भारत में आजादी के बाद जो सबसे पहला व चर्चित हुआ घोटाला
किस्सा सन् 1948 से 1952 के बीच का है। दरअसल, आजादी के बाद नेहरू ने सभी महत्वपूर्ण पदों पर यथायोग्य लोगों की नियुक्तियां की।
मगर अंधेरगर्दी और आश्चर्य देखिए कि जिन मेनन पर इस घोटाले को अंजाम देने का आरोप था, उन्हीं के द्वारा सुझाए गए व्यक्ति को इस केस में भारत की ओर से लड़ने के लिए वकील नियुक्त किया गया था।
किस्सा सन् 1948 से 1952 के बीच का है। दरअसल, आजादी के बाद नेहरू ने सभी महत्वपूर्ण पदों पर यथायोग्य लोगों की नियुक्तियां की। इसी कड़ी में मेनन को लंदन में हाई कमिश्नर बनाकर भेजा गया। नेहरू मेनन को पसंद करते थे और एक तरह से उन पर उनका वरदहस्त था।
मेनन ने लंदन में रहकर अपनी पैठ बनाना शुरू की। जब वे तंत्र में अपनी जड़ें जमा चुके, तब उन्होंने भारतीय सेना के लिए एक ऐसी कंपनी से 200 जीप खरीदने के सौदे को अंजाम दिया, जिस कंपनी में महज 2-3 लोग ही थे। यहां तक कि उस कंपनी को नाम मात्र की पूंजी से खड़ा किया गया था।
जाहिर है, मेनन ने इस सौदे में अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल किया था। सौदे में गड़बड़ी की जानकारी जब भारत पहुंची तो यहां संसद सहित देशभर में बड़ा हंगामा हुआ।
हालांकि संसद में चर्चा के दौरान जवाहरलाल नेहरू ने अपने व्यक्तित्व के प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए ऊहापोह को दबा दिया, किंतु जीप खरीदी का सौदा रद्द करना पड़ा और मेनन को भी लंदन में हाई कमिश्नर का पद छोड़ना पड़ा।
बाद में भारत सरकार ने उस कंपनी के विरुद्ध मुकदमा दायर किया। यहां फिर गड़बड़ी की गई और भारत की ओर से मुकदमा लड़ने के लिए उस वकील को नियुक्त किया गया, जिसका नाम घोटाले के आरोपी मेनन ने सुझाया था।