जातीय राजनीति का सिरमौर बनने की ललक में भाजपा

प्रमुख संवाददाता
लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब दो साल से कम समय रह गया है. सभी राजनीतिक दल चुनावी समर में सबसे ज्यादा ताकतवर बनने की मुहीम में जुट गए हैं. प्रियंका गांधी ने प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर जिस तरह से सरकार को घेरा और जिस तरह से प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू ने लगातार संघर्ष का रास्ता अपनाया उसने मृतप्राय कांग्रेस में जान फूंक दी.

बीजेपी ने राम मंदिर का भूमि पूजन कराकर माहौल अपने पक्ष में तैयार किया तो समाजवादी पार्टी ने भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने की बात कहकर ब्राह्मण सम्मान का सवाल उठा दिया.

उत्तर प्रदेश में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार है. मौजूदा सरकार के सामने विपक्ष की भूमिका ताकतवर नहीं है. लेकिन पिछले दिनों मुठभेड़ों में मारे गए अधिकाँश बदमाशों के ब्राह्मण होने के मामले पर सवाल उठा तो सरकार बैकफुट पर आ गई.

 
बीजेपी आमतौर पर यह दावा करती रही है कि वह जातियों की राजनीति नहीं करती है लेकिन आज प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने अपनी 41 सदस्यीय प्रदेश कार्यसमिति की जो सूची पेश की है उसमें खुलकर यह बताया है कि उसने किस जाति को कितना प्रतिनिधित्व दिया है.
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जातियों की राजनीति दूसरे राजनीतिक दल भी करते हैं लेकिन बीजेपी ने पहली बार लिखा पढ़ी में यह बताया है कि अपनी 41 सदस्यीय प्रदेश कार्यसमिति में उसने सामान्य वर्ग के 21, पिछड़े वर्ग के 12 अनुसूचित जाति के 7 और अनुसूचित जनजाति के एक व्यक्ति को प्रतिनिधित्व दिया है. इस सूची को जारी कर जातियों की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों में बीजेपी पहले नम्बर पर आ गई है.

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