SC के आदेश के बाद हजारों डिस्टेंस डिग्रियां खारिज, डिग्री बचाने का मात्र यह तरीका
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देश के सभी डीम्ड विश्वविद्यालयों पर नियामक प्राधिकारों की पूर्व मंजूरी के बिना 2018-19 सत्र से कोई भी दूरस्थ पाठ्यक्रम चलाने पर रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था देते हुए देश की चार डीम्ड यूनिवर्सिटी में 2001-2005 सत्र के बाद से दूरस्थ शिक्षा के जरिए हजारों छात्रों को मिली इंजीनियरिंग की डिग्री रद्द कर दी है. कोर्ट ने ऐसे चार संस्थानों को पिछली तारीख से मंजूरी देने के मामले में सीबीआई जांच का आदेश दिया है.
प्रभावित स्नातकों को अपनी डिग्री बचाने के लिए एआईसीटीई की परीक्षा में बैठना होगा. परीक्षा में सफल होने पर उनकी डिग्री बच सकती है. विश्वविद्यालयों को इन सभी छात्रों से वसूली गई फीस व अन्य खर्च लौटाने होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने सभी डीम्ड विश्वविद्यालयों को आगामी अकादमी सत्र से बिना संबंधित अथॉरिटी (यूजीसी, एआईसीटीई, डीइसी) से अनुमति के दूरस्थ शिक्षा के जरिए तकनीकी शिक्षा से जुड़े किसी भी कोर्स को चलाने पर रोक लगा दी है. अब डीम्ड विश्वविद्यालयों को हर कोर्स के लिए अलग-अलग अनुमति लेनी होगी. कोर्ट ने एक महीने के भीतर डीम्ड यूनिवर्सिटी से ‘यूनिवर्सिटी शब्द हटाने के आदेश भी दिए हैं.
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ये चार डीम्ड विश्वविद्यालय इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट, जेआरएन राजस्थान विद्यापीठ (उदयपुर), इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज (राजस्थान) और विनायक मिशन रिसर्च फाउंडेशन (तमिलनाडु) हैं. इन चारों डीम्ड विश्वविद्यालयों ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए संबंधित अथॉरिटी से अनुमति नहीं ली थी. हालांकि वर्ष 2001 से 2005 के बीच इन चारों विश्वविद्यालयों से डिग्री हासिल करने वालों को रियायत दी गई है क्योंकि इन्हें कुछ अधिकारियों ने नीतियों का उल्लंघन करते हुए कोर्स चलाने की इजाजत दी थी.
कोर्ट ने इन डीम्ड यूनिवर्सिटियों को इंजीनियरिंग कोर्स चलाने की अनुमति देने में अधिकारियों की भूमिका का पता लगाने के लिए सीबीआई जांच केआदेश दिए हैं. साथ ही पीठ ने नामचीन लोगों की तीन सदस्यीय कमेटी का गठन करने का आदेश दिया है. कमेटी डीम्ड विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा को मजबूत करने और इसके लिए रेग्यूलेशन तय करने को लेकर रोडमैप तैयार करेगी.
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ये नामचीन सदस्य शिक्षा, जांच, प्रशासन या कानून के क्षेत्र से होंगे. कमेटी का गठन एक महीने के भीतर करने का निर्देश दिया गया है और गठन के छह महीने के बाद कमेटी को रोडमैप तैयार करने के लिए कहा गया है. केंद्र सरकार उस रिपोर्ट पर गौर करेगी और 31 अगस्त, 2018 से पहले हलफनामे के जरिए अदालत को कार्रवाई रिपोर्ट सौंपेगी.