आखिर क्यों ‘बुरी नजर’ से बचने के लिए लोग करते हैं टोटके….

‘बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला…’ ये जुमला आपने अक्सर ऑटो, रिक्शा, ट्रक या किसी अन्य वाहन के पीछे लिखा देखा होगा।मन में कई बार सवाल भी उठा होगा कि नजर बुरी या अच्छी कैसे हो सकती है। लेकिन दुनिया भर में इसे लेकर पुख्ता यकीन है। भारत में तो बुरी नजर के प्रकोप से बचने के लिए तरह-तरह के उपाय भी किए जाते हैं। कोई गाड़ी पर उल्टी चप्पलें लटकाता है, तो कोई नींबू-हरी मिर्च लटकाता है। वहीं कोई बुरी नजर का असर खत्म करने के लिए लाल मिर्चें जला डालता है। इस तरह के उपायों की लिस्ट काफी लंबी है।आखिर क्यों 'बुरी नजर' से बचने के लिए लोग करते हैं टोटके....

बुरी नजर का असर खत्म करने वाली आंख ने गुजरे एक दशक में फैशन वर्ल्ड में भी अपनी धाक जमाई है। अमरीकी रिएलिटी टेलीविजन की मशहूर हस्ती किम कर्डाशियां को कई मौकों पर नीली आंख वाले मोतियों की ब्रेसलेट और माला के साथ फोटो खिंचाते देखा गया है।

शैतानी आंख का डर

फैशन मॉडल गिगी हेडिड ने भी लोगों के बीच बढ़ते इस क्रेज को भुनाने के लिए साल 2017 में एलान किया कि वो बहुत जल्द आई-लव जूतों की रेंज मार्केट में उतारने वाली हैं। जब बड़ी सेलेब्रिटिज ने प्रचार करना शुरू किया, तो बुरी नजर से बचाने वाले मोतियों के इस्तेमाल से ब्रेसलेट और हार बनाने के लिए ऑनलाइन ट्यूटोरियल भी शुरू हो गए।

बहरहाल, ये बात तो हुई लोगों के यकीन का कमर्शियल फायदा उठाने की। लेकिन सच यही है कि इवल आई यानी शैतानी आंख ने इंसान की कल्पना शक्ति पर सदियों से अपना कब्जा जमा रखा है। शैतान की आंख का तसव्वुर कब, कहां और कैसे शुरू हुआ जानने से पहले तावीज और शैतान की आंख का फर्क़ समझना होगा। तावीज हर बुरी चीज से बचाव के लिए हजारों वर्षों से पहना जा रहा है। वक़्त के साथ इसके इस्तेमाल में बहुत से बदलाव आए, लेकिन इसका इस्तेमाल कब और कहां शुरू हुआ, पुख्ता तौर पर पता लगाना मुश्किल है। जबकि शैतानी आंख वाले तावीज का इस्तेमाल बुरी नजर रखने वालों का बुरा करने के लिए पहना जाता है।

माना जाता है जिस इंसान को भरपूर सफलता मिल जाती है, उसके दुश्मन भी ख़ूब पैदा हो जाते हैं। लेकिन शैतानी आंख ऐसे लोगों को उनके मकसद में कामयाब होने नहीं देती। प्राचीन ग्रीस रोमेंस एथियोपिका में हेलियोडोरस ऑफ इमिसा ने लिखा है कि जब किसी अच्छी चीज को कोई बुरी नजर से देखता है, तो आस-पास के माहौल को घातक वाइब्स से भर देता है। फ़्रेडरिक थॉमस एलवर्थी का दा ईविल आई- द क्लासिकल अकाउंट ऑफ एन एनशियंट सुपरस्टीशन को ईविल-आई या शैतानी आंख से संबंधित किस्से कहानियों का सबसे अच्छा संग्रह माना गया है।

इस किताब में बहुत-सी संस्कृतियों में प्रचलित अंधविश्वास और उनसे जुड़ी निशानियों का जिक्र है। इस किताब में आपको ग्रीक चुड़ैल के घूरने की कहानी से लेकर वो लोक कथाएं भी मिल जाएंगी जिनमें भूत-प्रेत के देखने भर से इंसान को घोड़ा और उसे पत्थर का बना देने तक का जिक्र मिलता है।

सदियों पुरानी है इसकी परंपरा

दिलचस्प बात है कि आंख के निशान का संबंध बुतपरस्ती वाले मजहबों से है, लेकिन आसमानी या इब्राहिमी मजहबों की किताबों जैसे क़ुरान और बाइबिल में भी इसका जिक्र मिलता है। बुरी नजर, शैतानी आंख, तावीज वग़ैरह का संबंध सीधे तौर पर अंधविश्वास से है। लेकिन कुछ दार्शनिक इसका संबंध विज्ञान से जोड़कर देखते हैं। इस फेहरिस्त में सबसे पहला नाम ग्रीक दार्शनिक प्लूटार्क का है। वो इसका वैज्ञानिक पहलू बताते हुए लिखते हैं कि इंसानी आंख में से ऊर्जा की किरणें निकलती हैं जो नजर नहीं आतीं। इन किरणों में किसी भी छोटे जानवर या बच्चे को मार देने की ताकत होती है। एक कदम और आगे बढ़ते हुए वो कहते हैं, कि कुछ लोगों में तो सामने वाले को अपना मुरीद बना लेने तक की ताकत होती है।सबसे ज़्यादा किसी का नुकसान करने की क्षमता नीली आंखों से निकलने वाली किरणों में होती है। लगभग सभी संस्कृतियों की लोक कहानियों में बुरी नजर से विनाश होने का जिक्र आम है। लेकिन कुछ संस्कृतियों में बुरी नजर रखना ही खराब माना गया है। वो इसे अभिशाप मानते हैं।

मिसाल के लिए दार्शनिक एनवर्थी पोलैंड की एक लोक कथा का हवाला देते हुए कहते हैं कि एक आदमी की नजर में दूसरों का बुरा करने वाली किरणें बहुत ज़्यादा थीं।जब उसे इसका अंदाजा हुआ तो उसने अपने अजीजो के भले के लिए अपनी एक आंख ही निकलवा दी। तुर्की की इस्तांबुल यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर डॉक्टर नेस येल्दरिन का कहना है कि आंख वाले तावीज का सबसे पहला नमूना 3300 ई.पू में मिलता है।मेसोपोटामिया के सबसे पुराने शहर तल बराक में खुदाई के वक़्त कुछ तावीज मिले थे। ये तावीज संगमरमर की मूर्तियों के शक्ल के थे, जिन पर जगह-जगह कुरेद कर आंख उकेरी गई थी।

बचाव के लिए क्या-क्या करते थे लोग

जहाँ तक नीली आंख का ताल्लुक है तो ये मिस्र की चमकीली मिट्टी से आयी है, जिसमें ऑक्साइड की मात्रा ज़्यादा होती है। तांबे और कोबाल्ट के साथ जब इसे पकाया जाता है तो नीला रंग आ जाता है। येल्दरिन आज के दौर में नजर लगने की मान्यता को प्राचीन मिस्र से जोड़कर देखते हैं। खुदाई में यहां होरोस की आंख वाले बहुत से पेंडेंट मिले हैं।प्राचीन मान्यताओं के अनुसार होरोस मिस्री लोगों का आसमानी देवता था। उसकी दाईं आंख का संबंध सूरज से था। लोग उसे शुभ मानते थे और बुरी नजर से बचाव के लिए अपने साथ रखते थे।

तुर्की के पूर्व जनजाति के लोग भी नीले रंग से खासा लगाव रखते थे। इस रंग का संबंध उनके आसमानी देवता से था। नीली आंख वाले मोती फोनेशियन, असीरियन, ग्रीक, रोमन और सबसे ज़्यादा ऑटोमन साम्राज्य में इस्तेमाल हुए। भूमध्य सागर के आस-पास के द्वीपों में इन्हें कारोबार के लिहाज से लाया गया था। लेकिन यहां से ये दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी फैल गए। मिस्री लोग आज भी अपने जहाजों पर हिफाजत के लिए ईविल-आई बनवाते हैं। तुर्की में आज भी बच्चे की पैदाइश पर बुरी नजर से बचाने के लिए शैतानी आंख वाला तावीज पहनाया जाता है।

बहरहाल इसे लेकर मान्यताएं चाहें जो भी रही हों, पर सच यही है कि इसने दुनिया की तमाम सभ्यताओं पर असर डाला है और अब तो शैतानी आंख ने फैशन की दुनिया में भी सिक्का जमा लिया है। लेकिन यहां गौर करने वाली बात है कि किम कर्डाशियां हों या गिगी हेडिड, दोनों सेलेब्रिटी ऐसी जगह से ताल्लुक़ रखती हैं, जहां ईविल-आई को लेकर पुख्ता यकीन है।

Back to top button