बिहार चुनाव में सियासी प्रयोग, सीएम पद के लिए तीन चेहरे, पांच गठबंधन, वोटरों के लिए बना सरदर्द

बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार एक अलग ही अंदाज में सियासी प्रयोग देखने को मिल रहा है। जहां कोई पार्टी अकेले चुनाव लड़ने के बजाय अन्य दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतर रही है।

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार एक अलग ही अंदाज में सियासी प्रयोग देखने को मिल रहा है। जहां कोई पार्टी अकेले चुनाव लड़ने के बजाय अन्य दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतर रही है। इसकी वजह से बिहार चुनाव में अब तक कुल 5 गठबंधन बन चुके हैं और सब एक दूसरे को चुनौती दे रहे हैं। इसके अलावा तीन चेहरे मुख्यमंत्री पद के लिए भी लोगों के सामने हैं। ऐसे में अनगिनत गठबंधन बनने की वजह से बिहार के वोटरों में कन्फ्यूजन की स्थिति भी पैदा हो गई है कि किसे वोट करें और किसे नहीं?

बिहार की सियासी जंग भले ही एनडीए बनाम महागठबंधन की बीच मानी जा रही हो, लेकिन कई गठबंधन चुनावी ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। एनडीए में बीजेपी, जनता दल यूनाइटेड, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी शामिल है। एनडीए में मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार हैं। वहीं, दूसरी तरफ महागठबंधन का नेतृत्व राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव कर रहे हैं और सीएम पद का चेहरा भी हैं। इस गठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दल शामिल हैं।

बिहार में एनडीए बनाम महागठबंधन के बीच की लड़ाई में तीन अन्य गठबंधनों ने पेंच फंसा दिया है. इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी और AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का गठबंधन है, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र यादव की समाजवादी जनता दल (लोकतांत्रिक) सहित 6 राजनीतिक शामिल हैं। इस गठबंधन का नाम ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट है। बिहार की राजनीति में इस गठबंधन को तीसरे मोर्चे का भी नाम दिया जा रहा है।

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इसके अलावा जन अधिकार पार्टी के संरक्षक और पूर्व सांसद पप्पू यादव ने भी चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी और एमके फैजी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ मिलकर एक चौथा गठबंधन बनाया है जिसका नाम प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक अलायंस रखा है। बिहार में पांचवांं गठबंधन भी है जिसका नेतृत्व पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा कर रहे हैं। इस गठबंधन का नाम है यूनाइटेड डेमोक्रेटिक अलायंस, इस गठबंधन में कुछ ऐसे नेता शामिल हैं जो राजनीति में हाशिए पर हैं और यशवंत सिन्हा के द्वारा इस नए मोर्चे के ऐलान के बाद उन्हें संजीवनी बूटी मिल गई है।

एनडीए में मनमुताबिक सीट न मिलने से चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी अकेले चुनावी मैदान में है। एलजेपी को बीजेपी के बागी नेताओं का एक सहारा मिल गया है, जो टिकट को लेकर जेडीयू के खिलाफ चुनावी ताल ठोक रहे हैं। ऐसे में बहरहाल, बिहार चुनाव में इस वक्त मुकाबला 5 गठबंधन के बीच है और 3 मुख्यमंत्री के दावेदार हैं जिसकी वजह से जनता कंफ्यूज है।

जेडीयू के प्रवक्ता अभिषेक झा ने कहा कि इस बार बिहार चुनाव में कई छोटी पार्टियों ने मिलकर गठबंधन बनाया है और इन सभी दलों में एक बात जो समान है वह यह कि इन सभी नेताओं की महत्वकांक्षी काफी बड़ी है। इन नेताओं को जनता से कोई सरोकार नहीं है। मगर यही भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है कि कोई भी नागरिक चाहे तो निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकता है। यह सभी दल अपना भाग्य आजमाने के लिए चुनावी मैदान में हैं, मगर मुख्य मुकाबला तो केवल एनडीए और महागठबंधन में ही है।

वहीं, आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि बिहार में चाहे जितने भी गठबंधन बन जाएं, इन सारे गठबंधन का अंत 10 नवंबर को हो जाएगा। जनता के अंदर कोई कंफ्यूजन नहीं है और जनता ने मन बना दिया है कि महागठबंधन की सरकार बनानी है और तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना है। ये सारे छोटे गठबंधन वोट कटवा के रूप में हैं। इससे ज्यादा इनकी कोई राजनीतिक हैसियत नहीं है।

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