…तो अब वर्तमान की चिंता में डूबने लगे हैं PM नरेंद्र मोदी

तीन दिन पहले प्रधानमंत्री ने वित्तीय संस्थान से जुड़े छात्रों को संबोधित करते हुए कहा था कि मैं वर्तमान की चिंता में भविष्य नहीं खराब कर सकता। मुझे वर्तमान से ज्यादा भविष्य की चिंता है। लेकिन ठीक एक दिन उन्होंने जिस तरह से जीएसटी में बदलाव किये उससे साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी को भविष्य की चिंता हो या न हो लेकिन वर्तमान की चिंता भी उन्हें खूब सताती है। जीएसटी में हुए बदलाव को भले ही प्रधानमंत्री और उनके मंत्री जेटली दीवाली का तोहफा बता रहे हों लेकिन अगर देखा जाए तो यह तोहफा खुद उनकी सरकार के लिए है। क्योंकि उन्होंने जो बड़ा ऐलान किया है उसके मुताबिक अब हर महीने नहीं बल्कि तीन महीने में एक बार रिटर्न दाखिल करना होगा।…तो अब वर्तमान की चिंता में डूबने लगे हैं PM नरेंद्र मोदी

यानि अब सभी व्यापारियों को तीन महीने बाद ही रिटर्न दाखिल करने हैं। इसे मोदी सरकार ने खूब सोच-समझ कर ऐलान किया है। दरअसल तीन महीने के अंदर देश के कुछ राज्ज्यों में चुनाव होने हैं। केरल और गुजरात में चुनाव इस दौरान ही होंगे। ऐसे में वहां के व्यापारियों को तात्कालिक फायदा देते हुए त्वरित फायदा लेने की कोशिश की गयी है। सूत्रों की मानें तो नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को संघ के पदाधिकारियों ने अपने ही सर्वे में बताया था कि गुजरात में वह केवल 64 सीटों पर ही सिमट जाएगी। इसे लेकर संघ और अमित शाह के बीच पांच बार बैठकें भी हुईं।

इसी वर्तमान को लेकर प्रधानमंत्री चिंतित हुए और आनन-फानन में जेटली को बैठक छोड़कर पीएमओ पहुंचने को कहा गया और अमित शाह को केरल से तत्काल दिल्ली पहुंचने को कहा गया और प्रधानमंत्री ने वर्तमान सुधारने के लिए जीएसटी में बदलाव के आदेश दिये। मोदी सरकार ने जिस तरह ज्वैलर्स के व्यवसाय से मनी लांड्रिंग एक्ट खत्म कर दिया है, उससे उनकी नीयत और कार्यश्ौली साफ दिख रही है। कालाबाजारी रोकने और कालाधन पर अंकुश लगाने के लिए ही मनी लांड्रिग एक्ट लाया गया था। विश्लेषकों का मानना है कि नोटबंदी के दौरान भी बड़ी संख्या में लोगों ने अपने नोट बदलवाने का जरिया सोने को ही बनाया था।

अब दो लाख तक की सोने की खरीद पर से पैन की अनिवार्यता को समाप्त करना भी मोदी सरकार की चुनावी रेवड़ी का ही ऐलान है। नोटबंदी और जीएसटी के ऐलान के बाद से व्यापारी वर्ग में खासा आक्रोश था जिसका खमियाजा केंद्र सरकार को गुजरात और केरल में उठाना पड़ सकता था। जबकि जल्द ही चुनावी अधिसूचना का ऐलान भी होना है। इसी के चलते दीवाली पर ज्वैलर्स मार्केट में होने वाली भारी नुकसान व व्यापारियों के आक्रोश को देखते हुए मोदी सरकार ने जीएसटी पर यू-टर्न लिया। जिन समस्याओं के बल पर टैक्स सिस्टम को बदलने की बात की जा रही है क्या वो पहले नहीं देखी गई थीं। क्यों आखिर 1 जुलाई से लागू किया गया जब 15 सितंबर तक पूरी तैयारियों के साथ लॉन्च किया जा सकता था।

सरकार द्बारा लोगों को हुई परेशानी और नुकसान का लेखा-जोखा कौन देगा और कौन इस नुकसान की भरपाई करेगा। जहां पहले ही आबादी को डिजिटल होने में परेशानी हो रही है वहां क्यों आखिर जीएसटी जैसा सिस्टम लगाया गया। इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? एक बात तो पक्की है। जीएसटी अब सरकार के गले की हड्डी बनता दिखता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी भले ही यह कहें कि उन्हें वर्तमान की चिंता नहीं है लेकिन जीएसटी पर उनका यूटर्न जनता की समझ में आ गया है।

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पीएम मोदी को लगने लगा था कि भले ही वह यशवंत सिन्हा को शल्य बताकर इमेज सुधारने की कोशिश करें लेकिन पूर्व सरकार के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार और अटल सरकार में मंत्री रहे अरुण शौरी और शत्रुघ्न सिन्हा के आरोप पूरी तरह से मनगढ़ंत नहीं है। जिस तरह से भारत की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी थी और जीडीपी धड़ाम हो गयी थी। उसके बाद यह करना अति आवश्यक था। हालांकि इससे बहुत कुछ सुधरने वाला नहीं है और अभी 2०19 से पहले और परिवर्तन भी संभव है।

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