आज हैं भीष्मा द्वादशी, जानें जानें शुभ मुहूर्त और महत्व

माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन भीष्म द्वादशी मनाई जाती है. इस साल बुधवार, 24 फरवरी को यानी आज भीष्म द्वादशी का पर्व मनाया जा रहा है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विधान बताया गया है. भीष्म पितामह ने अष्टमी के दिन अपने शरीर का त्याग किया था. हालांकि उनके निमित्त जो भी धार्मिक कर्म किए गए वो द्वादशी के दिन ही किए गए थे. यही वजह है कि भीष्म अष्टमी के बाद भीष्म द्वादशी का पर्व मनाया जाता है.

भीष्म द्वादशी पर पूजा मुहूर्त
भीष्म द्वादशी 24 फरवरी 2021 को बुधवार के दिन मनाई जाएगी. द्वादशी तिथि 23 फरवरी 2021 को शाम 06 बजकर 06 मिनट से शुरू होकर 24 फरवरी को 06 बजकर 07 मिनट पर समाप्त होगी.

भीष्म द्वादशी पूजन विधि
भीष्म द्वादशी के दिन स्नान आदि करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें. इसके अलावा इस दिन सूर्य देव की पूजा का भी विशेष महत्व बताया गया है. भीष्म द्वादशी के दिन भीष्म पितामह के निमित्त तिल, जल और कुश तर्पण करें. हालांकि यदि आप खुद किन्ही कारणवश तर्पण नहीं कर सकते तो आप किसी जानकार और योग्य ब्राह्मण से ऐसा करा सकते हैं. इसके अलावा भीष्म द्वादशी के दिन अपने यथाशक्ति अनुसार ब्राह्मणों और जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं.

भीष्म द्वादशी के दिन पूर्वजों का तर्पण करने का विधान बताया गया है. इसके अलावा इस दिन भीष्म पितामह की कथा सुनी जाती है. जो कोई भी व्यक्ति इस दिन सच्ची श्रद्धा और पूरे विधि विधान से इस दिन की पूजा आदि करता है उसके जीवन के सभी कष्ट और परेशानियां दूर होते हैं और साथ ही पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. सही ढंग से किया जाए तो व्यक्ति को इस दिन की पूजा से पितृ दोष जैसे बड़े दोष से भी छुटकारा प्राप्त होता है.

भीष्म द्वादशी से संबंधित कथा
महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह कौरवों के पक्ष से युद्ध लड़े थे. ऐसे में पांडवों को ऐसा प्रतीत हुआ कि वह कुछ भी करके भीष्म पितामह को हरा नहीं सकते हैं. तभी उन्हें इस बात की भनक लगी कि भीष्म पितामह ने प्रण लिया था कि वह युद्ध में भी किसी भी स्त्री के समक्ष कभी भी शस्त्र नहीं उठाएंगे. जैसे ही पांडवों को इस बात की भनक लगी, उन्होंने एक चाल चली. उन्होंने शिखंडी को युद्ध के मैदान में भीष्म पितामह के समक्ष खड़ा कर दिया. 

अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार भीष्म पितामह ने अस्त्र-शस्त्र का उपयोग नहीं किया और अर्जुन में इस मौके का फायदा उठाते हुए उन पर बाणों की वर्षा कर दी. जिसके चलते भीष्म पितामह बाणों की शैया पर लेट गए. हालांकि उन्होंने असंख्य बाण लगने के बावजूद अपने प्राणों का त्याग नहीं दिया. उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था. ऐसे में उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने तक का इंतजार किया.

सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण पर पहुंचा तब अष्टमी तिथि के दिन भीष्म पितामह ने अपने प्राणों का त्याग किया. हालांकि उनके पूजन और अन्य कर्मकांड के लिए माघ मास की द्वादशी तिथि चयनित की गई. कहा जाता है इसी वजह से माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी के रूप में मनाया जाता है.

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