पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का प्रश्‍न क्या इंटरनेट व स्मार्टफोन बढ़ा रहे यौन हिंसा

चंडीगढ़। हाईकाेर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में दुराचार की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस दया चौधरी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि भारतीय समाज आर्थिक और सामाजिक तौर पर तो प्रगति कर रहा है, लेकिन महिलाओं व बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा के मामले लगातार बढ़ना चिंताजनक है। जस्टिस दया चौधरी ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भेजे अपने नोट में कहा है कि क्या इंटरनेट और स्मार्टफोन के माध्यम से आसानी से उपलब्ध अश्लील सामग्री, यौन अपराधों में वृद्धि का कारण बन रही है?पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का प्रश्‍न क्या इंटरनेट व स्मार्टफोन बढ़ा रहे यौन हिंसा

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस दया चौधरी ने चीफ जस्टिस को भेजे नोट में उठाए सवाल

हरियाणा के मेवात में हाल ही में एक युवती की आत्महत्या के मामले पर अपने संज्ञान नोटिस में यौन अपराधों पर 35 सवाल खड़े करते हुए उन्होंने कहा है कि क्या टेलीविजन पर फिल्मों और धारावाहिकों में यौन हिंसा के दृश्य पुरुषों, विशेष रूप से युवाओं और किशोरों को ऐसे कार्यों के शामिल होने के लिए उकसाते हैं?

जस्टिस चौधरी ने महिलाओं और बच्चों पर यौन उत्पीड़न के लिए दंड और सख्त कानूनों के बारे में जनता को संवेदनशील बनाने की आवश्यकता पर जवाब मांगते हुए कहा है कि क्या पुरुषों में महिलाओं को उनकी ख़ुशी का सामान समझने की गलत सोच यौन अपराधों में वृद्धि का कारण बन रही है।

पांच साल के दुराचार के आंकड़े मांगे

इस मामले में सीनियर एडवोकेट वीके जिंदल और राकेश गुप्ता को बेंच की सहायता के लिए एमीकस क्यूरी या कोर्ट मित्र नियुक्त करते हुए जस्टिस चौधरी ने पिछले पांच सालों में पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में दुराचार के मामलों में सजा के आधार पर सालाना आंकड़े भी मांगे हैं। उत्तरदाताओं को ऐसी घटनाओं में वृद्धि के सभी कारणों का स्पष्टीकरण देने के लिए कहा गया है।  न्यायमूर्ति चौधरी ने शिकायतों से निपटने और मामले पर मुकदमा चलाने पर पुलिस की समस्याओं पर भी उनसे सवाल किया।

आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल पर जवाब तलब

वैज्ञानिक जांच के मुद्दे का जिक्र करते हुए जस्टिस चौधरी ने अपराधियों को दंड सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी जांच व मुकदमा चलाने के लिए डीएनए फिंगर प्रिंटिंग जैसी नवीनतम तकनीक का उपयोग करने के लिए शुरू किए गए कदमों पर विवरण भी मांगा है। सार्वजानिक स्थलों पर इलेक्ट्रॉनिक निगरानी बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए जस्टिस चौधरी ने जंक्शन और मॉल जैसे सार्वजनिक स्थानों पर केंद्रीय और राज्य सरकारों की ओर से सीसीटीवी कैमरे लगाने पर भी जवाब मांगा है।

स्कूल पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा क्यों नहीं

पीडि़तों के पुनर्वास की जरूरत पर बल देते हुए जस्टिस चौधरी ने पूछा है कि क्या उन्हें मुआवजे का भुगतान किया गया है और आघात और मानसिक पीड़ा से निपटने के लिए उचित परामर्श और समर्थन प्रणाली प्रदान की गई है। उन्‍होंने यह बताने के लिए भी कहा है कि क्या घटनाएं शराब से जुड़ी हुई हैं और महिला शिशुओं और भ्रूण हत्या के कारण सेक्स रेशो में गिरावट आई हैं।

न्यायमूर्ति चौधरी ने यह भी सवाल किया कि क्या घटनाओं के बारे में ज्ञान और सेक्स के बारे में समझ की कमी है। स्कूल पाठ्यक्रम में आयु के अनुसार यौन शिक्षा के अध्याय जोड़ने पर केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगते हुए जस्टिस चौधरी ने पूछा है कि स्कूल पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा शामिल क्यों नहीं की गई है। उन्होंने स्कूलों में प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों और काउंसलर की नियुक्ति की संभावना के बारे में भी जानकारी मांगी है।

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