चीन की सरकार तिब्बत में स्कूल जाने वाले छात्रों को सैन्य शिक्षा प्राप्त करने के लिए कर रहा मजबूर…

चीन की सरकार तिब्बत में स्कूल जाने वाले छात्रों को सैन्य शिक्षा प्राप्त करने के लिए मजबूर कर रहा है। वह सैन्य शिक्षा की आड़ में इन छात्रों को कम्युनिस्ट विचारधारा को अपनाए जाने के लिए बाध्य कर रहा है। छात्रों को ल्हासा और कई अन्य क्षेत्रों में दक्षिणी तिब्बत के निंगत्री में स्थापित दो प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेने के लिए भेजा जा रहा है।

रेडियो फ्री एशिया ने इस संबंध में एक रिपोर्ट दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की तिब्बत में सांस्कृतिक संबंधों को कमजोर करने की साजिश का यह एक हिस्सा है। तिब्बत के इन बच्चों के पास अब गर्मियों और सर्दियों की छुट्टी में सैन्य प्रशिक्षण में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। प्रशिक्षण के माध्यम से इन बच्चों का ब्रेनवाश किया जाएगा। ज्ञात हो कि तिब्बत में सांस्कृतिक विरासत को समाप्त करने के लिए चीन कई तरह की योजनाओं को अंजाम दे रहा है, जो तिब्बती भाषा के लिए खतरा बन जाएगा।

हाल ही में बीजिंग ने चीन के गांसु प्रांत में एक मठ को जबरन बंद कर दिया, भिक्षुओं और ननों को बेदखल कर दिया, जबकि उनमें से कई को इस बेदखली के दौरान बीजिंग ने हिरासत में भी लिया है। चीनी अधिकारी तिब्बती बौद्ध धर्म पर नियंत्रण बढ़ाने के लिए भी कमर कस रहे हैं। मठों को पारंपरिक मठ शिक्षा देने की मनाही है जो तिब्बती बौद्ध धर्म का एक अभिन्न अंग है। इसके बजाय, भिक्षुओं और ननों से बच्चों को नियमित रूप से देशभक्ति शिक्षा और अन्य राजनीतिक अभियानों के बारे में पढ़ाने को कहा जा रहा है, जो मूल रूप से तिब्बती बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं।

चीन के कब्जे के कारण तिब्बत का पर्यावरण नष्ट हो गया है, संसाधनों का अवैध रूप से खनन और परिवहन किया गया है, जिसकी वजह से नदियां प्रदूषित हो गई हैं। चीन के कब्जे ने तिब्बतियों को उनके मूल अधिकारों से वंचित कर दिया है और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की दमनकारी और कट्टरपंथी नीतियों के तहत तिब्बत के अंदर मानवाधिकार की स्थिति हर गुजरते साल बिगड़ती और बिगड़ती जा रही है।

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