हम गाय को माता क्यों कहते है?, जानें इसके पीछे का कारण

हम गाय को माता क्यों कहते है सुनो
और भाई पूरा पढना टंकण में ढाई घंटे लगे हैं।
श्री राजीव दिक्षीत जी सभा को
सम्भोदित कर रहे थे। सभा में राजीव दिक्षीत
गाय की महत्ता का बखान कर रहे थे। उन्होनें
कहा की गौमूत्र अद्भुद औषधी है। गौमूत्र की एक
भरी बोतल घर में रखो कभी भी लगे कि धीरे
धीरे बीमार हो रहें हैं तो सुबह को एक या दो
ढक्कन ले लो बीमारी साफ।
तो एक भाई बीच में खङा होकर
बोला कि कौनसी गाय का मूत्र?
तो जवाब मिला देशी गाय का।
फिर भाई ने पूछा कैसे पता करे कि गाय देशी है
या विदेशी?
जवाब मिला जिस गाय पर कूबङ या कंधा
निकला हो ( जर्सी गाय व भैंस के कूबङ उतना
नहीं निकला होता ) वही गाय देशी है।
तो भाई ने फिर पूछा कि कुछ गायें आवारा
होती हैं। वे अलग अलग गलियों में घुमती रहती है
और कहीं भी कुछ भी खाती रहती । कुछ गायों
के घास में कीटनाशक भी मिलें होते हैं तो क्या
ऐसी गायों का दुध, मूत्र या गोबर उपयोगी
हो सकता है?
अब यहां से महत्वपूर्ण बात शुरू हो ती है।
राजीव दिक्षीत जी ने जवाब दिया कि
निःसन्देह आप किसी भी गाय के दुध, मूत्र या
गोबर का उपयोग कर सकते हैं बशर्ते वह विदेशी न
हो और बिमार न हो।
आप बिल्कुल भी न घबरायें कि गाय क्या
खाती है और कैसे खाती है । आपको गाय जो
कुछ भी देगी वह शुद्ध ही देगी।
क्यों ?
क्योंकि वह माँ है।
इसका वैज्ञानिक कारण भी देखें।
राजीव दिक्षीत जी आगे कहते हैं कि हम लोगों
ने गाय पर परीक्षण किया। हम लोगों ने गाय
के चारे में साईनाईट नामक जहर अल्प मात्रा में
मिला दिया ताकी मृत्यु न हो सके। दो माह
तक लगातार हमने वही जहर युक्त चारा गाय को
खिलाया। और दो माह तक लगातार हमने उसके
दुध, मूत्र और गोबर का परीक्षण किय । हमने
देखा कि दुध, मूत्र और गोबर की शुद्धता उतनी
ही है जितनी कि दो माह पूर्व थी अर्थात् जहर
मिश्रीत चारे का गाय के दुध, मूत्र और गोबर पर
कोई असर न था। किन्तु दो माह तक लगातार
जहर मिश्रीत चारा खाने के कारण गाय के गले
पर एक नीला घेरा बन गया। गाय के गले पर बने
नीले घेरे से रक्त निकाला गया और आश्चर्य कि
वह साईनाईट जहर था। अर्थात् जहर गाय के गले
में ही रुक गया आगे न बढा। गाय ने जहर को गले
में ही रोक दिया क्योंकि उसको पता है कि
मनुष्य अवश्य ही दुध, मूत्र और गोबर का उपयोग
करेंगे । और यदि आप गाय का चित्र देंखे जिसमें
33 प्रकार के देवी देवता गाय पर दर्शाएं गये हों
उसमें गाय के गले पर भगवान शंकर का चित्र
होगा । शंकर जो कि जहर भी पचा सकते हैं।
ईश्वर ने मनुष्य के लिए क्या प्राणी बनाया है।
गाय, एक प्राणी जो जहर का उत्पादकों पर
कोई असर ही नहीं होने देता। यही तो माँ
होती है जो अपने बच्चों के लिए स्वयं कष्ट
उठाती है। महान् व विद्वान ऋषियों ने बहुत
तपस्या से गाय का वह चित्र बनाया होगा
जिसमें 33 प्रकार के देवी देवता को दर्शाया
गया है अर्थात् गाय को भली भांति पहचान
गये थे और पहचानने के उपरान्त ही उन विद्वान
ऋषियों ने धेनू ( गाय ) को माँ की उपमा दी
होगी। उस दिन ईश्वर कितना प्रसन्न हुआ
होगा कि आखिरकार मनुष्य मेरी कृति को
सकुशल पहचान गये और तो और माँ की उपमा भी
दे डाली ! वाह !
किन्तु आज इस माँ की ऐसी दयनीय स्थिति ? ये
स्थिति उन ऋषि मुनियों के गाल पर तमाचा है,
जिन्होनें गाय को माँ कहा और स्वयं ईश्वर के
गाल पर भी तमाचा है जिन्होनें ऐसा जीव
बनाया।

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