सोने से पहले आंखों पर लगाएं ब्लू लाइट चश्मा ये… होंगे फायदें

कोरोनावायरस महामारी के दौरान लॉकडाउन में घर में बैठे-बैठे लोगों के स्क्रीन देखने के समय में इजाफा हो गया है। एक और जहां बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई के कारण ज्यादा देर तक स्क्रीन देख रहे हैं वहीं दूसरी ओर कामकाजी लोग भी काफी देर तक काम करने के दौरान स्क्रीन देखते रहते हैं।

अब एक नए शोध में पता चला है कि रात को सोने से पहले नीली रोशनी को काटने वाले चश्मे का प्रयोग करने से नींद भी अच्छी आती है और अगले दिन कामकाज की उत्पादकता में भी बढ़ोतरी होती है। 

इंडियाना यूनिवर्सिटी के केली स्कूल ऑफ बिजनेस के प्रोफेसर क्रिस्टियानों एल गुआराना ने कहा, हमने पाया कि नीली रोशनी को काटने या फिल्टर करने वाले चश्मे नींद को बेहतर करने में एक प्रभावी हस्तक्षेप साबित हुए हैं। इसके अलावा कार्यक्षमता को बढ़ाने, प्रदर्शन को बेहतर करने, संस्थागत व्यवहार को बेहतर करने और खराब कार्य व्यवहार को कम करने में भी ये ब्लू लाइट चश्मे प्रभावी साबित हुए हैं।

नीली रोशनी को फिल्टर करने वाले चश्मे आंखों के सामने एक शारीरिक अंधेरा पैदा कर देते हैं जिससे नींद की गुणवत्ता और अवधि दोनों में ही बढ़ोतरी होती है।

इन उपकरणों से निकलती है नीली रोशनी
ज्यादातर इस्तेमाल में आने वाले उपकरण जैसे कंप्यूटर स्क्रीन, स्मार्टफोन, टैबलेट और टीवी से नीली रोशनी निकलती है। पूर्व शोधों के अनुसार इस नीली रोशनी से नींद में खलल पड़ती है। घर से काम करने के दौरान लोगों की इन उपकरणों पर निर्भरता बढ़ गई है। शोधकर्ता गुआराना ने कहा, सामान्य तौर पर नीली रोशनी को रोकने वाले चश्मे से देर रात जागने वाले लोगों को ज्यादा फायदा होता है।

हालांकि नीली रोशनी से बचने से सभी को फायदा होता है। रात को काम करने वाले कर्मचारियों को इन चश्मों से ज्यादा फायदा होता है  क्योंकि उनकी आंतरिक जैविक घड़ी और बाहरी नियंत्रित कार्य के समय में काफी गड़बड़ होती है। हमारे शोध से पता चलता है कि ब्लू लाइट चश्मे कर्मचारियों के स्वास्थ्य और कार्यक्षमता दोनों ही बढ़ाते हैं।

कर्मचारी और नियोक्ता दोनों को होगा फायदा
यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के प्रोफेसर बारनेस ने कहा, इस शोध से पता चलता है कि ये नीली रोशनी को रोकने वाले चश्मे के इस्तेमाल के सस्ते तरीके से कर्मचारी और नियोक्ता दोनों को ही फायदा होगा।

शोधकर्ताओं ने 63 कंपनी मैनेजरों और 67 कॉल सेंटर अधिकारियों से डाटा लिया। कुछ कर्मचारियों को ब्लू लाइट चश्मे दिए गए और कुछ को नहीं दिए गए। उन्होंने पाया कि कभी-कभी कर्मचारियों को अहले सुबह भी काम करना पड़ता है। इससे उनकी जैविक घड़ी में गड़बड़ी आ जाती है।

नियोक्ताओं को नीली रोशनी के संपर्क में आने की मात्रा को लेकर सोचना चाहिए और कर्मचारियों की जैविक घड़ी को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button