क्या अतीक के उतरने से क्या सपा का बिगड़ेगा समीकरण, BJP को मिलेगा फायदा?

फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी को मात देने के लिए सपा-बसपा ने 23 साल पुरानी दुश्मनी को भुलाकर ‘दोस्ती’ का हाथ मिलाया है. सपा उम्मीदवार नागेंद्र पटेल को बसपा समर्थन कर रही है. इससे बीजेपी उम्मीदवार कौशलेंद्र पटेल के पसीने छूट रहे हैं, वहीं बाहुबली अतीक अहमद के निर्दलीय मैदान में उतर जाने से मुकाबला बेहद रोचक हो गया है.

क्या अतीक के उतरने से क्या सपा का बिगड़ेगा समीकरण, BJP को मिलेगा फायदा?
क्या अतीक के उतरने से क्या सपा का बिगड़ेगा समीकरण, BJP को मिलेगा फायदा?

बता दें कि फूलपुर संसदीय क्षेत्र में ओबीसी वोटर सबसे अधिक हैं और इनमें भी पटेल मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है. ऐसे में सपा और बीजेपी दोनों ने जातीय समीकरण को देखते हुए अपने-अपने प्रत्याशी उतारे हैं. इसके जरिए दोनों दलों ने पटेल वोटरों को अपने खेमे में लाने की कवायद की है.

फूलपुर सीट पर बीजेपी और सपा उम्मीदवार के बीच मुख्य मुकाबला माना जा रहा है. लेकिन सपा का खेल जहां अतीक बिगाड़ते हुए नजर आ रहे हैं, वहीं कांग्रेस ने ब्राह्मण समाज के मनीष मिश्रा को उतारकर बीजेपी की राह में रोड़ा अटका दिया है.

बसपा का समर्थन मिलने के बाद सपा उम्मीदवार को लग रहा है कि वो काफी मजबूत स्थिति में है. बीएसपी के समर्थन का बेशक सीधा फायदा सपा को होगा. हालांकि सपा के लिए मुश्किलें अतीक अहमद ने खड़ी कर रखी है. अतीक 2004 में फूलपुर सीट से सपा के प्रत्‍याशी के रूप में लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. इस बार उनके चुनावी मैदान में उतरने से सपा को अल्‍पसंख्‍यक वोटों के नुकसान के कयास लगाए जा रहे हैं. फूलपुर के मुस्लिम इलाकों में अतीक की अच्‍छी खासी पकड़ है. ऐसे में इसका खामियाजा आखिरकार सपा को ही झेलना पड़ेगा.

फूलपुर का जातीय समीकरण

फूलपुर में जातीय समीकरण काफी दिलचस्प है. इस संसदीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा पटेल मतदाता हैं, जिनकी संख्या करीब तीन लाख है. मुस्लिम ढाई लाख, यादव और कायस्थ मतदाताओं की संख्या भी दो लाख के आसपास है. लगभग डेढ़ लाख ब्राह्मण और एक लाख से अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता हैं. फूलपुर की सोरांव, फाफामऊ, फूलपुर और शहर पश्चिमी विधानसभा सीट ओबीसी बाहुल्य हैं. इनमें कुर्मी, कुशवाहा और यादव वोटर सबसे अधिक हैं.

मोदी लहर में बीजेपी का खुला खाता

बीजेपी पहली बार मोदी लहर में 2014 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर सीट पर अपनी जीत का परचम लहराने में कामयाब रही थी. केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी उम्मीदवार के तौर 2014 में फूलपुर सीट से सांसद बने, लेकिन मार्च 2017 में यूपी के डिप्टी सीएम बनने और उनके फूलपुर से इस्तीफा देने के बाद उपचुनाव हो रहा है.

जीत बरकरार रखना आसान नहीं

यूपी में बीजेपी की लहर 2014 के लोकसभा या 2017 के विधानसभा चुनाव जैसी नहीं दिख रही. बीजेपी का जो माहौल था, वह काफी बदल चुका है. योगी के एक साल के कार्यकाल को देखा जाए तो उनके पास गिनाने को कुछ खास उपलब्धियां भी नहीं हैं. यूपी के डिप्टी सीएम केशव मौर्य मोदी लहर के सहारे कौशलेंद्र को जिताने के लिए जी जान लगाए हुए हैं.

सपा-बसपा की दोस्ती पर सीएम योगी आदित्यनाथ का कहना है कि जंगल में बाढ़ आने पर सांप और छछूंदर एकसाथ हो जाते हैं, ठीक वैसे ही एसपी और बीएसपी अपना अस्तित्व बचाने के लिए एकसाथ हो गए. योगी के इस बयान के चलते सपा और बसपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.

अतीक की पत्नी और बेटे चुनाव प्रचार में जुटे

फूलपुर उपचुनाव में अतीक अहमद की पत्नी और बेटे प्रचार की कमान संभाले हुए हुए हैं. वे लोकसभा क्षेत्र के मुस्लिम बहुल इलाकों में घर-घर जाकर वोट मांग रहे हैं. अतीक की मार्मिक अपील और पोस्टर भी मुसलमानों के बीच बांटे जा रहे हैं. जबकि सपा अतीक अहमद को वोटकटवा उम्मीदवार के तौर पर बताने में जुटी है. मुसलमानों के बीच ये बताने की कोशिश की जा रही है कि मोदी के विजय रथ को रोकने के लिए सपा उम्मीदवार को जिताना कितना अहम है.

सपा का मजबूत गढ़

दरअसल फूलपुर सीट पर एसपी का भी मजबूत जनाधार है. यही वजह है कि 1996 से लेकर 2004 तक समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार यहां से लगातार जीतता रहा है. फूलपुर लोकसभा सीट से कुर्मी समाज के कई सांसद बने हैं. प्रो. बी.डी. सिंह, रामपूजन पटेल (तीन बार), जंग बहादुर पटेल (दो बार) एसपी के टिकट पर सांसद रह चुके हैं. इसके बाद एसपी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद को फूलपुर से प्रत्याशी बनाया जो विजयी रहे, लेकिन इसके बाद 2009 के चुनाव में बीएसपी के टिकट पर पंडित कपिल मुनि करवरिया चुने गए और 2014 में बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्य.

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