने समझौते की घोषणा कर आंदोलन खत्म कर दिया। आखिर डेढ़ घंटे में ऐसा हुआ कि भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) ने दिन भर लाठी और वाटर कैनन की मार झेल चुके किसानों को घर लौटने को मना लिया।

जानिए, बिना ठोस नतीजे के कैसे खत्म हुआ किसान आंदोलन

बीकेयू की पंद्रह मांगों में से नौ पर केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह बात करने को तैयार हुए। किसान नेताओं का दावा है कि इनमें से सात मांगें सरकार ने मान लीं। केवल सी2+एफएल को न्यूनतम समर्थन मूल्य में शामिल करने करने और कर्ज माफी की मांग पर बात करने से उन्होंने इनकार कर दिया। ऐसा इसलिए कि पहली मांग नीतिगत फैसला है, जबकि दूसरी मांग राज्यों के अधिकार क्षेत्र में है।

किसान नेताओं का दावा है कि सरकार ने अधिकतर मांगें मान ली हैं। हालांकि सरकार ने 10 साल पुराने ट्रैक्टर के दिल्ली में प्रवेश पर रोक के मामले में कहा कि प्रतिबंध केंद्र ने नहीं बल्कि एनजीटी ने लगाया है। सरकार प्रतिबंध हटाने की सिफारिश एनजीटी को भेजेगी। सरकार ने पशु और फसल बीमा के प्रीमियम देने का मामला एक कमेटी को भेजने का आश्वासन दिया। गन्ना बकाए पर सरकार का कहना था कि उन्होंने राज्य सरकार को पैकेज पहले ही दे दिया है और जल्द ही भुगतान हो जाएगा। 

खेती के सामान पर जीएसटी घटा कर अधिकतम पांच फीसदी करने की सिफारिश भी जीएसटी काउंसिल को भेज दी जाएगी। खेतिहर मजदूरों को मनरेगा में शामिल करने के बारे में कहा कि यह मामला शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में बनी मुख्यमंत्रियों की समिति के पास विचाराधीन है। यानी किसानों के हाथों ठोस तो कुछ भी लगा नहीं। 

बस हरिद्वार से चली किसान यात्रा को दिल्ली में प्रवेश की इजाजत दे दी गई। बीकेयू नेता नरेश टिकैत ने कहा भी कि हमारी लड़ाई आत्मसम्मान की थी। हम हरिद्वार से राजघाट के लिए चले थे। सरकार हमें किसान घाट और राजघाट जाने देने पर राजी हो गई है। इसलिए आंदोलन खत्म किया जा रहा है।

इसलिए खत्म हुआ आंदोलन

टिकैत बंधुओं से नाराज किसान नेताओं का मानना है कि बीकेयू पिछले कुछ समय से अंदरूनी कलह से ग्रस्त है और उसके एक दर्जन से ज्यादा गुट बन गए हैं। यह आंदोलन किसानों की मांगों से ज्यादा राकेश और नरेश टिकैत के नेतृत्व की स्वीकार्यता बनाए रखने को लेकर था। एक ओर उनके एक सहयोगी धर्मेंद्र मलिक यूपी सरकार में किसान समृद्धि आयोग के सदस्य हैं, जबकि टिकैत खुद आंदोलन कर रहे हैं। राकेश रालोद के टिकट पर 2009 में अमरोहा से चुनाव लड़ चुके हैं। इस बार उनके बिजनौर से बतौर निर्दलीय लड़ने की चर्चा है। 

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