घर में अपना ही लूट रहा था 9वीं की छात्रा की इज्जत, यूं सामने आया सच

नई दिल्ली। बाल शोषण के 90 फीसद से अधिक मामले रिश्तेदारों द्वारा ही अंजाम दिए जाते हैं। रिश्तों के बोझ तले दबे माता-पिता भी दिल पर पत्थर रखकर बच्चों को ही चुप कराने पर जोर देते हैं। भले ही इस कवायद में उनकी बगिया का नन्हा फूल जिंदगी भर अवसाद के गहरे जख्म लेकर जीता रहे। अगर बाल शोषण के मामले करीबी रिश्ते से हो तो फिर परिवार बिखरने और जिदंगी भर उसका जख्म परिवार के बाकी सदस्यों को भी भुगतने का अंदेशा रहता है। ऐसे में घर के भीतर से आवाज उठने की उम्मीद कम हो जाती है। तब स्कूल और अध्यापकों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह बच्चे में आए बदलावों को पढ़े और उसे विश्वास में लेकर उसके जीवन में झांके। इससे उसे न्याय मिल सकता है।घर में अपना ही लूट रहा था 9वीं की छात्रा की इज्जत, यूं सामने आया सच

कुछ माह पहले की एक घटना बानगी भर है। करोलबाग में कक्षा नौ की छात्रा से उसका सौतेला पिता ही दुष्कर्म कर रहा था। करीब छह माह से इस दर्द से भरे और खौफनाक घटना से वह गुजर रही थी, यह बात उसने अपनी मां को भी बताई, लेकिन मां आजीविका और लोकलाज के भय से बाप का ही साथ दिया और बेटी को चुप रहने को कहा, लेकिन छात्रा में इस कारण अचानक आए बदलाव भला अध्यापिका से कैसे छुपा रहता।

बराबर खिलखिलाकर हंसने वाली और पढ़ाई में अव्वल छात्रा गुमसुम सी रहने लगी थी। पढ़ाई में भी वह पिछड़े लगी थी। आखिरकार अध्यापिका ने विश्वास में लेकर छात्रा से उसका दर्द पूछा। पहले तो टालती रही। काफी देर बाद जब वह खुली तो अध्यापिका सुनकर सन्न रह गई। छात्रा ने बताया कि उसका सौतेला पिता पिछले छह माह से उसका यौन शोषण कर रहा है।

उसने अध्यापिका से भी इसे किसी और को न बताने की दुहाई दी, लेकिन अध्यापिका ने चुप रहने की जगह छात्रा को इस दर्दनाक जीवन से मुक्ति दिलाने का बीड़ा उठाया। कुछ दिन पहले ही उसके यहां बाल अधिकार पर काम करने वाले लोग आए थे और 1098 हेल्पलाइन नंबर के बारे में बताया था।

उसपर उन्होंने फोन किया और घटनाक्रम की जानकारी दी। कुछ देर में ही बाल कल्याण समिति के लोग पहुंच गए। छात्रा की काउंसलिंग की। छात्रा द्वारा सच जाना फिर मामला पुलिस को दे दिया गया। इस प्रकार छात्रा को छह माह के खौफनाक जीवन से मुक्ति तो मिली, लेकिन अपनों द्वार दिए गए जख्म की टीस जीवन भर सालती रहेगी।

बच्चों के व्यवहार में आए अचानक बदलावों को नजरंअदाज न करें

डॉ. मजहर खां (सलाहकार मनोवैज्ञानिक) का कहना है कि बच्चों के व्यवहार में आए अचानक परिवर्तन को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। जैसे कि अचानक बच्चा शांत रहने लगे, स्कूल जाने से मना करने लगे। रात में सपना देखकर जाग जाए। किसी को देखकर छुपने लगे। माता-पिता के साथ अधिक से अधिक समय रहने की कोशिश करे। अगर बच्चा अचानक यौन जानकारी की ओर बढ़ने लगे और उसे किसी तीसरे के प्रति आकर्षित होने लगे तब भी सचेत होने की जरूरत है।

इसी तरह निजी अंगों में खुजली, सूजन, दर्द, खून का बहना व बच्चे का रोना यौन शोषण के शारीरिक लक्षण है। सबसे बड़ी बात कि बाल उम्र से ही बच्चों को गुड और बैड टच के बारे में जागरूक करने की जरूरत है। उसे बताया जाना चाहिए कि किन अंगों को छूना बैड टच है और वह उसका किस तरह प्रतिकार करें। सबसे संवेदनशील उम्र 0 से 5 साल की है, जिसमें बच्चा बता भी नहीं सकता है, न इसके बारे में समझ सकता है। ऐसे में खेलने और ड्राइंग में आए बदलावों में भी गौर करने की जरूरत है। बच्चों की कार्यप्रणाली पर बारीक निगाह के साथ उससे लगातार दोस्ताना व्यवहार जरूरी है।

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