उन्नाव रेप मामले में अधिकारियों ने दबी जुबान में खोली यूपी पुलिस की पोल

उन्नाव गैंगरेप प्रकरण में सिर्फ विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने ही सरकार की किरकिरी नहीं कराई बल्कि उससे कहीं अधिक किरकिरी पुलिस व प्रशासन की कार्यवाही से हुई। कहा जा रहा है कि पुलिस चूक ही पीड़िता को मुख्यमंत्री आवास तक पहुंचने के लिए बाध्य किया। उन्नाव रेप मामले में अधिकारियों ने दबी जुबान में खोली यूपी पुलिस की पोल

पुलिस के कुछ उच्चाधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि अगर पुलिस ने मामले की संवेदनशीलता का ख्याल रखा होता तो स्थिति इतनी न बिगड़ती। एक अधिकारी का कहना है कि 28 जून 2017 से लेकर 4 अप्रैल 2018 तक के घटनाक्रम में हर मोड़ पर पुलिस चूक पर चूक करती रही।

सूत्रों का कहना है कि सबसे बड़ी चूक उन्नाव पुलिस व प्रशासन स्तर से हुई। स्थानीय स्तर पर रेप की रिपोर्ट दर्ज नहीं किए जाने पर पीड़िता व उसके परिवारीजनों ने करीब छह बार डीजीपी कार्यालय व शासन तक पहुंचे।

हर बार उन्नाव पुलिस से रेप की रिपोर्ट मांगी गई, लेकिन वह मामले को दबाने के लिए अपहरण की रिपोर्ट भेजती रही। बता दें, पीड़िता ने 11 जून 2017 को खुद के अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था।

जबकि रेप की घटना 4 जून 2017 को हुई थी। पीड़िता रेप का मुकदमा दर्ज कराने के लिए बार-बार दौड़ती रही और पुलिस उसे हर बार टकराती रही। यही नहीं, उन्नाव पुलिस ने इस मामले में शासन व डीजीपी कार्यालय को भी गलत रिपोर्ट भेजती रही। 

इस स्तर पर भी बरती गई लापरवाही

  • पीड़िता की शिकायत के बावजूद दस महीने तक रेप की रिपोर्ट दर्ज न करना।
  • पीड़िता के खिलाफ दर्ज कराए गए रिपोर्ट की सत्यता का परीक्षण न करना।
  • पिटाई के दौरान पीड़िता के पिता को लगे गंभीर चोटों की अनदेखी व बिना मेडिकल परीक्षण के जेल भेजना।
  • मारपीट केमामले पीड़ित पक्ष द्वारा 4 अप्रैल 2018 को दी गई अर्जी से विधायक के भाई अतुल का नाम हटाना।
  • पीड़ित ने एफआईआर की अर्जी पहले दी, लेकिन दूसरे पक्ष की एफआईआर पहले दर्ज करना। 
 
 
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