चीन को सबक सिखाने के लिए लद्दाख के ऊंचे पहाड़ों पर मुस्तैद जवान

डोकलाम से लेकर लेह तक चीनी सेना की बढ़ती गुस्ताखी के बीच हम आपको लद्दाख सरहद पर तैनात सेना के जवानों और अफसरों से रूबरू कराएंगे जो चीन को सबक सिखाने के लिए तैयार हैं. 1962 की भारत चीन जंग के बाद भले ही लद्दाख में एक गोली न चली हो, लेकिन चीनी सेना का आक्रामक रुख हमेशा बना रहता है. आज हम आपको दिखाएंगे कैसे लद्दाख स्काउट्स के जवान दिन और रात एलएसी पर कड़ी निगरानी कर रहे हैं.

हम सेना की एक टुकड़ी के साथ पूर्वी लद्दाख में चीन से लगने वाली सरहद पर एक फॉरवर्ड पोस्ट पर रात की पेट्रोलिंग के लिए निकले. लेह से सेना के ट्रक पर सवार होकर फॉरवर्ड पोस्ट की तरफ आगे बढ़े. इस वक्त रात के आठ बजे रहे हैं. ऊंचे पहाड़ और बर्फ़ीली हवाओं के बीच पेट्रोलिंग की जाती है. दिल्ली में भले ही गर्मी से पसीने छूट रहे हों, लेकिन लद्दाख सरहद पर तापमान 2 डिग्री है.

गश्ती पर जाने से पहले कंपनी कमाण्डर ने जवानों को जरूरी निर्देश दिए. सेक्शन से सेक्शन के बीच कितनी दूरी होनी चाहिए. दुश्मन का इलाका होने की वजह से कोई हरकत नहीं होनी चाहिए. इसके बाद सभी जवानों ने युद्धघोष लगाया.

डोकलाम विवाद के बीच एलएसी के दूसरी तरफ चीनी सेना की बड़े स्तर पर तैयारियों की खबरें लगातार आ रही हैं. इस साल की अगर बात की जाए तो 8 मार्च 2018 को चीन ने लद्दाख के ट्रैक जंक्शन में 2 हेलीकॉप्टर से सुबह 8.55 पर की घुसपैठ. चीन के हेलीकॉप्टर ने भारत के एयर स्पेस में की घुसपैठ की. ट्रिग हाईट, और डेपसांग का ये इलाका भारत के लिए रणनीतिक महत्व की जगह है. इसलिए चीन यहां प्रभुत्व कायम करने की कोशिश में रहता है.

चीन की काली नजर

इसी इलाके में भारत का महत्वपूर्ण दौलत बेग ओल्डी एयरफील्ड है जिस पर चीन घुसपैठ के जरिये नज़र रखने की फिराक में रहता है. चीन ने जम्मू कश्मीर के लद्दाख, उत्तराखंड के बराहोती, अरुणाचल और हिमाचल के अलग अलग सेक्टर में इस साल अब तक 45 बार भारतीय सीमा के अंदर घुसपैठ की कोशिश की. रिपोर्ट के मुताबिक़ 27 फरवरी को भी चीन ने लद्दाख के डेपसांग और ट्रिग हाईट में 19 किलोमीटर तक कि घुसपैठ. सूत्रों के मुताबिक़ 5 मिनट बाद चीनी हेलीकॉप्टर वापस लौट गए.

रात के वक्त ऊंचे पहाड़ों पर लद्दाख स्काउट्स के जवान सावधानी के साथ आगे बढ़ रहे थे. 12 हजार फ़ीट के ऊंचाई पर तमाम आधुनिक हथियारों के साथ निगरानी करते हैं. 51 मोर्टार, एमएमजी और एके 47 जैसे हथियारों से लैस हैं. पेट्रोलिंग का मकसद दुश्मन के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाना है. उनके हथियार और बंकर के बारे में जानकारी जुटाना जिससे आने वाले दिनों में जब मुक़ाबला हो तो दुश्मन को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सके.

सीमा पर माहौल गर्म  

सुरक्षा के लिहाज से हम इस फॉरवर्ड पोस्ट पर भारतीय सेना की तैयारियों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दे सकते, लेकिन इतना तय है कि भारतीय सेना के जवान किसी भी मोर्चे पर ड्रैगन से कमतर नहीं हैं. अभी रात का मिशन पूरा नहीं हुआ था. रात के वक्त फायरिंग की ट्रेंनिग की जानी थी. लद्दाख स्काउट्स के अफसर और जवान रात के वक्त अपने लक्ष्य पर निशाना साथ रहे हैं. एक गोली एक दुश्मन के मिशन के साथ इनकी बंदूकें आग उगल रही थीं. रात के 10 बजे सरहद पर तापमान 2 डिग्री से भी कम है, लेकिन जवानों की बंदूक से निकलती गोली से माहौल गर्म हो गया.

लद्दाख से लेकर सियाचिन तक 11 हजार फीट से लेकर 22 फ़ीट पर तैनात लद्दाख स्काउट्स के रणबांकुरों का कोई सानी नहीं है. लद्दाख स्काउट्स के जांबाज ड्रैगन को सबक सिखाने के लिए हमेशा तैयार हैं. लद्दाख स्काउट्स रेजिमेंटल सेंटर में इनकी कड़ी ट्रेनिंग की शुरुआत सुबह 6 बजे से ही हो जाती है. पीटी परेड से लेकर हर तरह की मुश्किल शारीरिक ट्रेंनिग जवानों को दी जाती है. चारों तरफ पहाड़ों से घिरे ट्रेनिंग सेंटर में बर्फ़ीली हवाओं में ये जवान जमकर पसीना बहाते हैं जिससे जंग में कम खून बहना पड़े.

अब हम आपको लद्दाख स्काउट्स के जवानों के साथ दिन के वक्त पेट्रोलिंग पर लेकर चलते हैं. इस बार हमारा मिशन था पूर्वी लद्दाख की एक फॉरवर्ड पोस्ट पर जाकर देखना कि क्या चीनी सेना ने फिर कोई हिमाकत तो नहीं की है. दिन का मिशन ज्यादा चुनौती भरा था. इस बार सेना की टुकड़ी में घोड़े भी शामिल थे. घोड़ों पर जरूरी साजोंसामान और हथियार रखे गए थे. पूरा रास्ता ऊबड़खाबड़ और नदी नालों से होकर जाता है. इस वक़्त हम 12 हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद हैं.

सेना की चौकसी

पूर्वी लद्दाख के इस इलाके में मौजूद फॉरवर्ड पोस्ट तक रसद पहुंचाने के लिए सेना पोर्टर और घोड़ों की मदद लेती है, जबकि 12 हजार से ज्यादा ऊंचाई पर मौजूद पोस्ट पर रसद और हथियार एयरफोर्स की मदद से पहुंचाए जाते हैं. रास्ते में हमें वायुसेना के हेलिकॉप्टर और ट्रांसपोर्टर एयरक्राफ्ट सी 17 ग्लोब मास्टर उड़ान भरते नजर आए. वायुसेना ने लेह से लेकर दौलत बेग ओल्डी में हवाई पट्टी बनाई है, जहां जरूरत पड़ने पर बड़े ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट लैंड और टैक ऑफ कराये जा सकें. भारत लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक चीन से लगने वाली सीमा पर कई हवाई पट्टी का निर्माण कर रहा है. ईस्टर्न लद्दाख के इलाकों में इसे तैयार किया जा रहा है ताकि इमरजेंसी माहौल में तुरंत सेना की टुकड़ी को तैनात किया जा सके.

इस वक्त 12 हजार फ़ीट पर पूर्वी लद्दाख में लद्दाख स्काउटस के जवानों की मुस्तैदी को दिखा रहे हैं. नदी नालों समेत हर मुश्किल को पार करते हुए ये जवान आगे बढ़ रहे हैं. कई फॉरवर्ड पोस्ट तक पहुंचने के लिए इन जवानों को 10 से 12 किलोमीटर तक ऐसे ही पैदल चलना पड़ता है. हमनें भी करीब 5 किलोमीटर का मुश्किल पहाड़ी रास्ता तय कर लिया था. हमें इस बात का अहसास हो चुका था कि चीन से लगने वाली लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर कितनी ही मुश्किल क्यों न हों, सेना के ये जांबाज हर चुनौती से निपटने के लिए हमेशा तैयार हैं.

12 हजार फीट पर भारतीय सेना की तैयारियों को देखकर हमारी आंखें खुली रह गईं, ड्रैगन को चेताने के लिए इतना काफी है कि भारतीय सेना ने काफी पहले से ही चीन से सटी एलएसी पर अपनी सक्रियता तेज कर रही है. भारतीय सेना माउटेन स्ट्राइक कॉर्प्स की मदद से चीन पर नजर बनाए रखने की तैयारी में है. आर्मी ने 17 माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स की शुरुआत साल 2014 में की थी. इस 17 कॉर्प्स में नए हथियार, एयर डिफेंस और इंजीनियर्स ब्रिगेड्स को लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक फैलाया जा रहा है. 2021तक चलने वाले इस ऑपरेशन में करीब 90 हजार की सैनिकों होंगे. इसमें अग्नि सीरिज की न्यूक्लियर बैलेस्टिक मिसाइल, फाइटर जेट्स, टैंक्स और सुपर मिसाइल छोड़ने वाला ब्रह्मोस भी शामिल है.

सरहद पर हर वक्त छोटे बड़े सभी तरह के हथियारों की ट्रेनिंग लगातार चलती रहती है. इसमें एमएमजी, 51 मोर्टार, ऑटोमेटिक ग्रिनेड लॉन्चर, एन्टी टैंक गाइडेड मिसाइल, रॉकेट लॉन्चर और 81 एमएम मोर्टार शामिल हैं. चीन से लगने वाली सरहद पर ऊंचे पहाड़ों में 81 एमएम मोर्टार काफी कारगर हथियार है. ये ऊंचे पहाड़ों में पांच किलोमीटर तक दुश्मन के किसी भी बंकर को बर्बाद कर सकता है.

ऊंचे पहाड़ों पर लड़ाई की तैयारी

चीन के साथ आने वाले दिनों में ऊंचे पहाड़ों पर लड़ाई की तैयारी आज से ही शुरू करनी होगी. इसीलिए किसी सीधी ऊंची पहाड़ी पर कैसे हमला किया जाएगा इसके लिए लद्दाख स्काउटस के ये जवान 12 हजार फीट की ऊंचाई पर दिनरात माउंटेन वॉरफेयर की तैयारी में जुटे हैं. लद्दाख स्काउटस की एक घातक टुकड़ी एक खड़ी पहाड़ी पर बैठे दुश्मन पर हमला करने के मिशन में आगे बढ़ रही है. 90 डिग्री सीधी पहाड़ी पर इस हमले को अंजाम दिया गया. ग्रेनेड के जरिये दुश्मन के बंकर को बर्बाद करने के बाद वहां पर तिरंगा फहराया दिया गया. आने वाले दिनों में चीन के साथ ऐसा ही मुकाबला होगा.

लद्दाख स्काउट्स लंबे समय से चीन सरहद पर निगरानी की अहम जिम्मेदारी निभाती है. सेना की ये यूनिट स्थायी तौर पर लेह में ही मौजूद रहती है. लद्दाख स्काउट्स पहले सेना की स्थायी यूनिट में शामिल नहीं थी. कारगिल युद्ध जीतने में इसके सैनिकों ने असाधारण वीरता दिखाकर भारतीयों का मन जीत लिया था जिसके बाद 2001 में इन्हें भारतीय सेना का हिस्सा बना दिया गया. चीन से 1962 के युद्ध, पाकिस्तान से 1971 के युद्ध व 1999 के कारगिल संघर्ष में उनकी बहादुरी को भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन आज के मौजूदा हालात में लद्दाख स्काउट्स के सामने चीन से मुकाबले को लेकर चुनौती बढ़ने वाली है.

चीन सरहद पर तैनात होने वाले लद्दाख स्काउट्स के युवा जवान अपनी मुश्किल ट्रेनिंग की शुरुआत बुद्ध के शांति के संदेश से करते हैं, लेकिन मौका आने पर दुश्मन के दांत खट्टे करने में इनका कोई सानी नहीं है. की की सो सो लारर्ग्या के विजय घोष से जवानों ने लद्दाख स्काउट्स रेजिमेंटल सेंटर को गुंजा दिया.

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