ऐसा रहा मोतीलाल वोरा का सियासी सफर, पत्रकार से राजनीति में रखा था कदम

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा का निधन हो गया है. मोतीलाल वोरा ने एक लंबी सियासी पारी खेली और 2 दिन पहले तबीयत बिगड़ने के चलते उन्हें फोर्टिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 93 साल के मोतीलाल वोरा अपने आखिरी दस सालों में भी ऐक्टिव रहे, कांग्रेस पार्टी में उन्होंने दो दशक तक कोषाध्यक्ष रहने के अलावा अहम जिम्मेदारी निभाई. मोतीलाल वोरा को लोग प्यार से दद्दू भी बुलाते थे और उनके बारे में मशहूर था कि बतौर कोषाध्यक्ष व पार्टी की पाई पाई का हिसाब रखते थे और एक पैसा भी फिजूल खर्च नहीं होने देते थे.

मोतीलाल वोरा पत्रकारिता से सियासत में आए थे. उन्होंने कई अखबारों में काम किया था. यही वजह है पत्रकारों के बीच वो बेहद लोकप्रिय थे. उन्हें पत्रकारों की गुगली से बचना खूब आता था और कभी भी किसी विवाद में नहीं पड़े. कांग्रेस के मुख्यालय में कोई रहे ना रहे मोतीलाल वोरा दस्तूर के तौर पर हर दिन पार्टी दफ्तर में जरूर आते थे. 24 अकबर रोड पर कोई भी मददगार या कार्यकर्ता आता था तो मोतीलाल वोरा से आसानी से मुलाकात कर सकता था.

मोतीलाल वोरा ने लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी के संगठन में काम किया. वह गांधी परिवार के वफादार माने जाते थे. 26 जनवरी हो या पार्टी का कोई और कार्यक्रम, मोतीलाल वोरा हमेशा सोनिया गांधी के दाएं बाएं नजर आते थे. उन्होंने अपने जीवन में एक लंबी सियासी पारी खेली है. वो गांधी परिवार में सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही नहीं बल्कि नरसिम्हा राव के भी करीबी माने जाते थे.

मध्य प्रदेश के मंत्री से मुख्यमंत्री तक का सफर

मार्च 1985 से फरवरी 1988 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. मोतीलाल इसके अलावा केंद्र सरकार में भी बतौर कैबिनेट मंत्री के पद पर आसीन रहे. 1993 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के गवर्नर के तौर पर जिम्मेदारी संभाली थी और 3 साल तक वहां राज्यपाल रहे. उनके राज्यपाल रहते हुए 1995 में यूपी गेस्टहाउस कांड हुआ था, जिसके बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं ने राजभवन में धरना दिया था और सपा सरकार को भंग करने की मांग की थी.

मूल रूप से छत्तीसगढ़ के रहने वाले मोतीलाल वोरा ने अपने राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी संभाली थी. मोतीलाल वोरा का जन्म 20 दिसंबर 1928 को राजस्थान के नागौर जिले में हुआ था. मोतीलाल वोरा का विवाह शांति देवी वोरा से हुआ था. उनकी चार बेटियां और दो बेटे हैं. उनके बेटे अरुण वोरा दुर्ग से विधायक हैं और वे तीन बार विधायक के रूप में चुनाव जीत चुके हैं.

पत्रकारिता से सियासत में रखा था कदम

बता दें कि मोतीलाल वोरा ने कई सालों तक पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करते हुए 1968 में राजनीति में एंट्री की. 1970 में मध्यप्रदेश विधानसभा से चुनाव जीता और राज्य सड़क परिवहन निगम के उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए. 1977 और 1980 में दोबारा विधानसभा में चुने गए और उन्हे 1980 में अर्जुन सिंह मंत्रिमंडल में उच्च शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी संभाली. मोतीलाल वोरा 1983 में कैबिनेट मंत्री बने और मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में भी नियुक्त हुए.

मोतीलाल वोरा 13 मार्च 1985 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और करीब तीन साल 13 फरवरी 1988 तक रहे. इसके बाद उन्होंने इस्तीफा देकर 14 फरवरी 1988 में केंद्र के स्वास्थ्य परिवार कल्याण और नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार संभाला. अप्रैल 1988 में मोतीलाल वोरा राज्यसभा के लिए चुने गए. हालांकि, उन्हें मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री के तौर पर दूसरी बार जनवरी 1989 से दिसंबर 1989 तक रहे. 26 मई 1993 से 3 मई 1996 तक उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के पद पर आसीन रहे. मोतीलाल वोरा जब मुख्यमंत्री बने तो उनकी जगह पर दिग्विजय सिंह को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.

नेशनल हेराल्ड केस के कारण विवादों में रहे
बता दें कि नेशनल हेराल्ड न्यूज पेपर की संपत्ति के विवाद में मोतीलाल वोरा विवादों में भी रहे. इस केस को लेकर कोर्ट में अभी भी सुनवाई चल रही है, अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है. एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड, यंग इंडियन और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी में शामिल तीनों संस्थाओं में मोतीलाल वोरा को महत्वपूर्ण स्थान मिला हुआ था. मोतीलाल वोरा 22 मार्च 2002 को एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक बने थे. उन्होंने इससे पहले भी ऑल इंडिया कांग्रेस कार्यसमिति के कोषाध्यक्ष के रूप में कार्य किया है. इसके अलावा मोतीलाल वोरा 12 फीसदी के शेयरधारक और युवा भारतीय निर्देशक भी थे.

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