भाजपा के लिए आने वाली है मुश्किलें दूसरे हुकुम सिंह की तलाश

भाजपा के दिग्गज नेता और पिछड़े वर्ग के बड़े चेहरे हुकुम सिंह का निधन भाजपा के लिए बड़ा झटका है। पार्टी के लिए इस तरह के नेता या दूसरे ‘हुकुम सिंह’ की तलाश काफी मुश्किल होगी। वह इस समय कैराना से सांसद थे। 

भाजपा के लिए आने वाली है मुश्किलें दूसरे हुकुम सिंह की तलाशहुकुम सिंह पहली बार 1974 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए। बीच में कुछ चुनाव छोड़कर वह 2012 तक सात बार विधायक निर्वाचित हुए। वे जब पहली बार विधायक चुने गए तो उन्हें लोकदल और कांग्रेस दोनों से टिकट का आमंत्रण मिला था, पर उन्होंने कांग्रेस को वरीयता दी।

हालांकि 1980 में वह लोकदल से चुनाव लड़कर विधायक बने। वे 1983 में विधानसभा के उपाध्यक्ष रहे और 1985 में पहली बार वीरबहादुर सिंह के मंत्रिमंडल में मंत्री बनाए गए। सिंह के बाद मुख्यमंत्री बने नारायणदत्त तिवारी ने उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया।

रामपुर तिराहा कांड पर हुकुम सिंह ने कांग्रेस की आलोचना कर उसे छोड़ दिया और भाजपा में आ गए। तबसे वे भाजपा में ही रहे। वे भाजपा से चार बार विधायक चुने गए।

वर्ष 2014 में उन्हें भाजपा विधानमंडल दल का नेता होते हुए लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया और वे कैराना से सांसद चुन लिए गए। हुकुम सिंह भाजपा की कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और रामप्रकाश गुप्त सरकार में भी कैबिनेट मंत्री रहे। उन्होंने संसदीय कार्यमंत्री के नाते भी लंबे समय तक काम किया।

न्यायिक अफसर की नौकरी के बजाय सेना बनी पसंद

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करने वाले हुकुम सिंह का 1962 में पीसीएस (जे) में चयन हो गया था। नौकरी जॉइन करने की सारी औपचारिकताएं हो चुकी थीं, पर एक शाम रेडियो पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की युवाओं से देश की सेवा के लिए आगे आने की अपील और आह्वान ‘देश के लिए युवा अच्छी नौकरी का मोह छोड़ें’ सुनकर उन्होंने सेना में कमीशंड ऑफिसर का फॉर्म भर दिया और उनका चयन हो गया। वर्ष 1965 में पाकिस्तान से लड़ाई में वे बतौर कैप्टन राजौरी बॉर्डर पर तैनात रहे। वर्ष 1969 में सेना की नौकरी छोड़ लौट आए और मुजफ्फरनगर में वकालत करने लगे। 

सामाजिक न्याय समिति के लिए याद किए जाएंगे 

भाजपा में कई दायित्व संभालने वाले हुकुम सिंह को राजनाथ सिंह ने अपने मुख्यमंत्री काल में अति पिछड़ों की लामबंदी के अभियान को अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी सौंपी।

उन्होंने गुर्जर समाज से आने वाले इस कद्दावर पिछड़े नेता की अध्यक्षता में सामाजिक न्याय समिति गठित की। हुकुम सिंह ने पिछड़ी और दलित जातियों में उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण के बंटवारे का फॉर्मूला दिया।

राजनाथ सरकार ने इसे लागू कर दिया, पर बाद में कुछ कारणों से उस पर आगे अमल नहीं हो पाया।  कैराना सहित पश्चिमी उत्तर प्रदेश से पलायन के मुद्दे को प्रमुखता से उठाने को लेकर भी हुकुम सिंह काफी चर्चा में रहे। कुछ वर्षों पहले राजधानी लखनऊ में उनकी पत्नी की हत्या हो गई थी। उसके बाद से वे काफी दुखी रहा करते थे।

 
 
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