त्रिपुरा,नागालैंड और मेघालय पर चढ़ा चुनावी रंग, दांव पर कांग्रेस- वाम दल की प्रतिष्ठा

मेघालय विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों का नामांकन जोरशोर से शुरू हो चुका है। राज्य में चुनावी गहमा गहमी के बीच एक ऐसा उम्मीदवार भी सामने आया जिनकी बेहिसाब संपत्ति ने सबको हैरान कर दिया है। उमरोई निर्वाचन क्षेत्र से उद्योगपति और नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) के उम्मीदवार एनगलेट धार ने मेघालय में होने वाले अगामी विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन भरा है। मेघालय चुनाव के लिए अब तक नामांकन भर चुके उम्‍मीदवारों में से वह सबसे अमीर उम्मीदवार हैं। 

मुख्‍यमंत्री मुकुल संगमा ने भरा नामांकन

मेघालय के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा ने 27 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए आज अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र अमपाटी से नामांकन दाखिल किया, जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री और एनपीपी की नेता अगाथा के संगमा ने दक्षिण तूरा सीट से पर्चा भरा। गुरुवार को मेघालय विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख है।  मुख्‍यमंत्री के सामने भाजपा ने बाकुल हजोंग को चुनाव मैदान में उतारा है, उन्‍होंने भी आज अमपाटी से अपना नामांकन दाखिल किया। इस दौरान भाजपा नेता नलिन कोहली भी शामिल हुए।

 

धार हैं सबसे धनी उम्मीदवार 

धार के शपथपत्र के अनुसार, उनके पास 144 वाहन हैं और उनकी पारिवारिक संपत्ति लगभग 290 करोड़ है। हालांकि, उनके पुत्र की संपत्ति जो एनपीपी उम्मीदवार भी हैं, इसमें शामिल नहीं है।स्कूल की पढ़ाई भी पूरी नहीं करने वाले धार के पास 219.04 करोड़ रुपये की कृषि भूमि और लगभग 71.23 करोड़ रुपये की अस्थायी संपत्तियां हैं। इस 49 वर्षीय विधायक के पास बीएमडब्लू और टोयोटा एसयूवी सहित 144 वाहनों के अलावा पत्थर और कोयले के परिवहन के लिए ट्रकों का काफिला भी शामिल है।

 

शपथ पत्र में उन्होंने कहा कि उन्‍हें 3.95 करोड़ रुपये का वाहन ऋण चुकाना है। उनकी पत्नी की चल संपत्ति 1.21 करोड़ रुपये है और अचल संपत्तियों की कीमत 3.7 करोड़ रुपये है। धार के 25 वर्षीय पुत्र दशाखीत लमारे ने भी 40 करोड़ रुपये से अधिक की कुल संपत्ति घोषित की है। अपने पिता और भाइयों के स्वामित्व वाली एक निर्माण कंपनी के प्रबंध निदेशक लमारे भी 13 अन्य वाहनों के अलावा एक बीएमडब्ल्यू और टोयोटा एसयूवी के मालिक हैं, इसमें ज्यादातर ट्रक हैं। लामारे की 36 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति और 4 करोड़ रुपये की अन्‍य संपत्तियां हैं।

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त्रिपुरा में माकपा और भाजपा में कड़ी टक्कर

त्रिपुरा में करीब तीस सालों से माकपा की सरकार है, लेकिन अब की बार उनकी स्थिति कुछ कमजोर लग रही है। उनकी कमजोर कड़ी राज्य में विकास का न होना माना जा रहा है। इस मुद्दे को भाजपा वहां हवा दे रही है। मेघालय और नगालैंड में मौजूदा सरकारों की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है जितनी होनी चाहिए। मगर भाजपा इस बार तीनों राज्यों के किले को भेदना चाहती है। वहीं कांग्रेस के अलावा वाम दलों ने भी अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है। त्रिपुरा में 18 फरवरी और नगालैंड व मेघालय में 27 फरवरी को मतदान होंगे और नतीजे एक साथ होली के दूसरे दिन यानी तीन मार्च को आएंगे।

प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए मेघालय और नगालैंड के अलावा त्रिपुरा काफी खास है। विशेषकर माकपा के लिए त्रिपुरा बहुत खास है, क्योंकि त्रिपुरा में तीन दशकों से उसकी सरकार है जिसे बरकरार रखने की कोशिश होगी। वहीं भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तर-पूर्व के चुनाव राजनीतिक रूप से बहुत अहम माने जा रहे हैं। देखा जाए तो हाल के वर्षो में जिस तरह से उत्तर-पूर्व की राजनीति में बदलाव की हवा चल रही है। उससे वहां की स्थानीय पार्टियां खुद को बचाने की जद्दोजहद में लगी हैं। उनको डर है कि कहीं उनका हाल भी उत्तर प्रदेश में मायावती और मुलायम सिंह यादव की तरह न हो जाए। भाजपा ने असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में सत्ता पर काबिज होकर सभी को चकित कर दिया है। इसलिए स्थानीय पार्टियां यह भांप चुकी हैं कि उनका अगला लक्ष्य पूवरेत्तर के राज्य ही हैं।

कांग्रेस की अग्निपरीक्षा

वामदल के लिए अलावा कांग्रेस के लिए भी इन राज्यों के चुनाव अति महत्वपूर्ण हैं। उनकी भी पूरी कोशिश होगी कुछ अच्छा करने की। सभी जानते हैं कि त्रिपुरा में मुख्य मुकाबला हमेशा कांग्रेस और माकपा के बीच रहा है, लेकिन माकपा हमेशा बढ़त बनाने में सफल रही है। यही नहीं, माणिक सरकार के दौरान माकपा की सीटों की संख्या भी बढ़ती रही है। मगर माकपा की जीत के इन आंकड़ों के पीछे ही उसकी कमजोरियों भी दिख रही हैं। दरअसल इन तीनों छोटे राज्यों के विधानसभा चुनाव को 2019 के आम चुनाव की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि तीनों राज्यों में चुनाव की कमान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभालेंगे और सभी जगहों पर चुनावी रैली भी करेंगे।1चुनाव आयोग भी इस बार सर्तकता से काम कर रहा है। आयोग इन राज्यों में पर्ची वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम से चुनाव कराएगा।

चुनाव आयोग की तरफ से कुछ और भी बदलाव किए हैं जैसे उम्मीदवारों के लिए चुनाव में खर्च की सीमा भी घटाकर इस बार कम की गई है। इस बदलाव पर कुछ विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग पर केंद्र के इशारे पर काम करने के आरोप लगाए हैं। चुनाव की तारीखों पर भी विपक्ष ने एतराज जताया है। उसका मानना है कि होली के बाद अगर चुनाव होते तो और अच्छा होता। कई दशकों से त्रिपुरा में माकपा सरकार काबिज रही है, लेकिन इस बार की परिस्थितियां पहले से जुदा हैं, क्योंकि इस बार उसका मुकाबला भाजपा से होने वाला है। वहीं कांग्रेस मुक्त का नारा देती रही भाजपा इस बार वाममुक्त त्रिपुरा की राह पर है। अगर त्रिपुरा हाथ से निकला तो वामपंथियों के पास सिर्फ केरल बचेगा। ऐसा न हो, इसके लिए उनको अभी से कमर कसने की जरूरत है।

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