आज हैं लोकप्रिय प्रधानमंत्री अटल जी का जन्मदिन, जानें उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें…

भारतीय राजनीति के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी का आज जन्मदिन है। हम आपको आज उनकी जिंदगी से जुडा एक रोचक किस्सा बताने जा रहे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी शुरूआत में पत्रकार बनाना चाहते थे। 1945 में कानपुर के डीएवी कॉलेज में राजनीति शास्त्र से एमए करने आ गए। डीएवी कॉलेज के माहौल ने उन्हें राजनीति में दिलचस्पी रखने को मजबूर कर दिया और बाद में उन्हें भारतीय राजनीति का भीष्म पितामह कहा गया।

अटल जी डीएवी कॉलेज के गांधी ब्लॉक में कमरा-नं.104 में रोजाना बैठकें करते थे। राजनीतिक मुद्दों पर बहस छिड़ती और वह खुलकर वह अपनी बातें रखते। अटल जी जब कॉलेज में भाषण देते तो बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं एकजुट हो जाते। अटल जी कविताओं के माध्यम से लोगों के दिलों को छू लेते थे। डीएवी कॉलेज में राजनीतिशास्त्र के गुरु रहे डॉ. मदन मोहन पांडेय के पुत्र डॉ. केके पांडेय बताते हैं कि उनके पिता अक्सर घर में अटल जी की चर्चा किया करते थे।

वह बताते थे कि अटल जी उनसे भी देश और दुनिया की राजनीति पर लंबी चर्चा किया करते थे। उनसे राजनीतिक दांव-पेंच सीखते थे। अटल जी जब पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बने तब भी उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस में डॉ. मदन मोहन पांडेय का जिक्र किया। उन्होंने डॉ. पांडेय और राजनीति शास्त्र के तत्कालीन विभागाध्यक्ष रहे डॉ. शांति नंदन को अपना राजनीतिक गुरु बताया था।

गंगा किनारे सजती थी कविताओं की महफिल
कानपुर में पढ़ाई के दौरान अटल जी कविताओं के लिए काफी प्रचलित हो गए। गर्मी के दिनों में अक्सर शाम को गंगा किनारे उनकी महफिल सजती जिसमें उनके दोस्त शामिल होते थे। सभी आजादी से जुड़े मुद्दों पर कविताएं कहते, गीत कहते और फिर वहीं व्यायाम करते थे। दोस्तों के साथ गंगा स्नान करने के बाद वापस छात्रावास जाते थे। डीएवी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अमित श्रीवास्तव बताते हैं कि पुराने शिक्षकों के अनुसार अपनी कविताओं में भी अटल जी राजनीतिक तंज किया करते थे जिसे काफी सराहना मिलती थी।

डॉ. केके पांडेय बताते हैं कि उनके पिता एक स्कूल खोलना चाहते थे। सबकुछ बन चुका था बस मान्यता मिलने की देरी थी लेकिन बगैर किसी कारण शिक्षा विभाग उन्हें मान्यता नहीं दे रहा था। पिता जी कई बार तत्कालीन शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिलकर अपनी बातें रख चुके थे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उस दौरान उन्होंने मुझसे कहा कि चलो अटल से मिलकर देखते हैं… शायद कुछ हो जाए। मुझे लेकर वह प्रधानमंत्री आवास पहुंचे। वहां हम लोगों को मिलने नहीं दिया जा रहा था।

पिताजी ने कहा कि बस एक बार मेरा नाम लेकर उन्हें बता दें कि मैं आया हूं। अगर वह मना कर देंगे तो मैं चला जाऊंगा। करीब दो घंटे बाद पर्चा लेकर एक कर्मचारी उनके पास गया और तुरंत उन्होंने पिताजी को अंदर बुला लिया। उनके पैर छुए और हालचाल पूछा। जब पिताजी ने स्कूल के बारे में बताया तो उन्होंने तुरंत राजनाथ सिंह को फोन मिलवाया। फोन पर उन्होंने राजनाथ जी से स्कूल के बारे में बताया और कवि अंदाज में पूछा कि अब विलंब केहि कारण कीजै…? खैर, उसके दो दिन के अंदर ही स्कूल को मान्यता मिल गई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button