तो इसलिए कमजोर होता है भारतीय युवाओं का दिल

साल 2016 के फरवरी की सर्दियां थीं. 29 साल के अमित दिल्ली में अपने घर रजाई में लिपटे नींद की आगोश में सपनों की दुनिया में सैर कर रहे थे. सुबह के चार बजे अचानक सीने में दर्द उठा. दर्द इतना बुरा था कि अचानक नींद खुल गई. शरीर पसीने से तरबतर था. घर पर कोई नहीं था जो अमित को अस्पताल ले जा सकता.तो इसलिए कमजोर होता है भारतीय युवाओं का दिल

अमित ने कहराते हुए दर्द को सहा, घंटे भर में दर्द कम हुआ और फिर से नींद आ गई. सो कर उठे तो तबीयत थोड़ी ठीक लगी तो अमित ने डॉक्टर के पास जाने का फ़ैसला टाल दिया. लेकिन अगले दिन चलने फिरने से लेकर रोज़मर्रा के काम में भी उन्हें दिक्कत आई. इसलिए अमित ने डॉक्टर के पास जाने का फ़ैसला किया.

डॉक्टर ने अमित की बात सुन कर उन्हें इको-कार्डियोग्राम कराने की सलाह दी. इको-कार्डियोग्राम में पता चला की 36 घंटे पहले अमित को जो दर्द उठा था, वो हार्ट-अटैक था. डॉक्टर की बात सुनते ही, अमित के होश उड़ गए. वो समझ ही नहीं पा रहे थे कि इतनी कम उम्र में हार्ट अटैक कैसे आ सकता है?

बढ़ रहे हैं हार्ट अटैक के मामले

आंकड़े बताते हैं कि कम उम्र में हार्ट-अटैक वाले मामले दिनों-दिन भारत में बढ़ते जा रहे हैं. 24 मई को पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद बंडारू दत्तात्रेय के बेटे बंडारू वैष्णव की हार्ट अटैक से मौत हो गई. वो सिर्फ 21 साल के थे. वैष्णव हैदराबाद से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे थे. ख़बरों के मुताबिक़ देर रात को खाना खाने के बाद वैष्णव को अचानक से सीने में दर्द की शिकायत हुई. परिवार वाले उसे लेकर गुरु नानक अस्पताल पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

नौजवानों में दिल की बीमारी

अमरीका के एक रिसर्च जरनल में छपे लेख के मुताबिक़ 2015 तक भारत में 6.2 करोड़ लोगों को दिल से जुड़ी बीमारी हुई. इसमें से तकरीबन 2.3 करोड़ लोगों की उम्र 40 साल से कम है.

यानी 40 फ़ीसदी हार्ट के मरीज़ों की उम्र 40 साल से कम है. भारत के लिए ये आंकड़े अपने आप में चौंकाने वाले हैं.

जानकार बताते हैं कि पूरी दुनिया में भारत में ये आंकड़े सबसे तेज़ी से बढ़ रहे हैं.

healthdata.org के मुताबिक प्रीमैच्योर डेथ यानी अकाल मृत्यु के कारणों में 2005 में दिल की बीमारी का स्थान तीसरा था.

लेकिन 2016 में दिल की बीमारी, अकाल मृत्यु का पहला कारण बन गया है.

10 -15 साल पहले तक दिल की बीमारी को अकसर बुजुर्गों से जोड़ कर देखा जाता था.

लेकिन पिछले एक दशक में दिल से जुड़ी बीमारी के आंकड़े कुछ और कहानी कहते हैं.

कमज़ोर दिल के कारण

देश के जाने माने कार्डियोलॉजिस्ट और पद्मश्री से सम्मानित डॉक्टर एस सी मनचंदा के मुताबिक दरअसल देश के युवाओं का दिल कमज़ोर हो गया है. डॉक्टर मनचंदा फिलहाल दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हैं, इससे पहले एम्स में कार्डियो विभाग के कई सालों तक हेड रह चुके हैं. उनके मुताबिक कमज़ोर दिल का कारण हमारा नए जमाने की जीवन शैली है.

देश के युवाओं में फैले ‘लाइफ स्टाइल डिस्ऑर्डर’ के लिए वो पांच कारणों को अहम मानते हैं-

•जीवन में तनाव

•खाने की ग़लत आदत

•कम्प्यूटर/ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर देर तक काम करना

•स्मोकिंग, तंबाकू, शराब की लत

•पर्यावरण का प्रदूषण

डॉक्टर मनचंदा के मुताबिक चाहे 29 साल के अमित हो या फिर 21 साल के वैष्णव दोनों ही मामलों में इन पांच में से एक वजह है उनके हार्ट अटैक की. अमित ने भी बताया कि 22 साल की उम्र से वो सिगरेट पीते थे.

29 साल के होते होते होते वो एक चेन स्मोकर बन गए थे. लेकिन हार्ट अटैक आने के 2 साल बाद उन्होंने अब सिगरेट पीना छोड़ दिया है. पर दिल की बीमारी के लिए आज भी तीन दवाई रोज़ खानी पड़ती है. वैष्णव के बारे में ऐसी कोई जानकारी नहीं है, लेकिन पढ़ने के उम्र में आजकल बच्चों में तनाव आम है. इतना ही नहीं छात्रों जीवन में खाने की ग़लत समय, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का पढ़ने के लिए घंटों तक इस्तेमाल कोई नई बात नहीं है.

हार्ट अटैक के लक्षण

डॉक्टरों की मानें तो हार्ट अटैक का सबसे बड़ा लक्षण माना जाता है- सीने में तेज़ दर्द. अक्सर किसी फ़िल्मी दृश्य में जब कभी किसी को दिल का दौरा पड़ता है तो वो अपना सीना ज़ोर से जकड़ लेता है, दर्द के मारे उनकी आँखों में घबराहट दिखने लगती है और वो ज़मीन पर गिर पड़ता है. हम सभी को लगता है कि दिल का दौरा पड़ने पर ऐसा ही एहसास होगा जैसे हमारे सीने को कुचला जा रहा है. ऐसी अनुभूति होती भी है, लेकिन हमेशा नहीं.

जब दिल तक खून की आपूर्ति नहीं हो पाती तो दिल का दौरा पड़ता है. आमतौर पर हमारी धमनियों के रास्ते में किसी तरह की रुकावट आने की वजह से खून दिल तक नहीं पहुँच पाता, इसीलिए सीने में तेज़ दर्द होता है. लेकिन कभी-कभी दिल के दौरे में दर्द नहीं होता. इसे साइलेंट हार्ट अटैक कहा जाता है.

आज भी दुनिया में अलग अलग बीमारी से मरने वाले वजहों में दिल की बीमारी सबसे बड़ी वजह है. साल 2016 में अलग अलग बीमारी से मरने वालों में 53 फ़ीसदी लोगों की मौत दिल की बीमारी की वजह से हुई.

किन महिलाओं को हार्ट अटैक का सबसे अधिक ख़तरा?

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के डॉक्टर के. के. अग्रवाल के मुताबिक, “महिलाओं में प्री मेनोपॉज़ हार्ट की बीमारी नहीं होती.” इसके पीछे महिलाओं में पाए जाने वाले सेक्स हॉर्मोन हैं जो उन्हें दिल की बीमारी से बचाते हैं. लेकिन पिछले कुछ समय में महिलाओं में प्री मेनोपॉज़ वाली उम्र में भी हार्ट अटैक जैसे बीमारियां देखी जा रही हैं.

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के डॉ. श्रीनाथ रेड्डी के मुताबिक, “अगर कोई महिला स्मोकिंग करती है, या गर्भनिरोधक पिल्स का लंबे समय से इस्तेमाल करती रही है तो प्राकृतिक रूप से उसके शरीर की हार्ट अटैक से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है.” डॉ. रेड्डी के मुताबिक मेनोपॉज़ के पांच साल बाद महिलाओं में भी हार्ट अटैक का ख़तरा पुरुषों के बराबर ही हो जाता है. कई तरह के शोध हैं जिसमें पाया गया है कि महिलाएं अकसर सीने में दर्द को नज़रअंदाज़ कर देती हैं और इसलिए इलाज उनको देर से मिलता है.

हार्ट अटैक से बचना है तो ट्रांस फैट से बचें

इसके अलावा डॉक्टर मनचंदा के अनुसार युवाओं को दिल की बीमारी से बचाने के लिए सरकार को भी कुछ मदद करनी चाहिए. इस सवाल पर कि सरकार कैसे हार्ट अटैक रोक सकती है, डॉक्टर मनचंदा कहते हैं, “जंक फूड पर सरकार को ज़्यादा टैक्स लगाना चाहिए, जैसे सरकार तंबाकू और सिगरेट पर लगाती है. साथ ही जंक फूड पर बड़े-बड़े मोटे अक्षरों में वॉर्निंग लिखना चाहिए. सरकार इसके लिए नियम बना सकती है.”

डॉक्टर मनचंदा की माने तो ऐसा करने से समस्या जड़ से खत्म तो नहीं होगी, लेकिन लोगों में जागरूकता ज़रूर बढ़ेगी. अक्सर ये भी सुनने में आता है कि हार्ट अटैक का सीधा संबंध शरीर के कोलेस्ट्रोल लेवल से होता है, इसलिए अधिक तेल में तला हुआ खाना न तो बनाएं न ही खाएं. लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है? डॉ. मनचंदा कहते हैं कोलेस्ट्रोल से नहीं लेकिन ट्रांस फैट से हार्ट अटैक में दिक्कत ज्य़ादा आ सकती है. ट्रांस फैट शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रोल को कम करता है और बुरे कोलेस्ट्रोल को बढ़ाता है. वनस्पति और डालडा ट्रांस फैट के मुख्य स्रोत होते हैं. इसलिए इनसे बचना चाहिए. जानकारों के मुताबिक इन तरीकों पर अमल कर युवा हार्ट अटैक के अटैक से बच सकते हैं.

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