श्रीलंका ने भारत को लेकर किया बड़ा फैसला, भारत और जापान मिलकर करेगा…

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान पिछले हफ्ते ही श्रीलंका के दो दिवसीय दौरे पर गए तो भारत-श्रीलंका संबंधों को लेकर तमाम तरह के सवाल उठने लगे. पाकिस्तान की सरकार ने श्रीलंका से कहा था कि प्रधानमंत्री इमरान खान वहां की संसद को संबोधित करना चाहते हैं. श्रीलंका ने शुरू में इसे मान भी लिया था लेकिन बाद में उसे लगा कि इमरान खान कहीं संसद में कश्मीर का मुद्दा न उठा दें. श्रीलंका को डर था कि इससे भारत से संबंध और खराब हो जाएंगे क्योंकि एक महीने पहले ही श्रीलंका ने भारत और जापान को अपने एक अहम प्रोजेक्ट से बाहर कर दिया था. 

श्रीलंका के लिए भारत अहम है लेकिन पाकिस्तान के साथ भी उसके ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. श्रीलंका की करीबी चीन से भी है और पाकिस्तान-चीन की दोस्ती पूरी दुनिया जानती है. इमरान खान के दौरे को भी चीन की छाया में ही देखा गया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने श्रीलंका से चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना सीपीईसी (चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर) में भी शामिल होने की अपील की जबकि भारत इस परियोजना का विरोध करता है. 

ऐसे में श्रीलंका के लिए चीन, पाकिस्तान और भारत तीनों को एक साथ साधना आसान नहीं होता. लेकिन मंगलवार को श्रीलंका ने ऐसी ही कोशिश की और जिस प्रोजेक्ट से भारत-जापान को बाहर किया उसके एक विकल्प के तौर पर दोनों देशों को नया ऑफर दिया. 

श्रीलंका ने मंगलवार को कहा है कि वह कोलंबो पोर्ट पर वेस्ट कंटेनर टर्मिनल (WCT) का विकास भारत और जापान के साथ मिलकर करेगा. एक महीने पहले राजपक्षे सरकार ने देश की अहम राष्ट्रीय संपत्तियों में ‘विदेशी दखल’ के प्रतिरोध का हवाला देते हुए भारत और जापान को ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ECT) के विकास के लिए किए गए समझौते से बाहर कर दिया था.सोमवार को कैबिनेट बैठक में लिए गए फैसलों के बारे में जानकारी देते हुए श्रीलंकाई सरकार के प्रवक्ता केहेलिया रांबुकवेला ने बताया, “वेस्ट कंटेनर टर्मिनल को विकसित करने के लिए भारत और जापान के निवेशकों को अनुमति दे दी गई है. भारतीय उच्चायोग ने भी अडानी पोर्ट्स को मंजूरी दे दी है जो पहले ईस्ट कंटेनर टर्मिनल में निवेश करने जा रहा था. जबकि जापान ने अभी अपने निवेशक का नाम नहीं दिया है.”

भारत और जापान दोनों की ही तरफ से आधिकारिक रूप से इस प्रस्ताव को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. ‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के मुताबिक, कोलंबो संभावित निवेशक अडानी ग्रुप के साथ सीधे बात कर रहा है जबकि सरकार इस बातचीत का हिस्सा नहीं है. अधिकारियों ने इस बात को लेकर भी हैरानी जताई कि कैबिनेट के फैसले में भारतीय उच्चायोग का जिक्र किया गया. 

भारत और जापान दोनों ने ही साल 2019 में हुए त्रिपक्षीय समझौते से बाहर किए जाने के श्रीलंका के एकतरफा फैसले पर नाराजगी जाहिर की थी. इस समझौते पर मैत्रीपाल सिरिसेना-रानिल विक्रमसिंघे सरकार के दौरान हस्ताक्षर हुए थे. श्रीलंका ने राष्ट्रीय संपत्तियों में विदेशी भूमिका को लेकर बढ़ते विरोध के बीच 1 फरवरी को भारत और जापान को इस समझौते से बाहर करने का ऐलान किया था. 

राजपक्षे सरकार भारत और जापान को वेस्ट कंटेनर टर्मिनल को विकसित करने का प्रस्ताव एक विकल्प के तौर पर दे रही है और इसमें दोनों देशों को पहले से ज्यादा हिस्सेदारी भी दी जाएगी. ईस्ट कंटेनर टर्मिनल परियोजना में श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी की हिस्सेदारी 51 फीसदी तय की गई थी जबकि वेस्ट कंटेनर टर्मिनल के प्रस्ताव में भारत और जापान की हिस्सेदारी 85 फीसदी रहने वाली है. कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल में चाइना मर्चेंन्ट्स पोर्ट होर्डिंग्स की भी हिस्सेदारी 85 फीसदी ही है और अब भारत को भी नए समझौते में इतनी हिस्सेदारी का ऑफर दिया गया है.

जब श्रीलंका सरकार के प्रवक्ता से सवाल किया गया कि उन्होंने विदेशी निवेश का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों और संगठनों को इसके लिए कैसे मनाया तो उन्होंने कहा कि उनका विरोध सिर्फ ईस्ट कंटेनर टर्मिनल को लेकर ही था. उन्होंने कहा, ईस्ट कंटेनर टर्मिनल आंशिक रूप से इस्तेमाल में है. टर्मिनल का बाकी विकास कार्य श्रीलंका पोर्ट अथॉरिटी करेगी जिसमें करीब 70 करोड़ डॉलर खर्च करने होंगे. जबकि वेस्ट कंटेनर टर्मिनल को शुरू से खड़ा करना है जिसमें बड़े निवेश की जरूरत है.

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