वर्ल्ड टीबी डे: अगर आपके शरीर में दिखे ये लक्षण तो बिल्कुल भी ना करें नजरअंदाज…

हर साल 24 मार्च को वर्ल्ड टीबी डे मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को इस बीमारी और इसके बचाव के प्रति जागरुक करना है. माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नाम के बैक्टीरिया की वजह से ये बीमारी होती है. आइए जानते हैं कि ट्यूबरक्लोसिस होने के क्या लक्षण हैं और किस तरह इससे बचाव किया जा सकता है.

ट्यूबरक्लोसिस एक संक्रामक बीमारी है जो आमतौर पर फेफड़ों पर हमला करती है. धीरे-धीरे ये दिमाग या रीढ़ समेत शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकती है. टीबी के ज्यादातर मामले एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक हो जाते हैं लेकिन इसमें बहुत वक्त लग जाता है. आमतौर पर इसकी दवा 6 से 9 महीने तक चलती है.

ट्यूबरक्लोसिस दो तरह के होते हैं. पहला है लेटेंट टीबी जिसमें आमतौर पर लोग बीमार नहीं पड़ते हैं. इसमें शरीर में कीटाणु तो होते हैं लेकिन आपका इम्यून सिस्टम इसे फैलने से बचा लेता है. ये संक्रामक नहीं होता है और इसमें लक्षण साफतौर पर दिखाई नहीं देते हैं. हालांकि शरीर में होने की वजह से ये कभी भी एक्टिव हो सकता है. दूसरे तरह के टीबी को एक्टिव टीबी कहते हैं. इसमें कीटाणु बहुत जल्दी पूरे शरीर में फैलने लगते हैं जिससे आप बीमार पड़ जाते हैं. एक्टिव टीबी संक्रामक होता है. 

टीबी के लक्षण- लेटेंट टीबी के कोई लक्षण नहीं होते हैं. स्किन या ब्लड टेस्ट के जरिए इसे पता लगाता या सकता है. वहीं एक्टिव टीबी में 3 हफ्ते से ज्यादा तक कफ बना रह सकता है. छाती में दर्द, खांसी में खून आना, थकान, रात में पसीना आना, ठंड लगना, बुखार, भूख ना लगना और वजन कम हो जाना इसके मुख्य लक्षण हैं. अगर आपको इनमें से कोई लक्षण महसूस हो रहे हैं तो डॉक्टर से संपर्क कर अपना टेस्ट कराएं.

टीबी के कारण- फ्लू की तरह हवा के जरिए फैलने वाले बैक्टीरिया से टीबी होता है. ये एक संक्रामक बीमारी है और किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से ही फैलती है. इसके अलावा HIV के मरीजों, अस्पताल में काम करने वाले लोगों और सिगरेट पीने वालों में इसका खतरा ज्यादा होता है. 

हेल्दी इम्यून सिस्टम के जरिए टीबी बैक्टीरिया से लड़ा जा सकता है लेकिन अगर आपको HIV, डायबिटीज, किडनी की बीमारी, सिर या गर्दन का कैंसर है या फिर आपका वजन बहुत कम है तो आपको ये बीमारी आसानी से हो सकती है. इसके अलावा अर्थराइटिस, क्रोहन रोग और सोरायसिस की दवाएं लेने वालों में भी टीबी होने की संभावना ज्यादा होती है.

टीबी की बीमारी संक्रामक तो है लेकिन ये आसानी से नहीं फैलती है. अगर आप किसी एक्टिव टीबी मरीज के साथ बहुत लंबे समय तक रहते हैं तो ही आपको ये होने की संभावना है. आमतौर पर ये ऑफिस में काम करने वाले लोगों, दोस्तों या परिवार के सदस्यों से होता है. इसके किटाणु किसी सतह पर नहीं होते हैं और ना ही ये हाथ मिलाने या फिर खानपान शेयर करने से होता है.

टीबी का इलाज- इसका इलाज इस पर निर्भर करता है कि आपको किस तरह का ट्यूबरक्लोसिस है. लेटेंट टीबी होने पर आपको ऐसी दवा दी जाएगी जिसमें बैक्टीरिया एक्टिव ना हो पाएं. ये दवाएं 9 महीने तक लेनी होती हैं. वहीं एक्टिव टीबी होने पर कुछ और दवाएं दी जा सकती हैं जिन्हें 6-12 महीने तक लेना होता है. अगर आपको किन्ही दवाओं की वजह से टीबी हुआ है तो इसका ट्रीटमेंट अलग होगा और इसमें 30 महीने तक दवा लेनी पड़ सकती है.  टीबी की दवाएं लंबी चलती हैं लेकिन इसे कभी भी आधी-अधूरी नहीं छोड़नी चाहिए. ज्यादातर लोग बेहतर महसूस करने के बाद इसकी दवा लेना बंद कर देते हैं और इसकी वजह से बैक्टीरिया वापस से हमला कर देता है. जिन देशों में टीबी की बीमारी आम है, वहां बच्चों को बीसीजी वैक्सीन लगवाई जाती है. 

इन बातों का रखें ध्यान- अगर आपको लेटेंट इंफेक्शन है तो अपनी दवाएं लगातार लेते रहें ताकि वो बैक्टीरिया एक्टिव और संक्रामक ना हो पाए. अगर आपको एक्टिव टीबी है तो लोगों के साथ अपना संपर्क कम कर दें. हंसते, छींकते या खांसते समय अपना मुंह ढक कर रखें. ट्रीटमेंट के पहले हफ्ते मास्क लगाकर रखें. ऐसी जगहों पर जाने से बचें जहां टीबी आसानी से फैल सकता है.

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